हम आपस में एक दूसरे से क्यों लड़े


राजनीतिक व्यक्तियों या दलों का समर्थन अपने आप में एक अफीम का नशा है, जिसमे एक दल या व्यक्ति का समर्थक दूसरे दल या व्यक्ति के समर्थक को बहुत ही द्वेष और घृणा से देखता है, और कभी कभी बहस में भाषा का स्तर कितना नीचे गिर जाये इसका कोई मात्रक नहीं होता, उसका सबसे बड़ा कारन होता है, अपनी पूर्वग्रही मानसिकता को सुरक्षित रख कर दुसरो को बदलने का प्रयास करना, मतलब जो विचार मेरे है वही सर्वथा सही है, और तुम गलत हो उसको सुधारने की जरूरत है, क्या ये सही है, नही, हम सब अपने विचारो के लिए स्वतंत्र है, अपनी दृस्टि, जाती धर्म और आस्था के अनुसार किसी भी राजनीतिक व्यक्ति या पार्टी का समर्थन कर सकते है, कोई दूसरा हमसे ये अधिकार कैसे छीन सकता है।

यह तक का काम कैसे भी चल जायेगा, पर जब राजनीतिक दल या व्यक्ति के समर्थक देश से ऊपर अपने नेता या दल को मानते है तो ये व्यक्तिगत समस्या न होकर एक सामाजिक समस्या बन जाती है, जैसे आप किसी आ नामक दल के समर्थक है और अब आपके क्षेत्र में बी दल का संसद सदस्य है या विधायक है, और मान लो अपने किसी अपने मित्र से कह दिया की अपने यहाँ की सड़के बहुत ख़राब है तो बी पार्टी का समर्थक आपकी बात का समर्थन करने के बजाये बोलेगा की जब आ पार्टी का व्यक्ति था तब भी ऐसी ही थी, ये जो हम लोग अपने नेता और पार्टी का ये कह कर संरक्छन करते रहते है, यही इस नेताओ के जितने का रहस्य है, एक व्यक्ति दूसरे से अपने अपने नेता के लिए लड़ रहे है, और ऊपर पता नही कब दोनों नेता आपस में गठबंधन करके सत्ता हथिया ले, पर नीचे लोग लड़ते रहते है.

भारत को स्वतंत्र हुए आज ७० साल हो गए, आज भी लोगो को ये अक्ल नहीं आयी की सुबह शौच  कहा जाना है, वो भी अमिताभ बच्चन बता रहे है, न जाने कितने गांव ऐसे है जहां हो सकता है बेटियो को जन्म के बाद ही मार देते हो, लोगो के बैंक में अकाउंट नहीं है गरीबी का आलम ही निराला है, यहाँ आज भी सरकार कहती है ७० प्रतिशत लोग गरीब है, न जाने कितने लोग अनपढ़ है, बेरोजगारी का आलम ही अलग है, चपरासी में नौकरी के लिए पीएचडी वाला भी फॉर्म भर रहा है, भरस्टाचार भी पूर्ण परिपक्व हो गया है, तो अभी तक किया क्या गया.

Comments

Unknown said…
बहुत सारी बातें है अम्बरीष जो लोगो को पता ही नहीं है कि ये राजनितिक दल क्या क्या करते है और हम लोग तो इन के लिए मच्छर के समान है