हम महिलाओ को विषेशाधिकार और अतिरिक्त सम्मान क्यूँ दे


भारतीय जनमानस जिसे बिना कारण पुरुष प्रधान होने का आरोप प्रदान किया गया है, महिलाओ और विशेषकर माँ के लिए अति सम्वेदनशील है और माँ के बाद बहिन और फिर बेटी के लिए, आजकल बहुत सी सोशल मीडिया पर आपको ऐसी पोस्ट पढ़ने को भी मिल जाएगी [१] की ३६५ दिन बिना छुट्टी के काम करने वाली एक माँ ही है, [२] अगर घर में ५ लोग है और खाना चार लोगो के लिए है तो जो ५वा व्यक्ति खाने के लिये मन कर देगा वो माँ ही है,  [३] अगर मेरी किस्मत लिखने का अधिकार मेरी माँ को मिलता तो मेरी किस्मत में दुःख न होता, [४] मेरी बेटी हमेशा मेरी रहेगी और बेटा सिर्फ तब तक जब तक उसकी शादी नही होती, [५] अगर बेटियो पर माता पिता की जिम्मेदारी होती तो कोई माता पिता वृद्धश्रम में न होते इत्यादि इत्यादि।

मुझे वास्तव में माँ बहिन या बेटी किसी से कोई घृणा नहीं है क्योंकि ईश्वर की कृपा से मुझे सबका प्रेम और स्नेह मिला है, पर इनके आगे में ये नहीं मान सकता हूँ की पिता, भाई या मेरा बेटा मुझ पर प्रेम वर्षा नही करते या में उनके बिना रह सकता हूँ, वास्तव में जितनी जरूरत हमे माँ बहिन और बेटी की है उतनी ही पिता, भाई और बेटे की भी है, दोनों  ही अति महत्वपूर्ण रिश्ते है, और कोई किसी भी रिश्ते का स्थान नही ले सकता, हां जिद में या दूसरे रिश्ते को नीचा दिखाने के लिए लोग कुछ भी बोल सकते है और कुछ भी कर सकते है। 


ऊपर जो बिंदु दिए है मै उनपर ही आपका ध्यान दिलाना चाहुगा, अगर माँ ३६५ दिन बिना पगार काम करती है तो जिन लोगो के लिए करती है वो उसके अपने ही है, अगर पिता एक महीने घर पर रूपये न दे तो माँ का ममता मयी रूप खो भी सकता है, साथ ही उसी परिवार के भरण पोषण के लिए पिता नौकरी करता है, अपने बोस की कभी कभी सुन भी लेता है, हो सकता है कई पिता ऐसे भी जो अपनी पत्नी और बच्चो की ख़ुशी के लिए उनका भविष्य उसके मरने के बाद भी सुरक्षित रहे अपना बीमा भी करवाते होंगे, यानि की एक पुरुष अपने परिवार के लिए मरने के बाद भी अपनी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश करता है और हमे सिर्फ माँ के ३६५ दिन बिना पगार घर का काम दीखता है, पिता का ऑफिस का काम और ब्लड प्रेसर, शुगर, जोड़ो का दर्द, पीठ का दर्द नही दीखता जो हम लोगो के कारण अपने स्वास्थ का ध्यान न रखने के कारण हुआ है.

