भारत में वर्ग संघर्ष की संभावनाएं बढ़ती जा रही है
दोस्तों आने वाला समय वर्ग संघर्ष का समय है, जिसमे हर वर्ग अपने उत्थान के लिए संघर्ष करने वाला है, दलित वर्ग, पिछड़ा वर्ग, मुस्लिम वर्ग, महिला वर्ग ये सभी जाग गए है, हमारे कितने ही दोस्त है जो किसी न किसी वर्ग के सदस्य है, अगर आज आंप मुलायम सिंह या अखिलेश के बारे में कुछ बोलोगे तो उनके वर्ग के लोग आपको करार जबाब दे देंगे, मायावती के लिए कुछ बोलोगे तो उनके वर्ग वाले भी.
पर हमारा वर्ग है, 'हमे क्या वर्ग', मतलब कोई कुछ भी बोलता रहे, हम सहिस्णु बन कर सुनते रहते है, पर यही हमारी भीरुता और कमजोरी बनती जा रही है, अगर आज हम लोग जो की 'हमे क्या वर्ग ' के है अगर नही जगे तो हमारी आने वाली संताने हमे ऐसे ही गालिया देंगे जैसे हम जातिगत आरक्छन और जमींदारी उन्मूलन एक्ट के लिए अपने पूर्वजो को, आज भाईचारे की जिम्मेदारी सिर्फ 'हमे क्या वर्ग' की ही रह गयी है, अगर इसवर्ग के लोग कुछ कहते है तो उनको सामंतवादी, या असिष्णु कह कर चुप करा दिया जाता है.
ये बाकि वर्गों की बहुत ही चतुराई से खेली जा रही चाल है, आप मत सोचिये की बाकि वर्ग बाले हमारे इस्वर में आस्था रखते है या उनके लिए कुछ करेगे, बाकि वर्ग वाले हमारे धर्म और संस्कृत का समूल नष्टकरके अपना नया अध्याय लिखने बाले है, जागो वार्ना देर हो जाएगी, और ऐसा भी मत सोचिये की बाकि के वर्गों के लोग वास्तव में शोषित थे या दावे कुचले थे, बस इनकी आबादी ज्यादा है इसलिए इनकी आवाज साफ सुनाई दे रही है और 'हमे क्या वर्ग' की आबादी बहुत कम है इसलिए दबा दी जाती है, हम जो की आज हमे क्या वर्ग के सदस्य है वास्तविक भारत के निर्माता थे और आगे भी इस देश की गरिमा और सम्मान की रक्षा हमे ही करनी है.
कभी कभी मुझे लगता है कि या तो हमारे पूर्वज अदूरदर्शी थे, या उनको जातिगत आरक्छन के पीछे छिपी कुटिलता नहीं दिखी, क्योंकि उन्होंने सीधा सीधा तत्कालीन सरकार की नियत और गैर-सवर्ण वर्ग के भोलेपन पर भरोषा कर लिया, जबकि उनको अपनी देख रेख में इसका पालन करबाना चाहिए था, मतलब प्रत्येक परिवार के सिर्फ एक सदस्य को जातिगत आरक्छन का लाभ दिया जायेगा, उसको एक कोड या कार्ड दिया जाता जिसमे उसके परिवार के सभी सदस्यो की जानकारी होती, और जब भी कोई नया व्यक्ति आरक्छन के लिए आवेदन करता उसकी जाँच करके ही दिया जाता मतलब जिस परिवार के सदस्य को लाभ मिला है अब उसके परिवार के किसी सदस्य को नहीं मिलेगा और अपने परिवार के बाकि सदस्यो के उत्थान के लिए अब उसे प्रयास करना है.
इसके साथ साथ पढ़ाई और प्रतियोगिता के मानक सबके लिए सामान रहते, सिर्फ पदों को भरते समय इसबात का ध्यान रखा जाता की सभी वर्गों के लोगो को प्रिनीतधित्व मिले, क्योंकि अगर सभी वर्गों के अंदर मेहनत की भावना का संचार होता तो कोई किसी से द्वेष न करता और न ही कोई किसी को हीं भावना से देखता, आज हो सकता है दलित, पिछड़े या अन्य आरक्छित वर्ग के लोग योग्य हो, विद्वान हो पर आरक्छन का ठप्पा उनकी योग्यता और ज्ञान को धक् देता है, उनके द्वारा प्राप्त लक्ष्य के प्रति उनके मेहनत की जगह सिर्फ आरक्छन का शॉर्टकट दीखता है, ये द्वेष और ईर्ष्या को जन्म दे रहा है, जैसा पहले निम्न वर्ग के लोगो का अभिजात वर्ग के लोगो के प्रति था.
