What quran says about triple talaq in hindi
तीन तलाक़ की ज्ञानहीन-बहसों के दौरान..सोचा..इस सन्दर्भ में मूल-ग्रन्थ का आशय स्पष्ट किया जाये। तलाक़ क्या सिर्फ तीन शब्द तलाक़ ...तलाक़...तलाक़...बोलने मात्र से हो जाती है? इस बारे में क़ुरआन क्या कहता है..और सबसे बढ़कर "कैसे" कहता है? यह जानना रोमांच से भरपूर लगता है। तलाक़ अरबी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ विच्छेद के है। यह विवाह विच्छेद के लिए ही विशेष है और विवाह के सन्दर्भ में ही प्रयोग होता है। इस्लाम से पूर्व तलाक़ की अवधारणा विश्व में लगभग कहीँ नहीँ थी ("शहीद", "ईमान" "स्त्री-धन" आदि इस्लाम की विश्व को दी गयी अन्य अवधारणाओं की तरह)। विश्व में तलाक़ की अवधारणा यदि कहीँ भी है तो वह इस्लाम से ही ली गयी है। मानव जीवन में तलाक़ की अपनी महत्ता है जो थोड़े से चिंतन से समझी जा सकती है। इन सब बातों से परे इस्लाम का मूल ग्रन्थ जहाँ से इस्लाम की उत्पत्ति हुई है, वह ग्रन्थ 'क़ुरआन', तलाक़ के बारे में क्या कहता है, यह जानना रोचक होगा। क़ुरआन में एक पूरा अध्याय है जिसका नाम है 'अल-तलाक़'। इसका अध्याय नम्बर 65 है। इस सूरत की पहली, दूसरी और तीसरी आयतें तलाक़ देने के बारे में हैँ, आईये उन मात्र तीन आयतों का अवलोकन करते हैँ:
ऐ सन्देश-वाहक!!
जब आप लोग स्त्रियों को तलाक़ (सम्बन्ध-विच्छेद) उनकी समयावधि के लिए दो, तो उस अवधि का आंकलन कर लो।
ईश्वर-महान से डरो जो तुम सब का पालनहार है। उन्हे (स्त्रियों) उनके घरों से न निकालो और न ही उन्हें स्वयं अपने घरों को त्यागना चाहिए सिवाय इस अपवाद के कि वे कोई स्पष्ट व्यभिचारिता की अपराधी हों।
यह ईश्वर-महान की सीमायें हैँ, तो जो कोई ईश्वर-महान की सीमाओं को लांघता है, तो वह अपनी जान पर ज़ुल्म करता है। तुम नहीँ जानते कि ईश्वर-महान किसी घटना के बाद कुछ अच्छा घटित कर दे। (आयत - 1)
तो जब वे (स्त्रियां) अपनी समयावधि को पूरा कर लें, फिर या तो उन्हें भलाई के साथ रोक लो या भलाई के साथ विदा (सम्बन्ध-विच्छेद) कर दो और अपने में से दो ईमानदार व्यक्तिओं को इस बात का साक्षी बना लो, और साक्ष्य ईश्वर-महान के लिए स्थापित करो। यह वे बातें हैँ जिनके साथ तुम्हें निर्देश दिया जाता है, तो जो कोई ईश्वर-महान और अंतिम दिन पर विश्वास रखता है और ईश्वर-महान से डरता है, तो ईश्वर-महान उसके लिए कोई न कोई रास्ता निकाल ही देता है। (आयत - 2)
और ईश्वर-महान ऐसे व्यक्ति को वहाँ से देता है जहाँ से वह सोच भी नहीँ सकता। तो जो कोई ईश्वर-महान पर भरोसा रखता है तो ईश्वर-महान उसके लिए पर्याप्त है। ईश्वर-महान का आदेश पूर्ण होकर रहता है। ईश्वर-महान ने प्रत्येक वस्तु के लिए नीति की रचना कर रखी है। (आयत - 3)
ऐ सन्देश-वाहक!!
जब आप लोग स्त्रियों को तलाक़ (सम्बन्ध-विच्छेद) उनकी समयावधि के लिए दो, तो उस अवधि का आंकलन कर लो।
ईश्वर-महान से डरो जो तुम सब का पालनहार है। उन्हे (स्त्रियों) उनके घरों से न निकालो और न ही उन्हें स्वयं अपने घरों को त्यागना चाहिए सिवाय इस अपवाद के कि वे कोई स्पष्ट व्यभिचारिता की अपराधी हों।
यह ईश्वर-महान की सीमायें हैँ, तो जो कोई ईश्वर-महान की सीमाओं को लांघता है, तो वह अपनी जान पर ज़ुल्म करता है। तुम नहीँ जानते कि ईश्वर-महान किसी घटना के बाद कुछ अच्छा घटित कर दे। (आयत - 1)
तो जब वे (स्त्रियां) अपनी समयावधि को पूरा कर लें, फिर या तो उन्हें भलाई के साथ रोक लो या भलाई के साथ विदा (सम्बन्ध-विच्छेद) कर दो और अपने में से दो ईमानदार व्यक्तिओं को इस बात का साक्षी बना लो, और साक्ष्य ईश्वर-महान के लिए स्थापित करो। यह वे बातें हैँ जिनके साथ तुम्हें निर्देश दिया जाता है, तो जो कोई ईश्वर-महान और अंतिम दिन पर विश्वास रखता है और ईश्वर-महान से डरता है, तो ईश्वर-महान उसके लिए कोई न कोई रास्ता निकाल ही देता है। (आयत - 2)
और ईश्वर-महान ऐसे व्यक्ति को वहाँ से देता है जहाँ से वह सोच भी नहीँ सकता। तो जो कोई ईश्वर-महान पर भरोसा रखता है तो ईश्वर-महान उसके लिए पर्याप्त है। ईश्वर-महान का आदेश पूर्ण होकर रहता है। ईश्वर-महान ने प्रत्येक वस्तु के लिए नीति की रचना कर रखी है। (आयत - 3)
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