भारत ब्राह्मण और वर्ण व्यवस्था
सवर्णों में एक जाति आती है ब्राह्मण, जिस पर सदियों से राक्षस, पिशाच, दैत्य, यवन, मुगल, अंग्रेज, कांग्रेस, सपा, बसपा, वामपंथी, भाजपा, सभी राजनीतिक पार्टियाँ, विभिन्न जातियाँ आक्रमण करते आ रहे हैं।
ब्राह्मण शब्द पहले ज्ञान साधना, शील, सदाचार, त्याग और आध्यात्मिक जीवन-वृत्ति के आधार पर अपना जीवन जीने वाले लोगों के लिए एक सम्मानित संबोधन सरीखा था. बाद के समय में ब्राह्मणत्व ज्ञान और साहित्य के अध्ययन-अध्यापन का पेशा बन गया और इसे अपनाने वालों को ब्राह्मण माना जाने लगा. लेकिन पेशा बनने के बाद भी इससे कई उच्च आदर्श और अनुशासन जुड़े हुए थे जिन्हें कर्तव्य मानकर निभाया जाता था.
पेशे के रूप में भी यह इतना आसान नहीं था. उदाहरण के लिए, इस पेशे में उतरने के लिए यदि कोई ऋग्वेद का विद्यार्थी है, तो उसे दस हज़ार से अधिक मन्त्रों, उसके पद-पाठ, क्रम-पाठ, ऐतरेय ब्राह्मण, छह वेदांगों (जैसे आश्वलायन का कल्प-सूत्र, पाणिनी का व्याकरण जिसमें लगभग 4000 सूत्र हैं, निरुक्त जो 12 अध्यायों में है, छन्द, शिक्षा एवं ज्योतिष) को कंठस्थ करना पड़ता था.
आरोप ये लगे कि ~ब्राह्मणों ने जाति का बँटवारा किया।
उत्तर - सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद जो अपौरुषेय है और जिसका संकलन वेद व्यास जी ने किया, जो मल्लाहिन के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।
18 पुराण, महाभारत, गीता सब व्यास जी रचित है जिसमें वर्णव्यवस्था और जाति व्यवस्था दी गयी है। रचनाकार व्यास ब्राह्मण जाति से नही थे।
ऐसे ही कालीदास आदि कई कवि जो वर्णव्यवस्था और जातिव्यवस्था के पक्षधर थे जन्मजात ब्राह्मण नहीं थे।
अब मेरा प्रश्न उस के लिए
कोई एक भी ग्रन्थ का नाम बताओ जिसमें जाति व्यवस्था लिखी गयी हो और उसे ब्राह्मण ने लिखा हो?
शायद एक भी नही मिलेगा। मुझे पता है तुम मनु स्मृति का ही नाम लोगे, जिसके लेखक मनु महाराज थे, जो कि क्षत्रिय थे।
मनु स्मृति जिसे आपने कभी पढ़ा ही नही और पढ़ा भी तो टुकड़ों में कुछ श्लोकों को जिसके कहने का प्रयोजन कुछ अन्य होता है और हम समझते अपने विचारानुसार है।
मनु स्मृति पूर्वाग्रह रहित होकर सांगोपांग पढ़े। छिद्रान्वेषण की अपेक्षा गुणग्राही बनकर पढ़ने पर स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।
जिस मनुस्मृति को आज जन्म के आधार पर वर्ण और जाति व्यवस्था के लिए सबसे अधिक कोसा जाता है, सबसे पहली चोट उसी में इन पर की गई है
वर्ण के अपने विश्लेषण में भी गीता ने यह नहीं कहा है कि ‘जाति-कर्म विभागशः’, बल्कि इसने कहा- ‘गुणकर्म विभागशः’ (गुणों के आधार पर मनुष्यों का चार प्रकार से विभाजन). ‘ब्राह्मण’ के विश्लेषण में कहीं भी जन्म को कोई आधार बनाया गया.
अब रही बात " ब्राह्मणों "ने क्या किया ?तो नीचे पढ़े।
(1)यन्त्रसर्वस्वम् (इंजीनियरिंग का आदि ग्रन्थ)-भरद्वाज
(2)वैमानिक शास्त्रम् (विमान बनाने हेतु)- भरद्वाज
(3)सुश्रुतसंहिता (सर्जरी चिकित्सा)-सुश्रुत
(4)चरकसंहिता (चिकित्सा)-चरक
(5)अर्थशास्त्र (जिसमें सैन्यविज्ञान, राजनीति, युद्धनीति, दण्डविधान, कानून आदि कई महत्वपूर्ण विषय है)-कौटिल्य
(6)आर्यभटीयम् (गणित)-आर्यभट्ट
ऐसे ही छन्दशास्त्र, नाट्यशास्त्र, शब्दानुशासन,
परमाणुवाद, खगोल विज्ञान, योगविज्ञान सहित प्रकृति और मानव कल्याणार्थ समस्त विद्याओं का संचय अनुसंधान एवं प्रयोग हेतु ब्राह्मणों ने अपना पूरा जीवन भयानक जंगलों में, घोर दरिद्रता में बिताए।
उसके पास दुनियाँ के प्रपंच हेतु समय ही कहाँ शेष था?
