गम का फ़साना तेरा भी है मेरा भी

एक दिन मूड में थे मित्र हमारे ।
आ धमके वो घर हमारे ।।

मित्र के जहाँ में जोश था ।
न खुद का पता था , न अपना ही होश था ।।

गले में बहे दल के बैठ गए वो पास हमारे ।
पूछने लगे की क्या हाल है तुम्हारे ।।

हमने भी फीकी हंसी के साथ जबबा धकेल दिया ।
सुन कर उन्होंने मुह का सारा पीक नाली में उड़ेल दिया ।।

पूछने लगे की भाभी जी नजर नहीं आ रही है ।
हमने भी मुस्करा कर कहा वो कल ही मायके जा रही है ।।

मित्र ने कहा तो क्या खाना होटल से लेकर आयेगे ।
हमने कहा, नहीं पहले भी बनाते थे अब भी बनायेगे ।।

मित्र ने बोला वो तो ठीक है, पर भाभी के दर्शन करबा दो ।
उनके हाथ की गर्म पकोड़ी और चाय पिल्बा दो ।।

हमने भी मित्र की अर्जी पर कहा, सुनो बिटिया की मम्मी जरा इधर आना ।
साथ में दो कप चाय और पकोड़ी लेती आना ।।

जानते है आप क्या जबाब आया ।
हम जो सोचते थे वही आया ।।

सुबह से गंदे पड़े है बर्तन धो कर जाओ ।
फिर सबके लिए चाय - पकोड़े बनाओ ।।

उस समय हम बड़े कशमश में थे, ऐसा लग रहा था जैसे आज लाज और शर्म के दो-रहे पर खड़े है ।
इतने में हमारे मित्र बोले अच्छा हम चलते है, हमारे घर भी बर्तन धोने को पड़े है ।।

मेरी बीबी भी मुझे खोजते हुए यहाँ आयेगी ।
अगर में मिल गया तो फिर मार लगाएगी ।।

Comments

anik said…
bahut khoob,kavita main samaj ka bahut hi samvedan sheel mudda uthaya gaya hai,