मोदी विरोध की वास्तविकता


कभी कभी में सोचता हूँ आम जनता के रूप में जो लोग नरेंद्र मोदी जी या मोदी जी के नयी नीतियों का विरोध करते है वो वास्तव में जनता की आवाज है या कोई सुनियोजित सडयंत्र का हिस्सा, क्योंकि इस अंध विरोधी वर्ग को कोई भी काम देश हित में नहीं लग रहा और विरोध का आलम  भी ये है लोगो को मायावती के तमाम घोटाले नजर आने बंद हो गए और अब वो मायावती जी बन गयी है, लालू का चारा घोटाला खत्म हो चूका है, लोग ये भी भूल गए है लालू जमानत पर है और जेल यात्रा भी कर चूका है, एटीएम की लाइन में लगे किसी भी व्यक्ति की मृत्यु दुखद है और इसके लिए लाइन में लगे लोगो की असहिष्णुता और बैंक का अकुशल प्रबंधन जिम्मेदार है, फिर भी इसके लिए मोटबंदी और मोदी जी को दोष देना एक सडयंत्र का ही हिस्सा है, क्योंकि ये अंधविरोधी दल वास्तविकता देखना नही चाहता है, इसका मूल उद्देश्य है नोटबंदी का कानून खत्म कार्बन जिससे अपना काला धन सीन ठोक कर इस्तेमाल कर सके, और इसके लिए सभी राजनीतिक दलो के समर्थक इस उम्मीद में अपने अपने नेता समर्थन कर रहे है की नेता जी को एटीएम लाइन में लगे लोगो की चिंता है , पर वास्तव में ऐसा नही है , एटीएम में लगे किसी व्यक्ति के साथ हुयी घटना का अगर किसी ने ब्लॉग भी पोस्ट किया तो मोदी विरोधी उसको भी सही मान कर उस पर मोदी जी को दोष देते है, पर पश्चिम बंगाल में हुए मार काट पर कोई कुछ नहीं बोल रहा, समाचार चेनल चुप सोशल मीडिया पर लोग हफ्ते दो हफ्ते कुछ लिखेगे फिर वो भी चुप, मैनपुरी की घटना सवर्ण महिला के साथ हुयी सब चुप, पर दादरी और बेमुला की घटना ने पूरा देश हिला दिया, क्योंकि रात  दिन मीडिया चिल्ला रहा था, कोई भी चेनल खोलो वही दीखता था।

आखिर मोदी का विरोध करने वाली जनता क्या वास्तव में गैर राजनीतिक है, क्या ये उनके हृदय की आवाज है या कोंग्रेस पालित बुद्दिजीवियो का का बनाया हुआ एक सड़यंत्र  है, क्योंकि जिस तरह के नाम इस्तेमाल किये जा रहे है 'फेकू' मोडियाविन्द  जुमलेबाज अंधभक्त इको हास् टैग के साथ जैसे ट्विटर और फेसबुक पर ट्रेंड कराया जा रहा है मुझे क्या किसी को भी भरोषा नही होगा की ये गैरराजनीतिक लोगो का देशभक्तिपूर्ण विरोध है, ये पूरा विरोध राजनीतिक है और राजनीतिक आकाओ के संरक्छन में चल रहा है, वार्ना किस नागरिक के पास इतना समय है की दिन में १०००- से २००० शब्दो का लेख लिखे, उनके ट्रेंड कराये, विडियो बनाये, फोटो बनाये और उनको शेयर करे।


में मानता हूँ की कोन्ग्रेस्स ने ५० सालो में कुछ काम किया, पर जितने की देश को जरूरत थी उतना बिलकुल नही किया, जिस तरह से थे वैसे भी नही किया, आज वोट के कारन दलितों, पिछडो, सवर्णो, मुस्लिमो और अब तो महिलाओ तक को बाँट दिया, क्योंकि अब सबके लिए लॉलीपॉप योजनाए कागज पर बनायेगे और वोट लेंगे, क्योंकि नही इस देश में सभी के लिए एक जैसा कानून है, क्यों जरूरत पड़ती है दलितों के लिए अलग, महिलाओ के लिए अलग, पिछडो और मुसलमानो के लिए अलग कानून की, और अगर योजनाए बनायीं थी तो उनको लागु करने के बाद भी इतनी गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी और भरस्टाचार क्यों है।

इन सबका कोई जबाब नही है बल्कि इन सवालो पर जनता खुद पानी समर्थिक पार्टी का पक्ष लेकर आपसे लड़ने लगेगी की तुम्हारी पार्टी क्या कर रही है, भाई हमने तो वोट करने के लिए ही दिया है अब तुम्ही पार्टी के लोग करने ही नही दे रहे है, ये सवाल जबाब हर मुद्दे को खत्म कर देते है और ऐसे ही ५ साल गुजर जाते है।

पर मेने जितनी नीच दर्जे का विरोध मोदी जी का होते देखा है, जितनी घटिया शब्दावली का इस्तेमाल उनके लिए किया जाता है देश के इतिहास में इतना घटिया विरोध मेने किसी का नहीं देखा, और इसकी शुरुबाट भी कवी कुमार विस्वास ने ही की थी,  उन्होंने ही सबसे पहले मन मोहन सिंह को महा मौन सिंह बोल कर इस इसका शुभ्रम्भ किया, भर भक्त, और अंधभक्त भी उनकी ही दें है, इसके बाद जैसे शब्द आते गए उसके जबाब में वैसे ही घटिया दर घटिया शब्दो का निर्माण होता गया।

मोदी जी के विरोध की सही बजह है की जो जमीनी नेता है वो चाहते है की जनता बस  वैसी ही बनी रही जैसी है, जागरूक जनता वोट देने से पहले विकास कार्यो की समीक्षा करेगी, और हम उसको बिजली पानी, सड़के और नालियो का अस्वाशन देकर बहला नही सकते, मोदी जी जोड़ रहे है हर देशवाशी को नयी तकनिकी से जिससे वो खुद जान सके की क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है, नोटबंदी का देश की जनता पर जितना असर है वो उसे अगले २-३ महीने में कवर कर लेगा पर नेता लोग उसको अगले ५० सालो में भी कवर नहीं कर सकते यही है मोदी जी के विरोध की असली वजह, बिहार के चुनाव [Read Bihar News in Hindi] में नितीश कुमार की पार्टी को सीट लालू प्रसाद यादव की पार्टी से कम क्यों मिली, जबकि नितीश तो ५ साल सत्ता में थे और लालू सत्ता से बहार, अगर आप इसका जबाब खोज लेते हो तो यकीनन आप मोदी जी का विरोध कभी कर सकते 

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