हड़तालो का कारन और जरुरत

हड़ताल की शुरुबात गाँधी जी ने अंग्रेजो के समय में की थी मिल मालिको से मजदूरों का अधिकार लेने के लिए ..वो एक जायज मांग थी क्युकी उस समय अंग्रेज मिल मालिक भारतीयों को कम पगार देते थे और ज्यादा काम लेते थे ...पर उसमे ध्यान ये रखा जाता था की आम जनता परेशान न हो , क्युकी उस समय हम गुलाम थे और एक गुलाम को दुसरे गुलाम से हमदर्दी थी ..आज हम आजाद हे आज हमारी परेशानी ही हमें परेशान करती हे ..बाकी देशवाशियो के बारे में हमने सोचना छोड़ दिया हे ..अगर हम किसी बात से दुखी हे तो बजाये उस दुःख का कोई आयुर्वेदिक उपचार खोजने के हम दूसरो को दुःख देने लगते है....यही आजादी हमने पायी हे हजारो देशभक्तों की जान देकर...आज सरकार से किसी भी बात को मनवाने का सिर्फ एक ही तरीका रह गया हे हम देश्बासियो के पास ..हड़ताल , सरकारी संपत्ति को नुकशान, आम जनता के लिए परेशानी पैदा करना और सरकार भी तब तक कुछ नहीं बोलती जब तक लाखो की सरकारी संपत्ति नष्ट नहीं हो जाती १००-२०० लोग जान से मरते नहीं है ..जब ये हो जाता है तो मरने बालो के आश्रितों मुआबजा, घायलों को मुआबजा, इत्यादी इत्यादी ..और इसके बाद हड़ताल करने बाले लोगो की मांगे भी मानते है ...आज सरकार पता नहीं क्यों इतनी सम्बेदन हीन हो गयी है ..वो ये सोच ही नहीं पाती है की अगर किसी चीज की मांग उसके देश की जनता कर रही है तो किसी भी तरह उसको पूरा करे तभी तो आजादी , लोकतंत्र का अर्थ होगा भारत देश के लिए ..पर पहले नहीं सुनती है ..जब देश का नुकशान होता है तो मजबूरी में मानते है ...पर इस सब में सही में नुकशान किसका हुआ ..हमारा हुआ, अभी जो १९-२२ फरबरी की हड़ताल है उसमे २०००० करोड़ का नुकशान होगा ऐसा अनुमान है ..अब आप ये सोचिये ये नुकशान किसके सर कर आएगा ..हमारे ..महगाई के रूप में ..पर अभी सब चुप है ...हमारा देश तरक्की इसलिए नहीं कर पाता है , हम ४ कदम आगे चलते है तो ६ कदम पीछे, लोग हड़ताल कर के अपनी पगार बढ्भाते है तो आगे महगाई अपना मुह खोले बेठी होती है उनके स्वागत के लिए, अगर हड़ताल नहीं करेगे तो उनकी मांगे कोंन मानेगा, अगर सरकार बिना हड़ताल के हुए मांगे मान लेगी तो चुनावो में हमदर्दी केसे बटोरेगे, आज हालत ऐसे है की किसी को देश की चिंता नहीं है ..आम आदमी को अपनी जेब और अपनी परेशानी दीखते है और सरकार को चुनाव और अपनी पार्टी ...अगर देश में ये सारी मुश्किलें न होती तो आज हम अमेरिका को हर क्षेत्र में मात दे रहे होते...आज हड़ताले राजनेतिक कारणों से हो रही है ..आर्थिक और सामाजिक कारन हड़तालो के लिए उतने उत्तरदायी नहीं है ....  

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