हमे सभी लोगो में होने वाले परिवर्तनों को स्वीकार कर लेना चाहिए
सबसे पहले देश के दलित वर्ग को लेते है, इस वर्ग के प्रति देश के बुद्दिजीवी वर्ग में एक भ्रान्ति है की ये अभी भी निरीह प्राणी है और ये किसी का अहित नही कर सकता, पर क्या आज ये सही है, आज दलित वर्ग के लोग राजनीती में है, सक्षम है और अगर चाहे तो अपने वर्ग के बाकि लोगो का भला कर सकते है उनको जागरूक कर सकते है, पर वास्तव में वो खुद नही चाहते है की उनका एक बड़ा वोट बैंक जागरूक होकर सही और गलत में फर्क कर सके, इसलिए कोशिश रहती है की उस वर्ग के कुछ लोगो को उकसा कर ऊँची जाती के लोगो से लड़ा दो जिससे की ये फिर अपनी राजनीतिक रोटियां सेक सके, क्या आज समाज इस बुरी तरह से विभाजित सिर्फ इसलिए है की एक वर्ग धनी है और दूसरा वर्ग निर्धन? नहीं, आज वर्ग का विभाजन सत्ता में सदा के लिए बने रहने के लिए है, दलित वर्ग के सत्तासीन लोग चाहते है की उनकी सत्ता सदा के लिये बनी रहे इसलिए वो खुद गलत अपवाह उड़ाते रहते है की आज भी समाज में सवर्ण वर्ग उनको सम्मान नही देता, जो की गलत है, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के आज भी जो थिंक टेंक है या विस्वासपात्र है वो ठाकुर, ब्राह्मण या बनिया ही है और मायावती सरेआम ऊँची जाती के लोगो को गालिया देती है पर इन निश्ठावान लोगो में मायावती के प्रति निष्ठा वैसी ही बनी है।
पंजाब के खत्री जाती में जन्मे कांशी राम ने दलितों के लिए बहुत काम किया और आज उनका परिवार पूरी तरह से राजनीतिक रूप से उपेक्षित है, क्या आज दलितों को मिलकर उस परिवार के लिए कुछ करना चाहिए या नही, पर मायावती के भय से लोग कह भी नहीं पाते है, और बुद्धिजीवी वर्ग आज भी सोचता है की देश के सारे दलित पीड़ित है, मेरा कहना ये है की कम से कम राजनीतिक और प्रशासनिक पदों पर वैठे हुए लोगो को तो दलित मत कहो, क्योंकि अगर इन पदों के बाद भी ये दलित रहेगे तो वास्तविक दलित को क्या कहोगे।
इसी परिप्रेक्ष में भारत में महिलाओ की दशा बहुत तेजी से बदल रही है, या यु कहे की आज की महिलाये १९वी और २०वी शदी के शुरू में महिलाओ के त्याग की दुहाई देकर अपने लिए रास्ता साफ कर लेती, पर हमारा बुद्दिजीवी वर्ग आज भी नारी की छवि बदलने को तैयार नही है, उसकी नजर में आज भी हर नारी पूर्ण पवित्र, निर्दोष और त्याग की मूरत है, जबकि रोज खबरे आती रहती है की चोरी करते हुए महिला पकड़ी गयी, बच्चा चुराते पकड़ी गयी, घर से सामान लेकर बहु भाग गयी, सास की पिटाई करते हुए बहु का विडियो, और भी न जाने कितनी खबरे है, आज की ज्यादातर महिला उस त्याग और बलिदान पर विस्वास भी नही करती जिनके कारण किसी समय समाज में महिलाओ को सम्मान दिया जाता था, या आज भी आम लोगो को उनका सम्मान करने के लिए मजबूर किया जाता है।
आज कई ऐसी महिलाओ के बारे में में खुद सुनता हूँ की शादी के बाद अपने कॅरियर के लिए उन्होंने होने वाले बच्चे को भी गिरवा दिया, और उनकी नजर में ये कोई गलत काम नहीं है, क्योंकि उनका तर्क ये है की करियर का एक समय होता है बच्चा तो कभी भी पैदा हो सकता है या हम गोद भी ले सकते है, पर अगर ऐसे विचार है तो करियर के लिए इतना प्रयास किसके लिए किया जा रहा है खुद के सुख या महत्वाकांक्षाओं के कारण ही, क्योंकि अगर परिवार के लिए होता तो शायद शब्दो का चयन भी उसी तरह का होता, खैर मैं सभी महिलाओ का सम्मान करने की मनाही नही करता पर जो महिलाए आज प्रगति के पथ पर भाग रही है उनका सम्मान वैसा ही करना चाहिए जैसा आप अपने अलाबा अन्य पुरुष मित्रो का करते है, क्योंकि वह महिला वहां सिर्फ महिला ही नहीं आपकी प्रतिद्वंदी भी है, और जिन महिलाओ में आपको त्याग या बलिदान के कुछ लक्षण दिखे उनका सम्मान बिलकुल वैसे ही करियेगा जैसे भारत की संस्कृति करने आदेश देती है, ये फर्क करना बहुत जरुरी है, क्योंकि इसी के आधार पर तो ये निर्णय लिया जायेगा की कौन भोगी है और कौन त्यागी है, आप कभी भी किसी स्वार्थी या भोगी व्यक्ति का सम्मान ज्यादा दिन कर सकते है, इसलिए सम्मान उसी का हो सकता है जिसने त्याग, वलिदान या समाज को कुछ दिया हो।
ये हालात देश के हर राज्य में है, चाहे वो हरियाणा हो उत्तरांचल हो, हिमाचल प्रदेश हो, अंदमान निकोबार द्वीप समूह हो, या जम्मू कश्मीर, पूरा भारत इस तरह के भ्र्म में जी रहा है।
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