कोई बताएगा समस्त विद्याओं में प्रवीण होते हुए भी, सर्वशक्तिमान् होते हुए भी ब्राह्मण ने पृथ्वी का भोग करने हेतु गद्दी स्वीकारा हो?
विदेशी मानसिकता से ग्रसित कम्युनिस्टों(वामपंथियों) ने कुचक्र रचकर गलत तथ्य पेश किये। आजादी के बाद इतिहास संरचना इनके हाथों सौपी गयी और ये विदेश संचालित षड्यन्त्रों के तहत देश में जहर बोने लगे।
ब्राह्मण हमेशा ये चाहता रहा किराष्ट्र शक्तिशाली हो, अखण्ड हो,न्याय व्यवस्था सुदृढ़ हो।
सर्वे भवन्तु सुखिन:सर्वे सन्तु निरामया:
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:ख भाग्भवेत्।।
का मन्त्र देने वाला ब्राह्मण,वसुधैव कुटुम्बकम् का पालन करने वाला ब्राह्मण, सर्वदा काँधे पर जनेऊ कमर में लंगोटी बाँधे एक गठरी में लेखनी, मसि, पत्ते, कागज और पुस्तक लिए चरैवेति चरैवेति का अनुसरण करता रहा।मन में एक ही भाव था लोक कल्याण।
ऐसा नहीं कि लोक कल्याण हेतु मात्र ब्राह्मणों ने ही काम किया। बहुत सारे ऋषि, मुनि, विद्वान्, महापुरुष अन्य वर्णों के भी हुए जिनका महत् योगदान रहा है।
किन्तु आज ब्राह्मण के विषय में ही इसलिए कह रही हूँ कि जिस देश की शक्ति के संचार में ब्राह्मणों के त्याग तपस्या का इतना बड़ा योगदान रहा।
जिसने मुगलों यवनों, अंग्रेजों और राक्षसी प्रवृत्ति के लोंगों का भयानक अत्याचार सहकर भी यहाँ की संस्कृति और ज्ञान को बचाए रखा।
वेदों शास्त्रों को जब जलाया जा रहा था तब ब्राह्मणों ने पूरा का पूरा वेद और शास्त्र कण्ठस्थ करके बचा लिया और आज भी वो इसे नई पीढ़ी में संचारित कर रहे है वे सामान्य कैसे हो सकते है?
उन्हे सामान्य जाति का कहकर आरक्षण के नाम पर सभी सरकारी सुविधाओं से रहित क्यों रखा जाता है ?
ब्राह्मण अपनी रोजी रोटी कैसे चलाये ? ब्राह्मण को देना पड़ता है पढ़ाई के लिए सबसे ज्यादा फीस और सरकारी सारी सुविधाएँ obc, sc, st, अल्पसंख्यक के नाम पर पूँजीपति या गरीब के नाम पर अयोग्य लोंगों को दी जाती है।
मैं अन्य जाति विरोधी नही हूँ लेकिन किसी ने ब्राह्मण को गाली देकर उकसाया है।
इस देश में गरीबी से नहीं जातियों से लड़ा जाता है। एक ब्राह्मण के लिए सरकार कोई रोजगार नही देती कोई सुविधा नही देती।
br> एक ब्राह्मण बहुत सारे व्यवसाय नही कर सकता
जैसे -- पोल्ट्रीफार्म, अण्डा, मांस, मुर्गीपालन, कबूतरपालन, बकरी, गदहा,ऊँट, सूअरपालन, मछलीपालन, जूता,चप्पल, शराब आदि, बैण्डबाजा और विभिन्न जातियों के पैतृक व्यवसाय क्योंकि उसका धर्म एवं समाज दोनों ही इसकी अनुमति नही देते।
ऐसा करने वालों से उनके समाज के लोग सम्बन्ध नही बनाते।
वो शारीरिक परिश्रम करके अपना पेट पालना चाहे तो उसे मजदूरी नही मिलती, क्योंकि लोग ब्राह्मण से सेवा कराना पाप समझते है।
हाँ उसे अपना घर छोड़कर दूर मजदूरी, दरवानी आदि करने के लिए जाना पड़ता है। कुछ को मजदूरी मिलती है कुछ को नहीं।
अब सवाल उठता है कि ऐसा हो क्यों रहा है? जिसने संसार के लिए इतनी कठिन तपस्या की उसके साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों?जिसने शिक्षा को बचाने के लिए सर्वस्व त्याग दिया उसके साथ इतनी भयानक ईर्ष्या क्यों?
