Official Blog of Ambrish Shrivastava: ख़ामोशी की आवाज

Monday, February 27, 2012

ख़ामोशी की आवाज

कभी कभी जीवन मे ऐसी स्थिति आती है की आपस मे बात किये बिना काम नहीं चलता और बोलो तो दिमाग नहीं चलता उसी समय केलिए ये कविता है जो स्वयम को ही समर्पित है
ऐसी बात चीत से तो खामोसी बेहतर है
क्युकी दर्देदिल पर हर दबा बे अशर है
चाँद छूने की चाहत सर है
आस्मां पर मेरीनजर है
पर जमीन पर मेरा घर है
दर्देदिल पर हर दबा बे अशर है

गाव रोता रहा मुझे आवाज देकर
खुद कोखोता रहा मे शहर आ कर
पर समय चलता रहा पंखा लगा कर
दर्देदिल पर हर दबा बे अशर है
दिल मे अभी कुछ अरमान बाकी है
इस मैकदे मैमेरा भी एक शाकी है
खली जम लिए अब ताक्नी उसकी डगर है
दर्दे दिलपर हर दबा बे अशर है

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