Official Blog of Ambrish Shrivastava

Saturday, November 18, 2023

privacy policy

 यहां प्रकाशित सभी जानकारी विभिन्न स्रोतों से ली गई है, और प्रकाशन से पहले इसकी विश्वसनीयता का परीक्षण भी किया गया है, फिर भी ऑनलाइन दुनिया में यह नहीं कहा जा सकता है कि कब कौन क्या बदल देगा, इसलिए हमारे प्रकाशन के बाद यदि किसी में कोई बदलाव हुआ है मूल स्रोत और जो हमारी जानकारी में नहीं आया है तो उसके लिए हम आपसे केवल माफी मांग सकते हैं लेकिन गलती की जिम्मेदारी नहीं ले सकते क्योंकि हमने जब भी मूल स्रोत से कुछ लिया है तो सर्वश्रेष्ठ लेने के इरादे से ही लिया है। कोशिश करूँगा



Tuesday, September 26, 2023

क्या गूगल हमारा मार्गदर्शक है?

आजकल की दुनिया में, जब हमें कुछ भी जानना होता है, कुछ ढूंढना होता है, या कुछ सीखना होता है, हमारा पहला मार्गदर्शक ज्यादातर "गूगल" हो जाता है। यह खोजने का एक आदर्श स्रोत बन गया है, जो हमें जानकारी और जानकारी की तलाश में सहायक होता है। लेकिन क्या गूगल सिर्फ एक मार्गदर्शक ही है, या यह और भी कुछ है? इस पर विचार करने के लिए, हमें गूगल के विभिन्न पहलुओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए।



खोजना और ज्ञान प्राप्त करना: गूगल का मुख्य उपयोग है खोजना और ज्ञान प्राप्त करना। जब हम कुछ जानना चाहते हैं, हम गूगल पर सर्च करते हैं और वह हमें विभिन्न स्रोतों से जानकारी प्रदान करता है।

मानचित्र और नेविगेशन: गूगल मैप्स के माध्यम से यह हमें स्थानों की जानकारी और नेविगेशन प्रदान करता है।

ईमेल और डॉक्यूमेंट्स: गूगल ईमेल और गूगल डॉक्स की मदद से हम काम कर सकते हैं और डेटा स्टोर कर सकते हैं।

कैलेंडर और टास्क्स: गूगल कैलेंडर हमें इवेंट्स और काम की योजना बनाने में मदद करता है।

फोटो और वीडियो साझा करना: गूगल फोटो से हम अपनी फोटो और वीडियो स्टोर कर सकते हैं और उन्हें साझा कर सकते हैं।

गूगल ड्राइव: यह हमें ऑनलाइन संग्रहण स्थान प्रदान करता है जिससे हम अपने डॉक्यूमेंट्स और फ़ाइलें स्टोर कर सकते हैं।

यूट्यूब: गूगल की स्वामित्व वाली यूट्यूब प्लेटफ़ॉर्म हमें वीडियो साझा करने की अनुमति देता है और यह बहुत सी जानकारी भी प्रदान करता है।

इस तरह, गूगल हमारे लिए एक सामग्री संग्रहण स्थान, संचालन प्रणाली, और मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है। यह सब उपयोगी हो सकता है, लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि हमें गूगल का निर्भीक रूप से उपयोग करने के बजाय अपनी व्यक्तिगत गोल्स और गोपनीयता को भी महत्वपूर्ण मानना चाहिए। गूगल हमारा मार्गदर्शक है, लेकिन हमें हमारे व्यक्तिगत जीवन को स्वयं भी निर्मित करना है।

Sunday, July 2, 2023

क्लाइंट के अभिमान को कैसे संतुष्ट करें?

