ये कैसी लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्षता है


भारत देश कहने भर को लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष, वास्तव में इसदेश का संविधान दलितों, पिछडो, महिलाओ और मुस्लिमो को जरुरत से ज्यादा अधिकार और सुरक्षा प्रदान करता है जो की आने वाले समय में संविधान,लोकतंत्र और धर्मनिस्पेक्षता के लिए खतरा है, जैसे अगर देश का उपराष्ट्रपति कहे की इस्लाम में आरती हराम है तो ये उनकी अभिव्यक्ति की स्वन्त्रता है, गणतंत्र दिवस पर झंडे के सामने होने पर भी सलूट न करे तो उनके प्रोटोकाल में नहीं है, शाहरुख़ खान मुलिम किरदार की फिल्म बना कर ये सन्देश दे की में आतंकवादी नही हूँ तो ये उनकी बहादुरी है पर ईसिस और अन्य इस्लामिक संघटनो की हरकतों पर चुप्पी साढ़े रहना उनकी दरिया दिली है, अमीर खान का शिवजी पर दूध चढ़ाने की बात को सत्यमेव  जयते में बोला जाना रूढ़िवाद की खिलाफ जंग है पर खतना प्रथा और बुरखा प्रथा पर चुप्पी रखना धार्मिक मान्यता है, फरहान अख्तर का दादरी कांड पर बोला उनका लोकतान्त्रिक अधिकार था पर पश्चिम बंगाल की हिन्दुओ को मारने की और जम्मू कश्मीर की घटना पर चुप्पी रखना उनका कानून व्यवास्था पर पूर्ण विस्वास था।

आखिर क्या कारन है की देश में दलितों को इतना प्रोत्साहित किया जाता है जबकि प्रोत्साहित होने पर और आगे बढ़ने पर उनका सबसे पहला काम होता है ऊँची जाती के लोगो को निचा दिखाना, जातिवाद की जड़े ये दलित और पिछड़े ही पकड़ कर हिलाते है, खुद को श्रेष्ठ बताते है जो किसी को भी स्वीकार नहीं है, खुद उनको भी नही था इसलिए जनसँख्या में ज्यादा होते ही आंदोलन करने लगे, उनको भी तो सवर्णो का वर्चस्व स्वीकार नही था इसलिए अब सवर्णो को भी उसका खोखला वर्चस्व स्वीकार नहीं है, आप आगे बड़ो, अपने लोगो को आगे बढाओ इ तो ठीक है पर खुद बढ़ते है दुसरो को गालिया देने लगो, उनको नीच दिखाने लगो ये तो कोई बात नहीं है।


और वास्तव में मुद्दा ये है की आज मार्केटिंग का समय है दलितों का दर्द, महिलाओ की समस्या एयर मुस्लिमो की परेशानी दिखाने और बताने का चलन चल निकला है, ऐसे मेटेरिअल जल्दी बिकते है, क्योंकि खरीदने वाले ये लोग भी है और कही कोई जातिवादी , सवर्णवादी या सामंतवादी का आरोप न लगा दे इसलिए ऊँचीजाति के लोगो भी खरीदना पढता है, इस बात को मीडिया और बॉलीवुड दोनों ही जान गए है इसलिए मीडिया अपनी पहुच बढ़ाने के ऐसे मुद्दों पर पुरे दिन क्या साहब पुरे हफ्ते खबर देता है पर हिन्दुओ या सवर्णो पर हुए अत्याचार को एक लाइन माँ समेत देता है, और बॉलीवुड तो "माय नाम इस खान" और "शुद्र" जैसी फिल्मे बना कर करोडो कमाती है पर उस पैसो से किसी भी दलित या गरीब मुस्लिम को शिक्षा देने तक की कोशिश नहीं करती, सरबजीत पर एक फिल्म बना कर करोडो कमाए पर क्या उसके गांव में उसके नाम से एक स्कूल भी बनवाया नहीं न, क्योंकि अपना काम पैसा कमाना है कमाए और निकल लिए, उसका समाज पर कितना बुरा असर पड़ेगा हमे कोई लेना देना नही।

देश का मीडिया, लेखक, राजनीतिक वर्ग यही लोग देश की दिशा निर्धारित करते है और अगर यही लोग बिखरते हुए समाज को अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए और बिखरने देंगे तो हो सकता है इनका काम चल जाये पर आने वाली पीढ़ी इनको कभी माफ़ नहीं करेगी, जैसे आज हम कश्मीर समस्या और पाकिस्तान के लिए नेहरू और गाँधी को गालिया देते है वैसे ही आने वाली पीढ़ी इस बुद्दिजीवी वर्ग को गालिया देगा, पर इस वर्ग को क्या, इसको तो अवसरवाद की चासनी मिली हुयी है, क्योंकि जब गालिया देगा तब ये कौन सा सुनने के लिए बैठे होंगे पर जो निर्दोष लोग उस समय बैठे होंगे वो लोग वेबजह गालिया खायेगे और इनको भी देगे। 

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