men vs women
आज हमारा तथाकथित आधुनिक समाज समाज में नर और नारी की समानता के लिए जी जान से लगा हुआ है । इस नए वर्ग का उदय अठ्ठारवी शताव्दी के पूर्वार्ध में हुआ जिस समय राजा राम मोहन रॉय, ईश्वरचंद विद्या सागर जैसे विद्वान लोग विद्ध मान थे । मुझे उस समय की जिस सामाजिक ढांचे के बारे में पुस्तको में जो भी कुछ पढ़ने को मिला वो इसी वर्ग के लेखको द्वारा रचित है और इसमें इन लोगो ने नारी की पीड़ा को बहुत ही मार्मिक तरीके से दर्शाया है ।
पर जैसा की मुझे लगता है नारी की जिस दुर्दशा का वर्णन इन महा पुरुषो ने अपने दर्र्ष्टिकोण से किया है वो एकपक्षीय है । भारतीय समाज में नारी सदा से ही परिवार और खानदान की इज्जत मान और सम्मान की आधारशिला रही है ।
अगर हम रामायण काल की बात करे तो हनुमान जी एक दूत बन कर लंका गए थे उनका कही भी ये उद्देश्य नही था की वो लंका को आग लगायेगे पर जब उन्होंने तत्कालीन वातावरण में रावण को माता सीता के साथ दुर्व्यवहार करते देखा तो स्वतः ही वो दूत से एक पारिवारिक सदस्य बन गए और सुग्रीव के सेवक की जगह श्री राम के सेवक बन गए और लंका को विध्वंश कर दिया ।
दूसरा अगर देखे तो महाभारत काल में कौरवो ने 2 बार राज्य हड़पा आग लगायी फिर भी भीम ने कोई प्रतिज्ञा नही की मगर द्रोपदी के अपमान के कारण उन्होंने ऐसी प्रतिज्ञा ली जो उस समय तर्क संगत और न्याय संगत नही थे क्योंकि जंघाओं पर गदा युध्य में प्रहार वर्जित है ।
अब प्रश्न आता है इन महा पुरुषो को ही नारी की दुर्दशा क्यों दिखी नारी और उसके परिवार के लोगो को क्यों नही दिखी इसका तात्कालिक कारण था बच्चों को पालने के लिए पुरुष का दूसरा विवाह , मुग़ल काल में कई दलितों का मुस्लिम धर्म अपना कर 1 से अधिक विवाह करना और उनकी मृतु के बाद उन सभी महिलाओ का बापस अपने हिन्दू माता पिता के साथ या हिन्दू सास ससुर के घर आ जाना वहा पर उनके पति के धर्म परिवर्तन के पाप का दंड इन महिलाओ को देना ।
अब समाज में किसने क्या किया किसके पति ने क्या किया ये देखा और फिर न्याय किया तो फिर वो समाज सुधारक किस बात का, समाज सुधारक माने समाज सुधारक उसे तो सबका दुःख दूर करना है कारण जो भी हो इन जैसी तमाम महिलाओ को न तो अपने मायके में सम्मान मिलता था और न ही ससुराल में तो फिर इनको सम्मान देगा काउन और इनका दोष भी कोई नही था ।
उस समय का जो तात्कालिक कारण था वो वांछनीय और न्यायसंगत था क्योंकि स्त्रियों को वास्तव में अपने पती के मरने के बाद कोई सम्मान नही देता था पर धीरे धीरे उन्नीसवी सदी के पूर्वार्ध तक कुछ संभ्रांत घरो के महिलाओ ने भी नारी जागरण के लिए प्रयास किया जिनमे कई नाम मिलेगे पर उनका काम समाज को एक सही दिशा में ले जाना रहा ।
हम चाहे अहिल्या बायीं होलकर की बात करे या झलकारी बायीं की बात करे या जोधा बायीं की बात करे या लक्ष्मी बायीं की बात करे इन सबने समाज को एक सकारात्म दिशा दी न की खुद के सुख के लिए समाज की कुछ परम्पराओ को तोडा ।
अब बीसवी और इक्कीसवी सदी की बात करे तो ये सशक्ति करण समाज के नही है वल्कि खुद के सुख के लिए है पर हम आज भी इसबात का दावा नही कर सकते की सभी महिलाओ का यही हाल है ।
आज भी कई पढ़ी लिखी महिलाये अपने घर परिवार और बच्चों के लिए अपनी सुंदरता और कैरियर का मोह छोड़ देती है और कुछ महिलाये अपने कॅरियर और सुंदरता के लिए गर्भ में आये बच्चे का मोह छोड़ देती है ।
आज एक घरेलु महिला जो सुखी होकर अपने घर परिवार और बच्चों की देखभाल करती है वो भी आम तौर पर अपने काम काजी पति से शाम को इतने सवाल करती है की उन सभी का जबाब देना पुरुष के लिए मुश्किल है लेकिन फिर भी वो महिला ये चाहती है की मुझे सब पता होना चाहिये पति विनम्र भी हो हमारा ख्याल भी रखे जरुरत भी पूरी करे और काम भी करे शांत भी रहे ।
अगर हम 1000 ऐसी काम काजी महिलाओ का सर्वे करे जिनके पति किसी भी कारण से काम नही करते और देखे की की वे अपने परिवार के साथ कैसे वर्ताव करती है कैसे अपने और अपने पति के माता पिता का ध्यान रखती है । साथ ही हम उनके पतियो को ये भी सलाह देगे की आपको अपनी पत्नी से शाम को ये सवाल पूछने है तो हम पायेगे के इन 1000 में से 900 महिलाओ का अपने पति से रोज झगड़ा होगा और बाद में ये महिलाये अपने पति से ये जरूर कहेगी की अगर मुझ पर इतना ही शक है यो खुद कमा कर लाओ मुझे कोई शौक नही है नौकरी करने का में तो तुम्हारा घर ही चला रही हूँ ।