 कभी-कभी हम अपने व्यवसाय में कुछ क्लाइंटों के साथ काम करते हुए अन्योन्य बैरियर (Mutual Barrier) का सामना करते हैं, जिनका व्यवहार और मानसिकता थोड़ी अलग होती है। कुछ ऐसे क्लाइंट होते हैं जो आपके साथ काम करने के बावजूद भी आपको या खुद को संतुष्ट नहीं करते, और उन्हें मस्टिक्स तक भावनाओं का साम्राज्य करने का अनिच्छित इरादा होता है। उनके इस व्यवहार के पीछे कुछ संभावित कारण क्या हो सकता है है इस लेख में उसी पर चरचा की गयी है ।



वैसे तो हम  अहंकार या ईगो शब्द का प्रयोग कर सकते थे, लेकिन चुकी क्लाइंट काम के बदले पैसे देतेहै इसलिए हम उसको थोड़ा साहित्यक लेकर चलते है और कहते है की ये अभिमान है यानि की Pride . 

स्वाभाविक आत्म-महत्ववाद: कुछ लोग अपने आप को अत्यधिक महत्वपूर्ण मानते हैं और वे चाहते हैं कि दूसरे उन्हें इसी तरीके से देखें। ऐसे लोगों का भावुकता और स्वाभाविक आत्म-महत्ववाद कारण हो सकता है कि वे इतना भाव खाते हैं।

अवसादन: कई बार, ऐसे लोग जिन्होंने अपने जीवन में किसी प्रकार का संकट या अवसाद अनुभव किया हो, उन्हें अधिक भावनात्मक बना सकता है। वे अपने आप को उस समस्या से बाहर निकालने के लिए दूसरों की उपयोगिता की तरफ आकर्षित हो सकते हैं, जिससे वे इतना भाव खाते हैं।

व्यावसायिक आदतें: कुछ लोग अपने व्यवसायिक आदतों और संघटनों में बहुत ज्यादा भावनात्मक होते हैं। उनके लिए, व्यवसाय में सफलता पाने के लिए दूसरों के साथ मजबूत संबंध बनाना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, और इसके लिए उन्हें इतना भाव खाना पड़ता है।

सामाजिक आवश्यकता: कुछ लोग अपनी सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दूसरों की प्रशंसा और मान्यता की आवश्यकता महसूस करते हैं। उन्हें यह आत्म-संरक्षण और सुरक्षा की भावना प्रदान करता है कि वे सामाजिक रूप से स्वीकृत हैं।

संरक्षण और सुरक्षा की भावना: कुछ लोग अपने आप को सुरक्षित और संरक्षित महसूस करने के लिए दूसरों की भावनाओं की ओर आकर्षित हो सकते हैं। वे यह सोचते हैं कि अगर वे दूसरों की भावनाओं का ठीक से सामर्थ्यपूर्ण रूप से संज्ञान करते हैं, तो वे खुद को संरक्षित महसूस करेंगे।

कुछ क्लाइंट इतना भाव खाते हैं यह कई तत्वों का परिणाम हो सकता है, जैसे कि उनकी व्यक्तिगत मानसिकता, व्यावसायिक आदतें, सामाजिक आवश्यकताएं, और संरक्षण की भावना। हमें उनके साथ सहयोगी और सहभागी बनकर काम करने का प्रयास करना चाहिए ताकि हम उनकी आवश्यकताओं को समझ सकें और उन्हें संतुष्ट कर सकें।

Wednesday, March 8, 2023

जातियां कैसे बनी और कैसे हुआ जातिगत भेदभाव

 इस भाव प्रधान समस्या को समझने के लिए हम बजाये पीछे से चलकर आगे आने से, वर्तमान समय से अध्ययन करके पीछे की तरफ चलते है, आज भी समाज बंटा हुआ है? क्या नहीं बटा है !

