एक मित्र का विस्वास और २ लाइन की कविता का सृजन

कल रात्रि लगभग ११ बजे मेरे एक पुराने मित्र का फ़ोन आया, बोले आपकी कविताओ की किताबे छपी है आपको शेर शायरी का भी शौक है, मुझे भी एक शेर लिख कर देदो या बता दो जिससे घरवाली भी खुस हो जाये और साली भी, मतलब दोनों की तारीफ हो और दोनों में से किसी को बुरा न लगे।

ये चेलेंज मुझे मास्टर सेफ के एलिमिनेशन राउंड जैसा लग रहा था, सोचने पर मजबूर होना पड़ा की क्या लिखू, अब मेरे मित्र ने इतनी तारीफ कर दी की किताबे छपी है, मतलब अब अगर में उसकी मदद नही करता तो किताबो में छप चुकी कविताये कलंकित हो जाती उनकी मौलिकता पर भी प्रश्न उठ सकता था।

फिर मेने सोचना शुरू किया और सुबह ५ बजे एक अद्भुद २ लाइन की कविता का जन्म हुआ, ये शायद ही किसी को घरवाली को बुरा लगे या उसकी साली को, इसमें दोनों की तारीफ समान रूप से थी, और दोनों को वरीयता दी गयी है, मतलब घरवाली भी खुश और साली भी खुश।

तुम्हारी दीदी की अदाओं पर पर गए हम।
तुमने जीजा कहा, तो फिर से जी गए हम। ।

अब इसको सुनकर एकसाथ भी दोनों नाराज नहीं हो सकती, दोनों अपना अपना हिस्सा का श्रेय पाकर प्रशन्न हो सकते है।


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