पर सोचिये क्या पुरुष उन रोज के सवालो से जूझ कर भी ऐसा जबाब दे सकता है । एक बार सोचिये और पुरुष को भी एक जीवधारी ही समझिये।
पर जैसा की मुझे लगता है नारी की जिस दुर्दशा का वर्णन इन महा पुरुषो ने अपने दर्र्ष्टिकोण से किया है वो एकपक्षीय है । भारतीय समाज में नारी सदा से ही परिवार और खानदान की इज्जत मान और सम्मान की आधारशिला रही है ।
अगर हम रामायण काल की बात करे तो हनुमान जी एक दूत बन कर लंका गए थे उनका कही भी ये उद्देश्य नही था की वो लंका को आग लगायेगे पर जब उन्होंने तत्कालीन वातावरण में रावण को माता सीता के साथ दुर्व्यवहार करते देखा तो स्वतः ही वो दूत से एक पारिवारिक सदस्य बन गए और सुग्रीव के सेवक की जगह श्री राम के सेवक बन गए और लंका को विध्वंश कर दिया ।
दूसरा अगर देखे तो महाभारत काल में कौरवो ने 2 बार राज्य हड़पा आग लगायी फिर भी भीम ने कोई प्रतिज्ञा नही की मगर द्रोपदी के अपमान के कारण उन्होंने ऐसी प्रतिज्ञा ली जो उस समय तर्क संगत और न्याय संगत नही थे क्योंकि जंघाओं पर गदा युध्य में प्रहार वर्जित है ।
अब प्रश्न आता है इन महा पुरुषो को ही नारी की दुर्दशा क्यों दिखी नारी और उसके परिवार के लोगो को क्यों नही दिखी इसका तात्कालिक कारण था बच्चों को पालने के लिए पुरुष का दूसरा विवाह , मुग़ल काल में कई दलितों का मुस्लिम धर्म अपना कर 1 से अधिक विवाह करना और उनकी मृतु के बाद उन सभी महिलाओ का बापस अपने हिन्दू माता पिता के साथ या हिन्दू सास ससुर के घर आ जाना वहा पर उनके पति के धर्म परिवर्तन के पाप का दंड इन महिलाओ को देना ।
अब समाज में किसने क्या किया किसके पति ने क्या किया ये देखा और फिर न्याय किया तो फिर वो समाज सुधारक किस बात का, समाज सुधारक माने समाज सुधारक उसे तो सबका दुःख दूर करना है कारण जो भी हो इन जैसी तमाम महिलाओ को न तो अपने मायके में सम्मान मिलता था और न ही ससुराल में तो फिर इनको सम्मान देगा काउन और इनका दोष भी कोई नही था ।
उस समय का जो तात्कालिक कारण था वो वांछनीय और न्यायसंगत था क्योंकि स्त्रियों को वास्तव में अपने पती के मरने के बाद कोई सम्मान नही देता था पर धीरे धीरे उन्नीसवी सदी के पूर्वार्ध तक कुछ संभ्रांत घरो के महिलाओ ने भी नारी जागरण के लिए प्रयास किया जिनमे कई नाम मिलेगे पर उनका काम समाज को एक सही दिशा में ले जाना रहा ।
हम चाहे अहिल्या बायीं होलकर की बात करे या झलकारी बायीं की बात करे या जोधा बायीं की बात करे या लक्ष्मी बायीं की बात करे इन सबने समाज को एक सकारात्म दिशा दी न की खुद के सुख के लिए समाज की कुछ परम्पराओ को तोडा ।
अब बीसवी और इक्कीसवी सदी की बात करे तो ये सशक्ति करण समाज के नही है वल्कि खुद के सुख के लिए है पर हम आज भी इसबात का दावा नही कर सकते की सभी महिलाओ का यही हाल है ।
आज भी कई पढ़ी लिखी महिलाये अपने घर परिवार और बच्चों के लिए अपनी सुंदरता और कैरियर का मोह छोड़ देती है और कुछ महिलाये अपने कॅरियर और सुंदरता के लिए गर्भ में आये बच्चे का मोह छोड़ देती है ।
आज एक घरेलु महिला जो सुखी होकर अपने घर परिवार और बच्चों की देखभाल करती है वो भी आम तौर पर अपने काम काजी पति से शाम को इतने सवाल करती है की उन सभी का जबाब देना पुरुष के लिए मुश्किल है लेकिन फिर भी वो महिला ये चाहती है की मुझे सब पता होना चाहिये पति विनम्र भी हो हमारा ख्याल भी रखे जरुरत भी पूरी करे और काम भी करे शांत भी रहे ।
अगर हम 1000 ऐसी काम काजी महिलाओ का सर्वे करे जिनके पति किसी भी कारण से काम नही करते और देखे की की वे अपने परिवार के साथ कैसे वर्ताव करती है कैसे अपने और अपने पति के माता पिता का ध्यान रखती है । साथ ही हम उनके पतियो को ये भी सलाह देगे की आपको अपनी पत्नी से शाम को ये सवाल पूछने है तो हम पायेगे के इन 1000 में से 900 महिलाओ का अपने पति से रोज झगड़ा होगा और बाद में ये महिलाये अपने पति से ये जरूर कहेगी की अगर मुझ पर इतना ही शक है यो खुद कमा कर लाओ मुझे कोई शौक नही है नौकरी करने का में तो तुम्हारा घर ही चला रही हूँ ।
पर सोचिये क्या पुरुष उन रोज के सवालो से जूझ कर भी ऐसा जबाब दे सकता है । एक बार सोचिये और पुरुष को भी एक जीवधारी ही समझिये।
Comments