जीहा बटा हुआ है, कोई कबीर वादी है, कोई अम्बेडकरवादी है, कोई बौद्ध वादी है, कोई पेरियार वादी है, कोई बीजेपी का है, कोई कांग्रेस का है, कोई किसी अन्य पार्टी का सदस्य है या फिर किसी अन्य मत को मानने वाला है, जैसे राम रहीम, निरंकारी बाबा, निरमल बाबा, या जय गुरुदेव या फिर और भी कई अन्य। 


अब इन सबके काम और निष्ठा में थोड़ा थोड़ा अंतर् तो होगा ही, साथ ही साथ जो जिस पार्टी या मत को मानने वाला होगा वो उसी मत या पार्टी को मानने वाले के पास बैठना और बात करना ज्यादा पसंद करेगा, क्युकी मन और निष्ठा मिली हुयी है, जबकि किसी दूसरे मत या पार्टी को मानने वालो को या तो हीन दृस्टि से देखेंगे या फिर द्वेष के भाव से। 

अब जो व्यक्ति जिस पार्टी या मत को निष्ठापूर्वक मानेगा वो यही चाहेगा की उसकी अगली पीढ़ी उसके इस मत और निष्ठा को आगे बढ़ाये, तो वो व्यक्ति अपनी निष्ठा और भक्ति विरासत में अपनी आने वाली पीढ़ी को देकर जाता है और साथ ही दे जाता है अन्य मत एवं पार्टी के प्रति घृणा और द्वेष भी विरासत में। 

फिर जैसे जैसे आत्मविस्वास और आत्मिक बल में वृद्धि होती है, लोग मत एवं पार्टी के साथ आत्मीयता का भाव रखने लगते है, और यही उनके जीवन जीने के आत्मविस्वास का आधार बन जाता है और अन्य मत एवं पार्टी उसको सुहाती ही नहीं है, किसी कारण से अन्य मत या पार्टी का व्यक्ति शक्ति संपन्न होकर अपना अधिपत्य स्थापित कर लेता है तो अन्य मताबलम्बिओ को घुटन होने लगती है और एक संघर्ष शुरू हो जाता है। 

क्या स्वतंत्रता है हमको और उनको 

अब यहाँ एक बात जान लेनी बहुत जरुरी है, की आप किसी भी मत या पारटी के प्रति के प्रति निष्ठा बदलने को पूर्ण स्वतंत्र है लेकिन आप नहीं बदलते है क्युकी ये अब आपके जीवन का आधार बन गया है और चुनते समय आपको सुगम लगा होगा, ऐसे ही जब आदिकाल में वर्गों का वर्गीकरण कर्मो के आधार पर हुआ था तब कोई कुछ भी चुन सकता था। 

जैसे आज स्नातक के बाद आप किसी भी नौकरी की तैयारी कर सकते है, लेकिन ये आपके ऊपर है की आप खुद को किस के लाइक समझते है, हो सकता है आप आईएएस का एग्जाम दे और असफल होने पर क्लर्क बने और फिर आईएएस अधिकारी को गालिया देते रहे ये बस एक खन्नस मात्र है और यही कर्म आधारित वर्गीकरण में हुआ था। 

उस समय सभी को अपना अपना व्यवसाय चुनने का अधिकार जरूर दिया गया होगा, क्युकी सृस्टि के आरम्भ में तो कोई वर्गीकरण रहा नहीं होगा, ये तो समाज को व्यवस्थित करने के लिए बाद में हुआ होगा, फिर उस वर्गीकरण के अंदर जिसने जो काम चुना वही उसकी पहचान बनती गयी और वो खुस भी था लेकिन जब उसके अंदर हीन भावना को भरा गया तब उसे बुरा लगा। 

अब प्रश्न ये है की हीन भावना भरने वाले कौन लोग थे ? उनका उद्देस्य क्या था ?