आज एक और नई समस्या जम ले रही है, आरक्छन के कारन उच्च जातीय योग्य व्यक्तियों का मनोबल गिर रहा है, उनको ऐसा लगता है अब योग्यता ओर मेहनत सफलता नही दिल सकती और अगर मिल भी गयी तो मेरे ऊपर कोई आरक्छित वर्ग का अधिकारी मुझे खुलकर काम नही करने देगा, उसका मेरे प्रति जातिगत द्वेष मुझे परेशां करने के लिए उसे प्रेरित करता रहेगा,
आज जो आत्म विस्वास आरक्छित वर्ग के लोगो के चेहरे पर दीखता है वो कभी मेहनती और योग्य व्यक्तियों के चेहरे पर दीखता था, मतलब ये है की हालात कैसे भी क्यों न हो हम कुछ कर ही लेंगे, आज मेहनती और योग्य लोगो के चेहरे पर मायूसी और मानसिक उत्पीड़न साफ दीखता है, वही आरक्छित वर्ग के लोगो के चेहरे खिले हुए और आत्मविश्वास से भर हुआ दीखता है, ये समझ के लिए बहुत ही बड़ा अभिशाप है, जो एक तरफ तो देश की उन्नति नही होने दे रहा है, क्योंकि देश चलने के लिए योग्य लोग है ही नहीं और जो है वो अपने जातीय दम्भ के कारन काम न करके राजनीती करते है या लोगो को परेशां करते है.
आने वाले समय में हर वर्ग अपनी जरूरतों के हिसाब से कुछ न कुछ मांग रखेगा, और जो वर्ग अभी उभर रहा है वो उसे नव सृजित दलित या पिछड़े वर्ग (जो की आरक्छन के कारन कुछ न मिलने के कारन पैदा होगा) को कुछ देगा नहीं, उल्टा उसके पूर्वजो पर सामंतीवादी hone का आरोप लगाएगा, तब ये वर्ग अपनी जरूरते पूरी करने के लिए कुछ ऐसा जरूर करेगा जो न तो देश हित में होगा न समाज हित में.
इसके लिए जिम्मेदार हमारे अदूरदर्शी राजनेता ही है, जिन्होंने एक वर्ग पर इतनी जिम्मेदारी दे दी की वो उठ तक नही पा रहा है और दूसरा वर्ग खुला छोड़ दिया, एक वर्ग को बोला त्याग करो, पूरी फीस जमा करो, आने जाने का किराया भी दो, ज्यादा नम्बर लाओ, आयु में कोई छूट नहीं, और दूसरे वर्ग को कोई जिम्मेदारी नहीं दी, इसलिए वो वर्ग कभी हमारे ग्रन्थो को गालिया देता है कभी महापुरुषों को, ये सब मिलकर एक वर्ग संघर्ष के कारण बनेगे, जिसे रोक पाना तब मुश्किल होगा।
पर हमारा वर्ग है, 'हमे क्या वर्ग', मतलब कोई कुछ भी बोलता रहे, हम सहिस्णु बन कर सुनते रहते है, पर यही हमारी भीरुता और कमजोरी बनती जा रही है, अगर आज हम लोग जो की 'हमे क्या वर्ग ' के है अगर नही जगे तो हमारी आने वाली संताने हमे ऐसे ही गालिया देंगे जैसे हम जातिगत आरक्छन और जमींदारी उन्मूलन एक्ट के लिए अपने पूर्वजो को, आज भाईचारे की जिम्मेदारी सिर्फ 'हमे क्या वर्ग' की ही रह गयी है, अगर इसवर्ग के लोग कुछ कहते है तो उनको सामंतवादी, या असिष्णु कह कर चुप करा दिया जाता है.