बेटे को माँ में ममता क्यों दिखती है और क्यों पिता जालिम दीखता है 

इसे आप भी अपने दैनिक जीवन में देख सकते है, आप ऑफिस के काम से परेशान होकर आराम की तलास में घर पहुचे और वहा आपकी पत्नी या तो बच्चो की शिकायतों से आपका स्वागत करती है या बच्चे दिन भर माता के द्वारा पेंडिग कर दी गयी फरमाइसो से आपका स्वागत करते है, दोनों की स्थितियो में आपको झुंझलाहट या गुस्सा आ सकता है, क्योंकि घर में बैठे व्यक्ति को पता नही आपका दिन केसा गुजरा, पहले हालात में आप बच्चो पर या अपनी पत्नी पर गुस्सा हो सकते है और दूसरे में बच्चो पर, इसके बाद माँ और बच्चे दोनों एकसाथ एक कमरे में बैठ कर बाते करते है, पापा को बिना मतलब ही इतना गुस्सा आता है समझा भी तो सकते है, अब इस कांड के बाद वो बेटा तो बाप के पास आने से रहा है, आउट थोड़ी देर बाद ओ सकता है आपको भी लगे की बिना मतलब ही गुस्सा हो गया, और इतना सोचते है आपके अंदर पुत्र प्रेम भी उमड़ा पर तब तक आपका पुत्र आपसे दुखी हो चूका है इसलिए आपके प्रेम को सम्मान नही देगा, लिहाजा आपका उसके प्रति मोह कुछ और कम हो जायेगा, इतने में आपकी बेटी आ गयी पानी लेकर और आपका पूरा प्रेम उघर चला गया, क्योंकि दिनभर उसकी भी फरमाइसे माँ ने नहीं मानी इसलिए वो उसने आपसे कही, आपका दिल जो ई समय पूरा द्रवित हो चूका था बेटी का हाथ पकड़ कर उसको वो चीज दिलाने चल पड़ा, और यहाँ बेटा खुद को उपेक्षित सा महसूस करने लगा, और उसकी फरमाइसे माँ ने कुछ पैसे बचा कर पूरी कर दी, इसलिए उसकी नजर में माँ महान  और बेटी की नजर में पिता महान , पिता की नजर में बेटा घमंडी और अड़ियल और बेटी प्रेम की मूरत, और यही चलता है. 
मैं दावे से कह सकता हूँ की अगर आपके बेटे की सच्ची झूठी शिकायते आपकी पत्नी न करे तो शायद आप अपने बेटे पर कभी भी हाथ नही उठाएंगे, आप अगर खुद उसको गलत करता देखेगे तो कोशिश उसे समझाने की करेगे, पर अगर उस बात में आपकी पत्नी ने ये कह दिया की में जानती हूँ पर सोचती थी ये खुद सुधर जायेगा इसलिए आपको नही बताया तो अब आपके बेटे का आपके द्वारा पिटना तय है। 

हम जहा एक तरफ सोचते है की शादी के बाद हमारे बेटे बदल जाते है पर बेटिया नही बदलती वही दूसरी तरफ बिलकुल यही बात हमारे बेटे की पत्नी का पिता भी सोच रहा होता है,  यानि की हमारे बेटे की पत्नी भी किसी की बेटी है और हमारी बेटी भी किसी की पत्नी बनेगी तो एक तरफ अगर हमे अपनी बेटी अच्छी लगती है तो वही दूसरे की बेटी हमे अपने बेटे को अपने से अलग होने का कारण भी लगती है, और बिलकुल यही बात आपकी बेटी के पति का पिता भी सोचता है, तो साहब बेटिया तो बेटिया है, अगर आपको अपनी सही लगती है और दूसरे की खराब तो मामला ५०-५० का रहा है, यानि की आपकी बेटी सिर्फ आपकी नजर में सही है, और अपनी नजर में तो अपनी हर चीज सही ही होती है यहाँ तक की खोटा सिक्का भी। 

चलिए मान लिया की आज बेटे ही अपने पिता को और माता को बुढ़ापे में ओल्ड ऐज होम छोड़ कर जाते है पर जाते तो शादी के बाद ही है, यानि की किसी के बेटी की मेहरबानी से ही ये सम्भव हुआ तो फिर बेटिया कहा से सही हो सकती है, अगर आपकी बेटी आपके लिए सही है और दूसरे के लिए गलत तो फिर मामला ५०-५० ही रहा। 

यानि की जो बसों में सीट का या अन्य जगह महिलाओ को विषेशाधिकार दिए जाते है या उनके लिए अतिरक्त सम्मान की बात की जाती है उसका आधार क्या है, जैसे पुरुष है वैसे ही स्त्री भी है, सब अपने अपने स्वार्थ पूर्ति में लगे हुए, तो हम जिस तरह से पुरुषो से बात करते है वैसे ही महिलाओ को भी समझे क्यों दे उनको विशेषाधिकार, अगर वो माँ, बहिन, या बेटी है तो पुरुष भी पिता, भाई और बेटा है, ये रिश्ते महिलाओ के घर में है और पुरुषो के लिए भी है, क्योंकि हम जितना लोगो को अपने से अलग होने का अहसास कराते रहेगे वो अलग दिखने की कोशिश करते रहेगे और इस दर्शन से समाज में एकरसता कभी नही आ सकती है। 

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