इनका कोई उद्देस्य न होते हुए उद्देस्य था, सामाजिक संतुलन को अव्यवस्थित करना, क्युकी एक विकृत मानसिकता के लोग किसी भी अवस्था में सब सही होते नहीं देख सकते है, उनको चाहिए की कुछ उठापटक होती ही रहे, अतएव उन्होंने पहले खुद ही कर्मो को करने वालो को उपेक्षित किया जिससे कर्म करने वाले के आत्मसम्मान और आत्मविस्वास हो ठेस पहुंचे और जब दर्द का फोड़ा बन गया तो खुद ही सुई चुभा कर उसे फोड़ दिया और फिर खुद ही मरहम पट्टी करने को पहुंच गए, और बाकि लोग इस समस्या से अनजान इसलिए बने रहे क्युकी उनके मन में कोई द्वेष था ही नहीं। 

तुलनात्मक मूर्खता 

अब धीरे धीरे ये मवाद बाकि कर्म करने वालो में भी पहुंचने लगा, अब लोग बजाये अपना कर्म तल्लीनता से करने के एक तुलनात्मक अध्ययन में जुट गए, की हम ये काम करते है इसलिए कम इज्जत है और वो ये काम करते है इसलिए उनकी इज्जत है, इसलिए अब हम ये काम नहीं वो काम करेंगे, अब प्रश्न ये उठा की फिर ये काम कौन करेगा ? तो विकृत मानसिकता के लोग तो तैयार बैठे ही थे इस मौके की तलाश में, बोले मशीन है ये काम करने को, इस मशीन युग के आने से कोई क्रांति नहीं हुयी वल्कि बेरोजगारी बढ़ी और समाज में एक दूसरे पर निर्भरता खत्म हुयी। 

सामाजिक निर्भरता का अंत दुखद है 

पहले जब कोई काम होता था तो हर वर्ग के व्यक्ति का एक महत्वपूर्ण स्थान होता था और अगर वो थोड़े नाराज होते थे तो उनको मनाया भी जाता था लेकिन मशीनों के आने से उनकी तारजगी को मनाया नहीं गया वल्कि उपेक्षित ही कर दिया गया, परिणाम उनको और ज्यादा बुरा लगा, इस भावनात्मक चोट ने उनसे उनका पारम्परिक काम भी छुड़वा दिया और जिस काम के लिए छोड़ा वो भी उनको मिल नहीं पाया, परनाम हुआ समाज में एक वर्ग संघर्ष का प्रादुर्भाव हुआ 

Monday, February 13, 2023

देश की उन्नति के लिए सत्ता और विपक्ष में क्या होना चाहिए

एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सशक्त सत्ता पक्ष के साथ साथ मजबूत और राष्ट्रवादी विपक्ष का होना भी जरुरी है लेकिन वर्तमान का विपक्ष और इसके सड़क छाप नेता वास्तव में करदाताओं का पैसा बर्बाद करने वाले है, हमे सोचना चाहिए क्या सांसद बनने लायक हैं ? अगर हमे लगता है इनका सांसद बनना सही है तो हम वास्तव में लोकतंत्र के लाइक ही नहीं है, हमे लोकतंत्र के कर्तव्य और अधिकार कुछ भी नहीं पता है। 



वर्तमान का लोकतंत्र केवल भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ नफरत का बाजार सजा कर संसद में बैठे हैं और सच मानिये तो इतने गिर चुके है की विरोधी देशो की भाषा बोलने लगे है। 


लेकिन लोकसभा में ही नहीं भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने तार्किक ढंग से जिस तरह संसद के दोनों सदनों में पप्पू व विपक्ष के परखच्चे उड़ाये, केवल उसका बदला लेने के लिये राज्यसभा में विपक्ष के सांसदों ने “सड़क छाप आवारा” लोगों की तरह हुड़दंग मचा कर लगातार नारेबाजी करके एक लोकतान्त्रिक देश के प्रचण्ड बहुमत से चुने हुए प्रधानमंत्री मोदी को बोलने से रोकने की नाकाम कोशिश की। 