ये बाकि वर्गों की बहुत ही चतुराई से खेली जा रही चाल है, आप मत सोचिये की बाकि वर्ग बाले हमारे इस्वर में आस्था रखते है या उनके लिए कुछ करेगे, बाकि वर्ग वाले हमारे धर्म और संस्कृत का समूल नष्टकरके अपना नया अध्याय लिखने बाले है, जागो वार्ना देर हो जाएगी, और ऐसा भी मत सोचिये की बाकि के वर्गों के लोग वास्तव में शोषित थे या दावे कुचले थे, बस इनकी आबादी ज्यादा है इसलिए इनकी आवाज साफ सुनाई दे रही है और 'हमे क्या वर्ग' की आबादी बहुत कम है इसलिए दबा दी जाती है, हम जो की आज हमे क्या वर्ग के सदस्य है वास्तविक भारत के निर्माता थे और आगे भी इस देश की गरिमा और सम्मान की रक्षा हमे ही करनी है.
इसके साथ साथ पढ़ाई और प्रतियोगिता के मानक सबके लिए सामान रहते, सिर्फ पदों को भरते समय इसबात का ध्यान रखा जाता की सभी वर्गों के लोगो को प्रिनीतधित्व मिले, क्योंकि अगर सभी वर्गों के अंदर मेहनत की भावना का संचार होता तो कोई किसी से द्वेष न करता और न ही कोई किसी को हीं भावना से देखता, आज हो सकता है दलित, पिछड़े या अन्य आरक्छित वर्ग के लोग योग्य हो, विद्वान हो पर आरक्छन का ठप्पा उनकी योग्यता और ज्ञान को धक् देता है, उनके द्वारा प्राप्त लक्ष्य के प्रति उनके मेहनत की जगह सिर्फ आरक्छन का शॉर्टकट दीखता है, ये द्वेष और ईर्ष्या को जन्म दे रहा है, जैसा पहले निम्न वर्ग के लोगो का अभिजात वर्ग के लोगो के प्रति था.
आज एक और नई समस्या जम ले रही है, आरक्छन के कारन उच्च जातीय योग्य व्यक्तियों का मनोबल गिर रहा है, उनको ऐसा लगता है अब योग्यता ओर मेहनत सफलता नही दिल सकती और अगर मिल भी गयी तो मेरे ऊपर कोई आरक्छित वर्ग का अधिकारी मुझे खुलकर काम नही करने देगा, उसका मेरे प्रति जातिगत द्वेष मुझे परेशां करने के लिए उसे प्रेरित करता रहेगा,
आज जो आत्म विस्वास आरक्छित वर्ग के लोगो के चेहरे पर दीखता है वो कभी मेहनती और योग्य व्यक्तियों के चेहरे पर दीखता था, मतलब ये है की हालात कैसे भी क्यों न हो हम कुछ कर ही लेंगे, आज मेहनती और योग्य लोगो के चेहरे पर मायूसी और मानसिक उत्पीड़न साफ दीखता है, वही आरक्छित वर्ग के लोगो के चेहरे खिले हुए और आत्मविश्वास से भर हुआ दीखता है, ये समझ के लिए बहुत ही बड़ा अभिशाप है, जो एक तरफ तो देश की उन्नति नही होने दे रहा है, क्योंकि देश चलने के लिए योग्य लोग है ही नहीं और जो है वो अपने जातीय दम्भ के कारन काम न करके राजनीती करते है या लोगो को परेशां करते है.
इसके लिए जिम्मेदार हमारे अदूरदर्शी राजनेता ही है, जिन्होंने एक वर्ग पर इतनी जिम्मेदारी दे दी की वो उठ तक नही पा रहा है और दूसरा वर्ग खुला छोड़ दिया, एक वर्ग को बोला त्याग करो, पूरी फीस जमा करो, आने जाने का किराया भी दो, ज्यादा नम्बर लाओ, आयु में कोई छूट नहीं, और दूसरे वर्ग को कोई जिम्मेदारी नहीं दी, इसलिए वो वर्ग कभी हमारे ग्रन्थो को गालिया देता है कभी महापुरुषों को, ये सब मिलकर एक वर्ग संघर्ष के कारण बनेगे, जिसे रोक पाना तब मुश्किल होगा।
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