Why caste community and gender based reservation useless in india
अभी हमारा देश आजाद ही हुआ था और हमने आजादी का महत्त्व भी नही जान पाया था की कुछ स्वार्थी लोगो में अपना राजनेतिक उल्लू सीधा करने के लिए समस्त नागरिको को जाती धर्म और लिंग के आधार पर बाटने के लिए सबके लिए अधिकारो की मांग शुरु कर दी ।
सुनने में सबको अच्छा लगेगा की सबको अधिकार मिलने चाहिए पर वो अधिकार किस कीमत पर मिल रहे है हमे ये भी देखना चाहिए ।
आज़ादी की जो लड़ाई हम समस्त देश वासियो ने मिलकर लड़ी आज हम बाँट दिए गए है । जाती के नाम पर धर्म के नाम पर पार्टी के नाम पर और अब तो स्त्री और पुरुस के नाम पर भी बटवारे की बात चलती है ।
हम सब जानते है की अगर आपकी किसी भी कमजोरी के कारण आपको समाज में वरीयता या लाभ मिलने लगेगा तो आप उस कमजोरी को हमेशा अपने साथ रखना चाहोगे फिर उसके लिए आपको कुछ भी करना पड़े ।
यही हालात देश में दलितों पिछडो मुश्ल्मानो और महिलाओ के लिए भी कही जा सकती है । कई बार सुनने को मिलता है की आईएस बनने के बात भी उसे चपरासी ने पानी नही पिलाया पर सोचिये किस व्यवस्था ने उसे योग्य होने के बाद भी चपरासी बनने पर मजबूर कर दिया । शायद ये उस आईएस ने कभी नही सोचा होगा और वो सोचेगा भी क्यों ।
आज जो पिछड़ा पन है वो आर्थिक शैक्षिक या सामाजिक नही है वल्कि अब नेटिक पिछड़ापन है जिसमे ये वर्ग अपने अलाबा किसी और का दर्द समझ ही नही पाता है ।
आज देश में आरक्छन व्यवस्था के चलते 60 साल हो गए है यानि जिसने पहली बार लिया होगा आज वो 80 साल ले आस पास होगा । मोटे तौर पर देखे तो 4 पीढ़िया निकल गयी पर आरक्छन का फायदा सबको नही मिला क्यों ।
अगर किसी दलित पिछड़े या मुसलमान से पुछो तो वो सवर्णों को गरियाबे लगेगा पर सत्य ये है की सीट कम होती है और उनके ही बिरादरी के सक्षम लोग उनके हिस्सों की सीटो पर कब्ज़ा कर लेते है उसके जैसा ही जाती का सर्टिफिकेट लगा कर ।
तो कमीनापन करे आपके अपने लोग और दोष देश की सर्कार को अमीरो को और सवर्णों को । इसलिए बेहतर ये होगा की सबकी शिक्षा मुफ़्त और आरक्छन किसी को नही।
सुनने में सबको अच्छा लगेगा की सबको अधिकार मिलने चाहिए पर वो अधिकार किस कीमत पर मिल रहे है हमे ये भी देखना चाहिए ।
आज़ादी की जो लड़ाई हम समस्त देश वासियो ने मिलकर लड़ी आज हम बाँट दिए गए है । जाती के नाम पर धर्म के नाम पर पार्टी के नाम पर और अब तो स्त्री और पुरुस के नाम पर भी बटवारे की बात चलती है ।
हम सब जानते है की अगर आपकी किसी भी कमजोरी के कारण आपको समाज में वरीयता या लाभ मिलने लगेगा तो आप उस कमजोरी को हमेशा अपने साथ रखना चाहोगे फिर उसके लिए आपको कुछ भी करना पड़े ।
यही हालात देश में दलितों पिछडो मुश्ल्मानो और महिलाओ के लिए भी कही जा सकती है । कई बार सुनने को मिलता है की आईएस बनने के बात भी उसे चपरासी ने पानी नही पिलाया पर सोचिये किस व्यवस्था ने उसे योग्य होने के बाद भी चपरासी बनने पर मजबूर कर दिया । शायद ये उस आईएस ने कभी नही सोचा होगा और वो सोचेगा भी क्यों ।
आज जो पिछड़ा पन है वो आर्थिक शैक्षिक या सामाजिक नही है वल्कि अब नेटिक पिछड़ापन है जिसमे ये वर्ग अपने अलाबा किसी और का दर्द समझ ही नही पाता है ।
आज देश में आरक्छन व्यवस्था के चलते 60 साल हो गए है यानि जिसने पहली बार लिया होगा आज वो 80 साल ले आस पास होगा । मोटे तौर पर देखे तो 4 पीढ़िया निकल गयी पर आरक्छन का फायदा सबको नही मिला क्यों ।
अगर किसी दलित पिछड़े या मुसलमान से पुछो तो वो सवर्णों को गरियाबे लगेगा पर सत्य ये है की सीट कम होती है और उनके ही बिरादरी के सक्षम लोग उनके हिस्सों की सीटो पर कब्ज़ा कर लेते है उसके जैसा ही जाती का सर्टिफिकेट लगा कर ।
तो कमीनापन करे आपके अपने लोग और दोष देश की सर्कार को अमीरो को और सवर्णों को । इसलिए बेहतर ये होगा की सबकी शिक्षा मुफ़्त और आरक्छन किसी को नही।
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