विपक्ष सवाल पूछते वक्त तो शान्ती चाहता है पर जवाब सुनने का ना धैर्य है ना शान्ति रख सकता-
वहां पीछे एक नारा बहुत बुलंद आवाज़ में सुनाई दे रहा था - मोदी अडानी भाई भाई, JPC की जांच कराओ,जांच कराओ -
भूल गये कि यही तरीका यदि सत्ता पक्ष अख्तियार कर ले तो क्या कोई विपक्षी बोल पायेगा - ?
सत्ता पक्ष ने शान्तिपूर्वक पप्पू की पप्पूगिरी को सहन किया व सुना - पर...?????
जब से मोदी सत्ता में आये हैं, विपक्ष उनकी वाणी की प्रखरता व सत्य की धार से भय खाता है - लोकसभा और राज्यसभा,दोनों सदनों में हर वर्ष राष्ट्रपति के अभिभाषण के जवाब में मोदी को लगातार बोलने से रोकने की कोशिश की जाती रही है-
और अब तो सभी सीमाएं पार कर दी है विपक्ष ने -
कितने शर्म की बात है कि-
कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे सदन में मौजूद थे और अन्य दलों के नेता भी थे परंतु किसी ने अपने सांसदों की हुडदंग को रोकने की जरूरत नहीं समझी -
दो दिन में मोदी को बोलने से रोक कर विपक्ष ने भाजपा की कम से कम 20 से 25 सीट 2024 लोकसभा चुनाव में बढ़ा दी हैं -
लेकिन बाद में पछताने से क्या होगा -
मुझे नहीं पता संसद के नियम क्या कहते हैं-

परंतु ऐसे हुड़दंगी सांसदों पर कैमरा लगातार Focus होना चाहिये- जिससे जनता को इन बेलगाम नेताओं का सच पता चल सके कि- यह लोग किस तरह छुट्टे बैल की तरह बर्ताव करते हैं तो यह सांसद बनने के लायक हैं ही नहीं - वैसे भी पिछले दरवाजे से घुसने वाले लोगों की वजह से राज्यसभा का तो औचित्य ही समाप्त ही हो चुका है- अब जिसके सदस्यों की संख्या एक तिहाई ही रह जानी चाहिये यदि राज्यसभा को जारी रखना है तो -
यह मोदी अडानी भाई भाई का नारा किसके इशारों पर लग रहा है - ?
क्या राहुल हिंडनबर्ग भाई भाई नहीं है-?
क्या राहुल दाऊद भाई भाई नहीं हैं-?
क्या राहुल जिनपिंग भाई भाई नहीं है-?
और क्या राहुल बीबीसी भाई भाई नहीं हैं -?
क्या राहुल व तमाम देश विरोधी भाई भाई नहीं हैं -
विपक्ष सोचता है कि वह अडानी पर हमला कर उसकी जड़ें कमजोर कर सकता हैं -
तो भारी भूल कर रहा है विपक्ष - क्योंकि यदि अडानी अंबानी और अन्य उद्योगपतियों ने कांग्रेस, कम्युनिस्ट और ममता के राज्यों में निवेश से हाथ खींच लिया तो इनकी क्या हालत होगी, इसकी कल्पना यह लोग नहीं कर सकते -
अडानी के बाद अगला नंबर अब अंबानी का लगाया जायेगा जिसकी तैय्यारी भी की जा चुकी होगी -
हर तरह का झूठ फैला कर मोदी के प्रति नफरत की आग उगलने में लगे हो -परंतु तुम लोगों के पास उसकी न किसी बात का जवाब है और न किसी योजना में कमी निकाल सकते हो -
दो दिन में मोदी ने तुम्हारे “चीथड़े” उड़ा दिये और यह भी सीधे शब्दों में कह दिया कि वह अकेला तुम सब पर भारी है -
कांग्रेस के पास मोदी की बात का कोई जवाब है क्या-?
कि नेहरू यदि इतने महान थे तो उनके वंशज “नेहरू सरनेम” अपनाने में काहे को शरमाते हैं -
यह कैसा खानदान है “नेहरू” का जिसकी बेटी भी गांधी और विदेशी औरत आती है तो वह भी गांधी बन जाती है और उसके बच्चे जो वाड्रा होने चाहिये, वह भी गांधी हो रहे हैं -
क्या अजूबा है यह नेहरू खानदान -
लोकतंत्र पर सबसे ज्यादा हमला कांग्रेस ने 90 बार 356 का दुरुपयोग करके किया जिसमें अकेली इंदिरा गांधी ने 50 बार चुनी हुई सरकारों को गिराया गया था -
नरेंद्र मोदी एक ऐसा वह “अनार” है- जिसने विपक्ष के सारे नेता “बीमार” कर दिये - विपक्ष के नेता सुधर नहीं सकते और मोदी का वह कुछ बिगाड़ नहीं सकते - इसलिये-
“तीसरी बार, फिर मोदी सरकार”