ब्राह्मण शब्द पहले ज्ञान साधना, शील, सदाचार, त्याग और आध्यात्मिक जीवन-वृत्ति के आधार पर अपना जीवन जीने वाले लोगों के लिए एक सम्मानित संबोधन सरीखा था. बाद के समय में ब्राह्मणत्व ज्ञान और साहित्य के अध्ययन-अध्यापन का पेशा बन गया और इसे अपनाने वालों को ब्राह्मण माना जाने लगा. लेकिन पेशा बनने के बाद भी इससे कई उच्च आदर्श और अनुशासन जुड़े हुए थे जिन्हें कर्तव्य मानकर निभाया जाता था.
पेशे के रूप में भी यह इतना आसान नहीं था. उदाहरण के लिए, इस पेशे में उतरने के लिए यदि कोई ऋग्वेद का विद्यार्थी है, तो उसे दस हज़ार से अधिक मन्त्रों, उसके पद-पाठ, क्रम-पाठ, ऐतरेय ब्राह्मण, छह वेदांगों (जैसे आश्वलायन का कल्प-सूत्र, पाणिनी का व्याकरण जिसमें लगभग 4000 सूत्र हैं, निरुक्त जो 12 अध्यायों में है, छन्द, शिक्षा एवं ज्योतिष) को कंठस्थ करना पड़ता था.
आरोप ये लगे कि ~ब्राह्मणों ने जाति का बँटवारा किया।
उत्तर - सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद जो अपौरुषेय है और जिसका संकलन वेद व्यास जी ने किया, जो मल्लाहिन के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।
18 पुराण, महाभारत, गीता सब व्यास जी रचित है जिसमें वर्णव्यवस्था और जाति व्यवस्था दी गयी है। रचनाकार व्यास ब्राह्मण जाति से नही थे।
ऐसे ही कालीदास आदि कई कवि जो वर्णव्यवस्था और जातिव्यवस्था के पक्षधर थे जन्मजात ब्राह्मण नहीं थे।
अब मेरा प्रश्न उस के लिए
कोई एक भी ग्रन्थ का नाम बताओ जिसमें जाति व्यवस्था लिखी गयी हो और उसे ब्राह्मण ने लिखा हो?
शायद एक भी नही मिलेगा। मुझे पता है तुम मनु स्मृति का ही नाम लोगे, जिसके लेखक मनु महाराज थे, जो कि क्षत्रिय थे।
मनु स्मृति जिसे आपने कभी पढ़ा ही नही और पढ़ा भी तो टुकड़ों में कुछ श्लोकों को जिसके कहने का प्रयोजन कुछ अन्य होता है और हम समझते अपने विचारानुसार है।
मनु स्मृति पूर्वाग्रह रहित होकर सांगोपांग पढ़े। छिद्रान्वेषण की अपेक्षा गुणग्राही बनकर पढ़ने पर स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।
जिस मनुस्मृति को आज जन्म के आधार पर वर्ण और जाति व्यवस्था के लिए सबसे अधिक कोसा जाता है, सबसे पहली चोट उसी में इन पर की गई है
वर्ण के अपने विश्लेषण में भी गीता ने यह नहीं कहा है कि ‘जाति-कर्म विभागशः’, बल्कि इसने कहा- ‘गुणकर्म विभागशः’ (गुणों के आधार पर मनुष्यों का चार प्रकार से विभाजन). ‘ब्राह्मण’ के विश्लेषण में कहीं भी जन्म को कोई आधार बनाया गया.
अब रही बात " ब्राह्मणों "ने क्या किया ?तो नीचे पढ़े।
(1)यन्त्रसर्वस्वम् (इंजीनियरिंग का आदि ग्रन्थ)-भरद्वाज
(2)वैमानिक शास्त्रम् (विमान बनाने हेतु)- भरद्वाज
(3)सुश्रुतसंहिता (सर्जरी चिकित्सा)-सुश्रुत
(4)चरकसंहिता (चिकित्सा)-चरक
(5)अर्थशास्त्र (जिसमें सैन्यविज्ञान, राजनीति, युद्धनीति, दण्डविधान, कानून आदि कई महत्वपूर्ण विषय है)-कौटिल्य
(6)आर्यभटीयम् (गणित)-आर्यभट्ट
ऐसे ही छन्दशास्त्र, नाट्यशास्त्र, शब्दानुशासन,
परमाणुवाद, खगोल विज्ञान, योगविज्ञान सहित प्रकृति और मानव कल्याणार्थ समस्त विद्याओं का संचय अनुसंधान एवं प्रयोग हेतु ब्राह्मणों ने अपना पूरा जीवन भयानक जंगलों में, घोर दरिद्रता में बिताए।
उसके पास दुनियाँ के प्रपंच हेतु समय ही कहाँ शेष था?
