भारतीय सम्बिधान का अधूरापन

आज ज्यादातर लोगो का ऐसा मानना है की आंबेडकर जी भारतीय सम्बिधान के जनक एवं निर्माण करता है, उन्होंने काफी मेहनत, २ साल तक उस पर बहस चली इत्यादि इतयादि, पर क्या वास्तव में भारतीय सम्बिधान एक मौलिक रचना है, क्या वाकई मजे इसे भारतीय समाज को ध्यान में रख कर रच गया है, क्या वास्तव में इसकी रचना से पहले हमने पुरे भारतीय समाज को ठीक से समझा था, शायद बिलकुल नहीं और आज भी कानून को बनने से पहले हमारे कानून के निर्माता पुरे समाज का ध्यान नहीं रखते बस एक वर्ग जिसका उन पर ज्यादा दबाब बन गया उनके फायदे के लिए कानून बना दिया,बाकि जनता को तब देखा जायेगा जब वो भाग आंदेलन करेगी या उग्र रूप लेकर के तोड़ फोड़ करेगी,

आज दलितों और महिलाओं का एक वर्ग चीख चीख कर कहता है की भारतीय समाज में हमारे साथ बहुत भेदभाव किया गया, हमे बहुत पीड़ित और प्रताड़ित किया गया, हमे सदैव दबाए रखा, उनसे पूछो की इसका क्या प्रमाण है, तो जबाब में सिर्फ एक  ही नाम आता है वो है  मनुस्मृति का, इसमें हर वर्ग के दायित्वों का   चित्रण है, ये उस समय के समाज को नियंत्रित और व्यवस्तिथ करने का सबसे सही तरीका रहा होगा । क्योंकि अगर कार्यो के बटवारे के साथ बाकी का वातावरण नही दिया जायेगा तो कार्य सही से नही हो सकता ।


जैसे आज के परिवेश में अगर देश के सेनिको और पोलिस के जवानो को गर्मी के वातानुकूलित गाड़िया दे दी जाये तो क्या वो भरी धूप में उस गाड़ी से निकल कर कोई काम करेगे और अगर काम नही करेगे तो उस कानून व्यवस्था को समाज में कैसे बनाये रख पायेगे जो हमारे संसद सदस्य वतानुकूलत संसद में बैठ कर बनाते है या उच्च व सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीस वातानुकूलित न्यायलय में बैठ कर बनाते है ।

चलिए मनु smriti एक गुजरे समय की बात है जिसे किसी भी राजा ने राजकीय नियम घोसित nhi किया था फिर भी जब संबिधान का निर्माण या ये कहिये बने बनाये संबिधान पर आभासी बहस चल रही थी तो मनुस्मिर्ति को ऐसा आधार बनाया गया जैसे अभी तक देश का शासन उसी से चल रहा हो और हम अंग्रेजो से आज़ादी नही ले रहे हो वल्कि मनु smriti से आजादी ले रहे हो ।

खैर संबिधान बन गया अगस्त 2015 तक 100 संसोधन भी गए क्यों हुए, किसी स किसी ने नही सोचा । ये इसलिए हुए क्योंकि जब हम उधार के नियमो को अपना रहे थे उस समय हमने भारतीय समाज का रत्ती भर अध्यन नही किया बस ले लिया उधार आज जब कही से कोई समस्या आती है तो वो संबिधान की जड़े हिला देता है और फिर शुरू होता है संबिधान संसोधन का सिलसिला ।

इसलिए संबिधान अधूरा है क्योंकि इसमें भारतीय समाज को लेकर कोई मौलिकता नहीं है बस दलितों ने आंदोलन किया तो उनको सुविधाये दे दी महिलाओ ने किया तो उनको दे दी पिछडो ने आंदोलन किया तो उनको देदी मुस्लिमो ने तोड़फोड़ की तो उनको सुबिधाये दे दी बिना ये सोचे की इन प्रावधानों का बाकि समाज पर क्या असर पड़ेगा।

आज ज्यातर लोगो को आरक्छन जो की जाती धर्म और लिंग के आधार पर दिया जाना न्याय संगत और तर्क संगत लग रहा है पर क्या आज के 100 सालो के बाद यही विभेद का आधार इस संबिधान को वैसे ही गलियो का भागीदार नहीं बनाएगा जैसे  आज लोग मनुस्मर्ती को गालिया देते है ।

समाज में वर्गों के बीच भेदभाव किसी भी आधार पर किया जाये ये आगामी समय में वर्ग संघर्ष का आधार बनेगा ही और अगर केंद्रीय सत्ता देश या प्रदेश के नागरिको के मध्य किसी भी आधार पर भेदभाव करे तो उस देश या प्रदेश के नागरिक कभी एक नही हो सकते उनके बीच वैमनस्यता कभी समाप्त नही हो सकती । इस हालात में हर वर्ग सत्ता के ज्याद निकट जाने के लिए अलग अलग समूह में बटने लगता है और ये बाटने काम भारत देश में स्वयं संबिधान को आधार बना कर देश की सरकारें कर रही है पर सरकार तो 5 साल के लिए है और संबिधान, ये तो एक सास्वत पुस्तक है इसलिए आरोप इस पर ही लगेगा इसलिए अधूरा तो संबिधान ही हुआ जो की देश के समस्त नागरिको को एकजुट करने में अक्छम रहा ।

मानवता आप तभी दिखा सकते है जब आपकी मुलभुत जरूरते पूरी हो जाये अगर किसी भी भेदभाव जो की देश की सरकारे कर रही है और उसके कारण आपकी जरुरत पूरी होने में बाधा आ रही है तो आप भी वहाँ बाकियो के साथ भेदभाव करेगे जहा पर भी आपके हाथ में किसी भी प्रकार की सत्ता है ।

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