Saturday, February 11, 2023

ढोल गँवार शूद्र पशु नारी सकल ताडना के अधिकारी

 ढोल गँवार सूद्र पशु नारी । सकल ताड़ना के अधिकारी।।



गोस्वामी तुलसीदास जी की इस चौपाई में दोष निकालने वाले अवश्य पढ़ें।

***

ढोल-:

काठ की खोल तामें मढ़ो जात मृत चाम। 

      रसरी सो फाँस वा में मुँदरी अरझाबत हैं।

मुँदरी अरझाय तीन गाँठ देत रसरी में।

   चतुर सुजान वा को खैंच के चढ़ाबत हैं।

खैंच के चढ़ाय मधुर थाप देत मंद मंद।

    सप्तक सो साधि-साधि सुर सो मिलाबत हैं।

याही विधि ताड़त गुनी बाजगीर ढोलन को।

     माधव सुमधुर ताल सुर सो बजाबत हैं।।


गँवार-:

मूढ़ मंदमति गुनरहित,अजसी चोर लबार। 

मिथ्यावादी दंभरत, माधव निपट गँवार।।

इन कहुँ समुझाउब कठिन,सहज सुनत नहिं कान।

जा विधि समुझैं ताहि विधि,ताड़त चतुर सुजान।।


शूद्र-:

भोजन अभक्ष खात पियत अपेय सदा।

    दुष्ट दुराचारी जे साधुन्ह सताबत हैं।

मानत नहिं मातु-पितु भगिनी अरु पुत्रवधू।

    कामरत लोभी नीच नारकी कहाबत हैं।

सोइ नर सूद्रन्ह महुँ गने जात हैं माधव।

   जिनके अस आचरन यह वेद सब बताबत हैं।

इनकहुँ सुधारिबे को सबै विधि ताड़त  चतुर।

    नाहक में मूढ़ दोष मानस को लगाबत हैं।।


पशु-:

नहिं विद्या नहिं शील गुन,नहिं तप दया न दान।

ज्ञान धर्म नहिं जासु उर,सो नर पशुवत जान।।

सींग पूँछ नख दंत दृढ़, अति अचेत पशु जान।

तिन कहुँ निज वश करन हित,ताड़त चतुर सुजान।।


नारी-:

नारि सरल चित अति सहज,अति दयालु सुकुमारि। 

निज स्वभाव बस भ्रमति हैं,माधव शुद्ध विचारि।।

माधव नारि सुसकल विधि,सेवत चतुर सुजान।

ताड़िय सेइय आपनो, जो चाहत कल्यान।।



अकबर के नव रत्नों में से एक अब्दुर्रहीम खानखाना "रहीम" ने भी कहा है:

उरग तुरंग नारी नृपति, नीच जाति हथियार।

 रहिमन इन्हें संभालिए, पलटत लगै न बार॥ 

उसे कोई नहीं बोलेगा जिसने एकदम स्पष्ट बोला की पलट कर वार करते 

अतः यह सुनिश्चित है कि यह सब ताड़ना के ही योग्य है। ताड़ना न दिए जाने पर यह उटपटांग हरकतें करने से नहीं चूकते।