कोई बताएगा समस्त विद्याओं में प्रवीण होते हुए भी, सर्वशक्तिमान् होते हुए भी ब्राह्मण ने पृथ्वी का भोग करने हेतु गद्दी स्वीकारा हो?
विदेशी मानसिकता से ग्रसित कम्युनिस्टों(वामपंथियों) ने कुचक्र रचकर गलत तथ्य पेश किये। आजादी के बाद इतिहास संरचना इनके हाथों सौपी गयी और ये विदेश संचालित षड्यन्त्रों के तहत देश में जहर बोने लगे।
ब्राह्मण हमेशा ये चाहता रहा किराष्ट्र शक्तिशाली हो, अखण्ड हो,न्याय व्यवस्था सुदृढ़ हो।
सर्वे भवन्तु सुखिन:सर्वे सन्तु निरामया:
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:ख भाग्भवेत्।।
का मन्त्र देने वाला ब्राह्मण,वसुधैव कुटुम्बकम् का पालन करने वाला ब्राह्मण, सर्वदा काँधे पर जनेऊ कमर में लंगोटी बाँधे एक गठरी में लेखनी, मसि, पत्ते, कागज और पुस्तक लिए चरैवेति चरैवेति का अनुसरण करता रहा।मन में एक ही भाव था लोक कल्याण।
ऐसा नहीं कि लोक कल्याण हेतु मात्र ब्राह्मणों ने ही काम किया। बहुत सारे ऋषि, मुनि, विद्वान्, महापुरुष अन्य वर्णों के भी हुए जिनका महत् योगदान रहा है।
किन्तु आज ब्राह्मण के विषय में ही इसलिए कह रही हूँ कि जिस देश की शक्ति के संचार में ब्राह्मणों के त्याग तपस्या का इतना बड़ा योगदान रहा।
जिसने मुगलों यवनों, अंग्रेजों और राक्षसी प्रवृत्ति के लोंगों का भयानक अत्याचार सहकर भी यहाँ की संस्कृति और ज्ञान को बचाए रखा।
वेदों शास्त्रों को जब जलाया जा रहा था तब ब्राह्मणों ने पूरा का पूरा वेद और शास्त्र कण्ठस्थ करके बचा लिया और आज भी वो इसे नई पीढ़ी में संचारित कर रहे है वे सामान्य कैसे हो सकते है?
उन्हे सामान्य जाति का कहकर आरक्षण के नाम पर सभी सरकारी सुविधाओं से रहित क्यों रखा जाता है ?
ब्राह्मण अपनी रोजी रोटी कैसे चलाये ? ब्राह्मण को देना पड़ता है पढ़ाई के लिए सबसे ज्यादा फीस और सरकारी सारी सुविधाएँ obc, sc, st, अल्पसंख्यक के नाम पर पूँजीपति या गरीब के नाम पर अयोग्य लोंगों को दी जाती है।
मैं अन्य जाति विरोधी नही हूँ लेकिन किसी ने ब्राह्मण को गाली देकर उकसाया है।
इस देश में गरीबी से नहीं जातियों से लड़ा जाता है। एक ब्राह्मण के लिए सरकार कोई रोजगार नही देती कोई सुविधा नही देती।
br> एक ब्राह्मण बहुत सारे व्यवसाय नही कर सकता
जैसे -- पोल्ट्रीफार्म, अण्डा, मांस, मुर्गीपालन, कबूतरपालन, बकरी, गदहा,ऊँट, सूअरपालन, मछलीपालन, जूता,चप्पल, शराब आदि, बैण्डबाजा और विभिन्न जातियों के पैतृक व्यवसाय क्योंकि उसका धर्म एवं समाज दोनों ही इसकी अनुमति नही देते।
ऐसा करने वालों से उनके समाज के लोग सम्बन्ध नही बनाते।
वो शारीरिक परिश्रम करके अपना पेट पालना चाहे तो उसे मजदूरी नही मिलती, क्योंकि लोग ब्राह्मण से सेवा कराना पाप समझते है।
हाँ उसे अपना घर छोड़कर दूर मजदूरी, दरवानी आदि करने के लिए जाना पड़ता है। कुछ को मजदूरी मिलती है कुछ को नहीं।
अब सवाल उठता है कि ऐसा हो क्यों रहा है? जिसने संसार के लिए इतनी कठिन तपस्या की उसके साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों?जिसने शिक्षा को बचाने के लिए सर्वस्व त्याग दिया उसके साथ इतनी भयानक ईर्ष्या क्यों?
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