Official Blog of Ambrish Shrivastava: क्या : पाया खोया

Monday, April 14, 2008

क्या : पाया खोया


तकदीर ने जीवन ऐसा मोडा
कुछ पाया कुछ हमने छोडा


अपने ही कदमो की आहत सुन कर चोक गया हू
अभी तलक थी नीरव शान्ति ये क्या सुन पाया हू मै
न जाने किस जग मै जा कर फ़िर ये बन्धन हमने जोडा
कुछ पाया कुछ हमने छोड़ा


कभी कभी दिल थम जाता हे, बहता रक्त भी जम जाता हे
सोच बहुत छोटी होती हे, चलने मै उलझन होती हे
जीवन पथ पर चलते चलते हर रिश्ते को हमने तोडा
कुछ पाया कुछ हमने छोड़ा


क्या भूलू क्या याद करू मै, ये भी सोच रहा हू मै
यादो की उजड़ी बगिया मै न जाने क्या खोज रहा हू मै
न उजड़े ये फ़िर से बगिया हमने माली फ़िर से जोडा
कुछ पाया कुछ हमने छोडा

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