Wednesday, September 21, 2022

दलित अत्याचार की कहानी की सच्चाई

वर्तमान समय में जब हम कक्षा ५ पास करते है तो हम स्वतंत्र होते है नवोदय में जाने को, सैनिक स्कूल में जाने को स्वतंत्र है लेकिन स्वतंत्रता के साथ साथ आपके अंदर इनके द्वारा आयोजित परीक्षा पास करने की लगन और मेहनत भी होनी चाहिए, अब आप क्लास ८ में आगये तो फिर से इनके द्वार एकबार फिर खुलते है और फिर वही बात की इनकी प्रवेश परीक्षा आप पास कर पाते है या नहीं ये आपके ऊपर निर्भर है। 



अब आप क्लास १० में आगये अब आपके सामने NDA, पॉलिटेक्निक जैसे द्वार खुल गए, लेकिन मामला फिर भी वही है की क्या आप प्रवेश परीक्षा पास कर लेते है, इन सबके बराबरी में वो लोग भी है जो एक ही स्कूल में चुपचाप बिना किसी अतिरिक्त मेहनत के पढ़ते आ रहे है और पास हो रहे है, अब वो चाहे सरकारी स्कूल में हो या फिर प्राइवेट में, उनकी एक अलग केटेगरी साथ के साथ बन रही है। 

अब आप आगये १२थ में, तो आपके लिए इंजीनियरिंग के द्वार खुले जिसमे IIT भी है और अन्य कॉलेज भी है यूनिवर्सिटी भी है, और कुछ सरकारी नौकरिया भी है, लेकिन मामला वही है की आप खुद कितनी मेहनत करने को तैयार है, क्युकी फॉर्म सभी भर सकते है लेकिन पास कौन करेगा ? जो बाकिओ से ज्यादा मेहनत करेगा जिसके लिए आपको शायद शारीरक सुख छोड़ना पड़े। 

अब आपने स्नांतक कर लिया आपके लिए CDS, अखिल भारतीय सेवा, राज्य सेवा, क्लर्क, कानिस्टेबल, शिक्षक जैसे कई पदों के लिए परीक्षाएं है, जिनमे आप जा सकते है, ये सब मेने एक ओवरव्यू दिया है आपको समझाने में की आप शुरू से अंत तक स्वतंत्र है अपनी मेहनत करने की लग्न और क्षमता के आधार पर। 

अब हुआ ये की बचपन में एक ही स्कूल में पढ़ने वाले लोगो में कुछ आईएएस बन गए, कुछ IIT से इंजीनियर बने, कुछ MBBS डॉक्टर बने, कुछ प्राइवेट कॉलेज से इंजीनियर बने, कुछ BMAS बने, कुछ PCS बने, कुछ इंस्पेकटर बने, कुछ कानिस्टेबल बने, कुछ शिक्षक बने, कुछ सेना में अधिकारी बने, कुछ सैनिक बने यानि की जो भी बना अपनी लगन, मेहनत और क्षमता के उपयोग के आधार पर बना। 

अब जो क्लर्क है उसको सबसे ज्यादा काम करना पड़ता है, जो सैनिक है उसको भी बहुत से काम करने पडटे है, जो लोकल कॉलेज से इंजीनियर बने है उनको भी ज्यादा काम करना पड़ता है, जो भी जो बना उसे उसी हिसाब से काम करना पड़ता है, सेलेरी मिलती है और सम्मान मिलता है, और हर विभाग या मंत्रालय में जाने की अनुमति नहीं है । 

अब जो आईएएस बने, IIT से इंजीनियर बने, PCS बने, या MMBS डॉक्टर बन कर सर्जन बने उनके पास काम भले ही कम को लेकिन जिम्मेदारी बहुत है जो दिखती नहीं, उनकी सेलरी ज्यादा है जो दिखती है, उनका सम्मान ज्यादा है जो दीखता है, उनको किसी भी विभाग या मंत्रालय में जाने की छूट है जो दिखती है। 

