भारत का विभाजन या भारतीयों का विभाजन
आंबेडकर ने इसबात पर विचार किया और कुछ दिन बाद नेहरू बोला की सबसे पहले तो देश का विभाजन मान लीजियेगा जिससे आपका मुस्लिम नेताओ से टकराब हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा, क्योंकि इनके नेता को वोट सभी मुलिम देंगे जो की आपके राजनितिक समीकरण बिगाड़ सकते है, और जो यहाँ रहेगे उनको डरा देंगे अलप-संख्यक के नाम पर, तो नेहरू ने पूछा की बहुसंख्यक हिन्दुओ का क्या, मंगल पांडे को भूल गए, एक अकेले कितना बड़ा काम कर दिया था, आंबेडकर बोले हम देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित कर देंगे जिससे धर्म के नाम पर हिन्दू इकट्ठा नही होगा, पर फिर भी सोचो जिन जमींदारों के यहाँ लोग काम करते है वो तो जमींदारों के कहने पर लोगो को इकठ्ठा करेगे, आंबेडकर बोले हम जमींदारी खत्म कर देंगे।
नेहरू बोले ये ठीक है, पर फिर भी अगर दलित और सवर्ण मिल गए तो क्या होगा, दलित वर्ग तो सवर्णो के साथ मिलकर काम कर रहा है और भगवान तो दोनों के ही है, अगर ये किसी दिन राम नवमी या कृष्ण जन्म अष्टमी या, होली दिवाली एक हो गए तो, अब तो आंबेडकर ने फिर से १०-१५ दिन सोचने का समय मांग लिया
इस विचार की पुस्टि के लिए काफी खोजने पर उनको एक मनुस्मृति नाम की पुस्तक मिल भी गयी, जिसे उसके पहले भी कोई नही जनता था, कुछ बाटे मानते होंगे पर वो कभी भी समाज को चलाने का आधार नही रहा, उसके भी १७ संस्करण है, सबमे कुछ न कुछ अलग है, पर उसमे हर वर्ग के कामो का बंटवारा है और काफी जोर देकर किया गया है, जैसा की सेना में है, और इसीलिए सेना आज भी सबसे ज्यादा भरोसे की नजर से देखि जाती है, क्योंकि वहां सब अपने काम के प्रति ईमानदार है और दृढ़ है।
अब आंबेडकर के आमने सबसे बड़ी समस्या थी की जनता को कैसे बरगलाया जाये, तो उसने सबसे पहले मनुस्मृति को जलाया और समर्थको के साथ बोद्ध धर्म अपना लिया, और एक छद्म ब्राह्मणवाद को जन्म दिया, जो उस समय से पहले समाज में कभी नही था, एक्का दुक्का किसी का व्यक्तिगत गुस्सा रहा हो तो नही कह सकते है, जैसे कोई अधिकारी भ्र्स्त हो तो भी हम उस सेवा को गलत नही कहते।
जैसे बहुसंख्यक नाजियों ने अपनी हर हार या कमी के लिए यहुदीओ पर आरोप लगाए बिलकुल उसी तर्ज पर भारत में भी बहुसंख्यक बहुसंख्यक वर्ग के अगुआ आंबेडकर ने उनकी हर दुर्दशा के लिए जनसँख्या में कम किन्तु देश के लिए अमूल्य योगदान देने वाले ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया, कायस्थों को ही दोषी ठहरा दिया।
अंबडेकर और नेहरू का उस समय का बोया बीज आज इतना बड़ा बृक्ष बन गया है जिसकी जड़े अब अभूत गहरी हो गयी है इसको गिरा पाना अब सम्भव नही है, क्योंकि जहां एक ओर ये वर्ग बहुत घमंडी, आत्मविस्वासी, राजनीतिक पैठ और आत्मनिर्भर हो रहा है वही दूसरा वर्ग सरकारी तंत्र से भयभीत और आशाहीन हो रहा है, और दोनों ही तरफ के लोगो में एकदूसरे के प्रति क्रोध और द्वेष है।
और जो मुस्लिम भारत में विभाजन के बाद रहे है उनको भी आर्थिक और धार्मिक आज़ादी इतनी मिलगई की अब वो भी अतिक्रमण करने में लगे हुए है, अपने तत्कालीन राजनीतिक फायदे के लिए इनदोनो नेताओ ने देशवासियो को हमेशा के लिए आपस में ही दुश्मन बना दिया, जहां एक की उन्नति दूसरे की अवनति पर आधारित है, एक का फायदा दूसरे के नुकशान पर ही होता है, और सबको अपना फायदा ही दीखता है दूसरे का नुकशान तो हर्ष का विषय बन गया है।
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