उदारता या कायरता
अभी गुर्जर आंदोलन में मेने देखा १ ७० साल का बूढ़ा भी लगा था, क्या वो अपने लिए पटरिया उखड रहा था, नही वो अपने नातियों के लिए मेहनत कर रहा था, क्यों नही हम भी अपने आने वाले बच्चो के भविष्य के बारे में सोच कर कुछ करते है, आखिर जो लोग ७० साल में आरक्छन लेकर कुछ नही कर पाए वो आगे भी कुछ कर पाएंगे इसकी क्या गारंटी है, वल्कि उनके चक्कर में ऊँची जाती के लोग पिछड़ते जा रहे है।
आज भी जब भी बहस होती है हम लोग सोचते है की कही कोई हम पर संकुचित मनोवृत्ति का आरोप न लगा दे, दलित या पिछड़ा विरोधी होने का आरोप न लगा दे इसलिए जातिगत आरक्छन की बहस से भागते है, पर सोचिये आपके बच्चो का क्या होगा, क्या वो आपको गालिया नही देंगे जब देखेगे की एक वर्ग आभासी जातिवाद का आरोप लगा कर मलाई मार रहा है दो वक्त की रोटी भी नही मिल रही है।
आज हम लोग वही गलती खामोश रहकर कर रहे है जो हमारे पूर्वजो ने संबिधान निर्माण और जमींदारी उन्मूलन अधिनियम के समय की थी, उनको भरोषा दिया गया था की आरक्छन सिर्फ १० साल के लिए है और जमीन हम सभी लोगो में बटेगे, पर आरक्छन वोट बैंक से जुड़ गया और हमारे पूर्वजो के पास उस समय न प्रशासनिक शक्ति थी, न भूमि थी और न ही जनसँख्या के रूप में वोट बैंक, और उनकी ही उदारता का खामियाजा हम लोग देख रहे है , फ्री मुक्ति, आयु मुक्ति, किराया मुक्ति, बजीफा, फ्री शिक्षा, नम्बर में छोट कुल मिलकर हर जगह छूट ही छूट दी जा रही है और कहने को देश धर्म निरपेक्ष और समाजवादी है, और इस समाज में सवर्ण समाज का कोई स्थान नही है।
हमारे पूर्वजो की उदरता थी थी, जो आरक्छन आज ७०% तक होने लगा है, और अगर हम लोग नहीं जागे तो हमारे बच्चे मनरेगा में नाम लिखते फिरेंगे और तब भी ये लोग हमारे बच्चो को नीचा ही दिखाएंगे की बड़े बनते थे जमींदार के पोते अब खोदो गद्दा, इनके बाप दादाओ में हमारे बाप दादाओ पर बहुत जुल्म किया था इसलिए इनपर भी होना चाहिए, मतलब ये लोग भी हमे और हमारे पूर्वजो को गालिया देंगे और हमारे वंशज भी, इसलिए मूर्खो के चक्कर में पड़कर बड़े व्यवसाइयों को गाली मत दो किंगफ़िशर और सहारा में लाखो लोग काम करते थे, आज विजय तो अपने अंदाज में जी रहा है पर लाखो कर्मचारी सड़क पर आ गए, और ये कर्मचारी किसी आरक्छित वर्ग के नही है वल्कि हमारे जैसे ही ऊँची जाती के है जिनको सरकार टके के भाव भी नही पूछती है।
Comments