अब जो वर्ग हमने ऊपर बताया था वो इनसे द्वेष करता है, घृणा करता है, कहता है काम हम करे और राज करे, हमारी सेलरी भी कम है, सम्मान भी कम है, हम आते है तो कोई सम्मान नहीं देता और इनके आने पर सब खड़े हो जाते है, ये भेदभाव है, हम भी सरकारी कर्मचारी है हमे भी उतना ही सम्मान और पगार मिलनी चाहिए जितनी इनकी है।  

अब आप बताओ की क्या इनकी ये मांगे सही है ? अगर आप सिर्फ लास्ट की सीन देखेंगे तो हो सकता है आपको इनकी मांगे सही लगेगी लेकिन अगर आप इनकी मेहनत, लगन, परिश्रम का सही से आँकलन करके मूल्यांकन करेंगे तो आप पाएंगे की इन्होने खुद से चुनाव किया था जब चुनने का समय था, शुरू में मेहनत करने का समय था तब आपने कम मेहनत वाली राह चुनी तो अब क्यों रो रहे हो। 

यही समस्या हमारे समाज की है, अगर आप सृस्टि के आरम्भ में जाए तो किसी भी दर्शन के अनुसार सबसे पहले स्त्री और पुरुष भगवान ने बनाये थे और उस समय कोई छोटा या बड़ा आधिकारिक रूप  से नहीं था, लोगो  जंगलो शुरू किया, पत्तो से वस्त्र बनाये, पशुपालन किया, खेती की फिर  धीरे धीरे काम का बंटवारा हुआ होगा और उस समय काम चुनने की स्वतंत्रता जरूर रही होगी, जिसने जो चुना उसी पर चलता चला गया क्युकी वो उसमे सिध्दहस्त था, फिर परम्परागत रूप से उसने अपने बच्चो को सिखाया। 

और उस समय इतनी कड़ाई भी नहीं होगी की आप अपना काम न बदल सको, आपके अंदर क्षमता है तो बदल सकते होंगे, क्युकी उस समय कोई लिखित प्रमाण पत्र नहीं बनते थे, हां ये हो सकता है काम बदलने पर कुछ लोग सलाह देते होंगे कुछ ताना मारते होंगे, तो ये वही करते होंगे जिनके साथ आपने किया होगा, जो डोगे वही बापस मिलेगा। 

कालांतर में जैसे जैसे समय आगे बढ़ा लोगो को काम की अहमियत समझ होगी की ये काम बहुत जरुरी है ये कम जरुरी उसी के अनुसार सम्मान मिलने लगा होगा बस यही आगे चलता रहा और जब अंग्रेज आये तो इन सबको बढ़ा चढ़ा कर समाज में विद्वेष की भावना का बीज बोया जो स्वतत्रता के बाद आरक्षण के रूप में परिणित हुआ फिर कुछ एक्ट बने जिनका आज दुरूपयोग हो रहा है। 

साथ ही इस वर्ग विशेष के दिमाग में ये भर दिया गया है की तुम्हारे साथ अत्याचार हुआ है, और तुम्हारे आगे बढ़ने का कारण तुम्हारी कम मेहनत  हरामखोरी नहीं थी वल्कि सवर्ण वर्ग अत्याचार था, अब समाज दो से ज्यादा समाजो का बोझ धो रहा है जो धीरे धीरे वर्ग संघर्ष में परिणित होगा.     

आज ये वर्ग इतना शक्तिशाली है की संविधान में वर्णित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा पर रोक लगा सकता है और लगवा भी सकता है, इसके सामने संविधान के आर्टिकल २०, २१ २२ का कोई महत्त्व नहीं है, अगर कोई फिल्म बनाने की कोशिश करे जिसमे आरक्षण या दलित एक्ट का दूसरा पहलू दिखाने की कोशिश की जाए तो पूरा देश जलाने पर उतारू हो जायेगे, मजबूरन सरकार और कोर्ट उन फिल्मो और धारावाहिको पर रोक लगा देते है।