Democracy for all

आज जो भारत देश की स्तिथि है उसे देखकर नहीं लगता की ये बाकई में एक लोकतंत्र है। यहाँ पर नियम और कानून जाती और धर्म के नाम पर अलग अइ परिभासित है। छेत्र का एक अलग आधार है । जहा हिन्दू के लिए 1 ऐ ज्यादा जीवित पत्नी नहो होने का विधान है वाही मुस्लमान 3 तक कर सकता है शादी। जहा पर हम लोगो कओ पंडित ठाकुर बनिया या लाला बुला सकते है पर किसी दलित को जाती से बुलाया तो लगा हरिजन एक्ट । नार्थ ईस्ट के लोगो को पहाड़ी इलाके ले लोगो को जम्मू के निवासियो को मैदानी भागो से ज्यादा सुविधाये दी जाती है इसलिए की वो दूर रहते है। एक और हम महिला और पुरुष के बराबर होने की बकालत करते है वही दूसरी और महिला आरक्छन और अतिरिक्त सुरक्छा की बात करते। समाज को सबके लिए सुरक्छित बनाने की बात नहीं करते । भारत देश एक धर्मनिर्पेक्छ देश है ये संबिधान में लिखा है पर धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक है। उनको सरकारी सुविधाये है। क्या ये सब देश को बाटने का काम नहीं कर रहे है? बिलकुल कर रहे है। संसार का हर प्राणी अपनी उन्नति चाहता है और जब उसकी उन्नति में कोई भी बाधा आती है तो वो उसे उखाड़ फेकना चाहता हा।
यही हाल आज भारत देश की डेमोक्रिसी का है अब ये डेमोक्रेसी दिखावे की लगने लगी है।
अब इस डेमोक्रेसी में वास्तिविक डेमोक्रेसी जैसा कुछ नहीं है। ये वो डेमोक्रेसी है जिसे हम अवसरवादिता के नाम से जानते है। आज नेता लोग वाही बोलते है जिससे उनका दूर तक फायदा हो एयर आम नागरिक उनके चंगुल में फसा रहे।

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