आरक्षण मे लोकतंत्र
अभी हाल ही मे आरक्षण फिल्म के ऊपर न्यायलय , एस सी, एस टी कमीसन सभी ने कमर कस ली और इसको बार बार देखे जाने की बात कह कर कहा की इसे देखने के बाद ही वे फैश्ला करेगे की फिल्म को रिलीज़ होने देंगे या नहीं , कारन इसमें निम्न जाती के लोगो के खिलाफ उच्च जातीय लोगो का संघर्ष दिखाया गया है [ मुझे पता नहीं ये सही है नहीं एक अख़बार मे कुछ ऐसा ही लिखा था ] यहाँ पर मे एक बात जानना चाहता हू की कयाa उच्च जातीय लोगो की कोई गरिमा नहीं है, जो किसी भी फिल्म मे उनका शर्मशार करने वाला चेहरा दिखा देते है और तब कोई आयोग या न्यायलय कुछ नहीं पूछता, मेने बचपन से आज तक करीब ५००० से ज्यादा हिंदी, गुजराती, तमिल और कई छेत्रिय भासायो की फिल्मे देखि उनमे से ज्यातर फिल्मे मे ब्रह्मण , ठाकुरों और वेश्यो [बनिया, लाला ] का हमेशा ही शर्मशार करने वाला चेहरा दिखाया गया , पर तब किसी कमिसन या न्यायलय ने ये कह कर फिल्म पर रोक नहीं लगाई की ये समाज मे उच्च जाती के लिए गलत सन्देश देने वाली फिल्म है, या शायद उच्च जाती के लोग आजादी के बाद चतुर्थ श्रेणी के शरणार्थी नागरिक है की इनके लिए कुछ भी बोल दो कोई उस पर आपत्ति नहीं उठाएगा , क्युकी इनकी औकात ही क्या है चलो अच्छा है आज हमारे पूर्वज गाँधी, नेहरू, राजेंद्र प्रशाद , सुभाष चन्द्र बोस , भगत सिंह, आजाद बड़े खुश हो रहे होगे हमारी ये दुर्दशा देख कर , सायद यही उनका सपना था जो धीरे धीरे पूरा हो रहा है
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