Official Blog of Ambrish Shrivastava: क्लाइंट के अभिमान को कैसे संतुष्ट करें?

Sunday, July 2, 2023

क्लाइंट के अभिमान को कैसे संतुष्ट करें?

 कभी-कभी हम अपने व्यवसाय में कुछ क्लाइंटों के साथ काम करते हुए अन्योन्य बैरियर (Mutual Barrier) का सामना करते हैं, जिनका व्यवहार और मानसिकता थोड़ी अलग होती है। कुछ ऐसे क्लाइंट होते हैं जो आपके साथ काम करने के बावजूद भी आपको या खुद को संतुष्ट नहीं करते, और उन्हें मस्टिक्स तक भावनाओं का साम्राज्य करने का अनिच्छित इरादा होता है। उनके इस व्यवहार के पीछे कुछ संभावित कारण क्या हो सकता है है इस लेख में उसी पर चरचा की गयी है ।



वैसे तो हम  अहंकार या ईगो शब्द का प्रयोग कर सकते थे, लेकिन चुकी क्लाइंट काम के बदले पैसे देतेहै इसलिए हम उसको थोड़ा साहित्यक लेकर चलते है और कहते है की ये अभिमान है यानि की Pride . 

स्वाभाविक आत्म-महत्ववाद: कुछ लोग अपने आप को अत्यधिक महत्वपूर्ण मानते हैं और वे चाहते हैं कि दूसरे उन्हें इसी तरीके से देखें। ऐसे लोगों का भावुकता और स्वाभाविक आत्म-महत्ववाद कारण हो सकता है कि वे इतना भाव खाते हैं।

अवसादन: कई बार, ऐसे लोग जिन्होंने अपने जीवन में किसी प्रकार का संकट या अवसाद अनुभव किया हो, उन्हें अधिक भावनात्मक बना सकता है। वे अपने आप को उस समस्या से बाहर निकालने के लिए दूसरों की उपयोगिता की तरफ आकर्षित हो सकते हैं, जिससे वे इतना भाव खाते हैं।

व्यावसायिक आदतें: कुछ लोग अपने व्यवसायिक आदतों और संघटनों में बहुत ज्यादा भावनात्मक होते हैं। उनके लिए, व्यवसाय में सफलता पाने के लिए दूसरों के साथ मजबूत संबंध बनाना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, और इसके लिए उन्हें इतना भाव खाना पड़ता है।

सामाजिक आवश्यकता: कुछ लोग अपनी सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दूसरों की प्रशंसा और मान्यता की आवश्यकता महसूस करते हैं। उन्हें यह आत्म-संरक्षण और सुरक्षा की भावना प्रदान करता है कि वे सामाजिक रूप से स्वीकृत हैं।

संरक्षण और सुरक्षा की भावना: कुछ लोग अपने आप को सुरक्षित और संरक्षित महसूस करने के लिए दूसरों की भावनाओं की ओर आकर्षित हो सकते हैं। वे यह सोचते हैं कि अगर वे दूसरों की भावनाओं का ठीक से सामर्थ्यपूर्ण रूप से संज्ञान करते हैं, तो वे खुद को संरक्षित महसूस करेंगे।

कुछ क्लाइंट इतना भाव खाते हैं यह कई तत्वों का परिणाम हो सकता है, जैसे कि उनकी व्यक्तिगत मानसिकता, व्यावसायिक आदतें, सामाजिक आवश्यकताएं, और संरक्षण की भावना। हमें उनके साथ सहयोगी और सहभागी बनकर काम करने का प्रयास करना चाहिए ताकि हम उनकी आवश्यकताओं को समझ सकें और उन्हें संतुष्ट कर सकें।

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