देश में जातिवाद फैलाने का जिम्मेदार कौन है
आज जातियो को वरीयता वही दे रहे है जिनको जाती के दिखाने या बताने से कोई फायदा है, जैसे नौकरियों में शिक्षण संस्थानों में, पर जिनको कोई फायदा नही उनके लिए ये सिर्फ शादी के समय ही ध्यान में लाया जाता है।
जातिवाद का मूल भाव क्या है, आईये इसे जानते है, जातिवाद का मतलब है, मेरी जाती श्रेष्ठ है, मेरी जाती में ज्यादा लोग योग्य है, मेरी जाती के लोगो का वर्चस्व हो लोग मुझे अमुक जाती के होने मात्र से सम्मान दे, मेरे लिए आदरस्वरूप स्थान रिक्त रखे जिस पर मैं बिना किसी विघ्न बाधा के बैठ सकु।
तो आज के समय में इतनी इक्छाएं किसी ऊँची जाती के व्यक्ति में रही नही है, क्योंकि जैसे हालात उसके सामने देश के सरकारों ने १९५० के बाद पैदा कर दिए है उसमे उसके लिए गरिमापूर्ण जीवन जीने और भरपेट खाना खाने की जुगाड़ में दिन का लगभग ६०% समय गुजर जाता है, उसके पास फुर्सत नही है की वो किसी अन्य से अपने भविष्य के लिए लड़ाई लडे।
जब भी देश में कोई बेहतर काम होता है तो जो वर्ग ज्यादा जागरूक है वो उसकी सराहना करता है और देश का उच्च वर्ग ये जानने की कोशिश भी नही करता की ये किस जाती का है, क्योंकि आज भी नेता जी सुभाष चंद्र बोस या डॉ राजेंद्र प्रसाद या लाल बहादुर सबके लिए सामान रूप से सम्माननीय है और पूज्य है कोई कायस्थ कभी सीन ठोक कर नहीं कहता की ये मेरी जाती के है इसलिए महान है, क्योकि ऐसा कहना इन महापुरुषों का अपमान है, क्योंकि इन्होंने अपनी जाती के लिए कोई विशेष काम नही किया जो भी किया समस्त नागरिको के लिए अपने देश के लिए किया, फिर ये किसी एक जाती के कैसे हो सकते है।
अभी कुछ दिन पहले टीना डाबी ने आईएएस टॉप किया था, सभी लोग बधाईया दे रहे है किसी को उसकी जाती के बारे में जानकारी नही थी, अचानक से कुछ अम्बेडकरबाड़ी लोग फेसबुक पर आ गए और शुरू हो गए, दलितों का नाम रोशन किया, और ये लोग यही नही रुकते, ये शुरू जो जाते है स्वर्णवर्ग को गरियाने में, बस वही से समस्या शुरू हो जाती है, क्योंकि ये लोग जाती विशेष की गरिमा करने लगते है, एक तो वो वर्ग वैसे ही जातिगत आरक्छन से हतास और निराश है उस पर आप उसे ही नीचा दिखाओ तो ये असहनीय हो जाता है, और फिर गृहयुद्ध शुरू हो जाता है, पर यहाँ जातिवाद शुरू किसने किया था, उस वर्ग ने जिस वर्ग ने एक सफल व्यक्ति को अपनी जाती का बता कर दूसरी जाती के लोगो और उसके पूर्वजो को नीचा दिखाना शुरू किया, क्योंकि उसके पहले किसी ने जाती की बात नहीं की थी, और जब बात निकलेगी तो दूर तक जाएगी।
ऐसे ही रजनी कान्त की फिल्म आयी थे कबाली, जब लोग मस्त थे, बस अचानक से कुछ पेरियार पंथी आ गए फेसबुक पर और शुरू हो गए, दलितों की महानता का बखान करने, इस फिल्म के डायरेक्स्टर भी दलित, लेखक भी दलित,सब दलित और ये उन ऊँचीजाति के मुह पर तमाचा है जो कहते है की दलित लोग कुछ कर नही सकते अपने दम पर, भाई किसने कहा, खुद ही सोच लेते हो, पर थी यहाँ पर जाती का भेद किसने खड़ा किया, किसी ऊँची जाती के व्यक्ति ने नही किया, किस ने किया, उस वर्ग ने जो दलित होने के कारन आरक्छन की मलाई खा रहा है।
और तो और डॉ मुकुट सिंह मिंज के बारे में आम तौर पर हम यही जानते है की वो ऐइम्स में डॉक्टर है और उन्होंने सुषमा स्वराज की किडनी का ओप्रेसन किया, पर दलित वर्ग के कुछ महारथी फेसबुक पर और अन्य सोशल मीडिया पर शुरू हो गए, सुषमा दीदी जीबन भर जातिगत आरक्छन का विरोध करती रही और आज आपरेशन किया तो एक दलित ने, अब कोई इनसे पूछे की यहाँ पर किसने जाती की बात चलायी, किसे मतलब था मिंज किस जाती के है, सब डॉक्टर का धन्यबाद दे रहे और एक वर्ग उनको दलित बता कर सवर्णो को नीचा दिखाने लग जाते है, और सम्बिधान हर किसी को गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए प्रतिबद्ध है न की किसी वर्ग को दूसरे वर्ग की गरिमा पर प्रहार करने की अनुमति देता है।
और सबसे बाद में एक बात और ये आरक्छन वर्ग वाला वर्ग चाहता है की जातिवात खत्म हो और खुद ही अपनी जाती को श्रेष्ठ बता कर झगड़ा बढ़ाते रहते है, इनसे पूछो की जातिवाद खत्म कैसे हो, तो एक जबाब की अंतरजातीय विवाह, और ये खुद भी अपने से एक पायदान नीचे वाले से अपनी बेटी की शादी नही करते, खुद आईएएस या अन्य बड़े पद पर हो तो अपने से निचे अधिकारी के यहाँ अपनी बेटी की शादी नही करते, और सवर्ण तो अपनी विरादरी में भी उन लोगो के घर अपनी बेटी नही देता जिनके यहाँ उनकी बेटी का पति अपने पैरो पर खड़ा न हो, फिर वो अपनी बेटी का हाथ एक आरक्छन की वैशाखी वाले के हाथ कैसे दे सकता है, जो अपनी दम अपने पैरो खड़ा नही हो सकता, है आज भी भारमल जैसे लोग है जिनको सिर्फ पैसा और शक्ति दिखती है वो करसकते है पर कोई भी गरिमावान तो शायद स्वेक्षा से नहीं करेगा हो सकता है बच्चे प्रेम विवाह कर ले तो मजबरी में स्वीकार कर ले, पर ये जातिवाद को खत्म करने का सही तरीका नही है, क्योंकि इसमें एकवर्ग के गरिमा और सम्मान का हनन है और दूसरे की अहंकार में वृध्दि होगी जो की आगामी समय में वर्ग संघर्ष का आधार बनेगा ही।
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