
जिन्दगी की आपाधापी और रिश्ते
नातों मे क्या खोया क्या पाया के गलियारों
मे चलते हुए इन्शांन की जिन्दगी मे कही
पर सोच का इक
नुक्कड़ आता
हें जहा
पहुच कर इन्शान अकांकी हो जाता हें और तब कही
जाग उठता उसके मन का सोया कवि , और फ़िर विचारो का दर्पण कलम के रस्ते शब्द बन कर कोरे कागज पर सदा के लिए अपना घर बना लेते
हे, मेने ये कविताये
ऐशे ही
पल्लो ऐशे ही छ्नो मे लिखी हे जब मेझो ये आभाष हुआ की अब सुनाने बाले और सुनाने बाले का अन्तर समाप्त हो कर सिर्फ़ ह्रदय का स्वर ही इस्पस्त है
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