भारत के राजनेताओ द्वारा भारत का विभाजन


अगर में आपसे एक बहुत ही आसान सा सवाल करू की आपकी नजर में भारत क्या है ? तो सकता है आपका उत्तर और मेरा उत्तर एक ही हो और अलग अलग भी, हो सकता है में आपके उत्तर से उतना सहमत न हो पर आपको मेरे उत्तर से सहमत होना पड़ेगा, क्योंकि में जो परिभाषा भारत के देने बाला हूँ उसके प्रमाण के रूप में मेरे पास भारत देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद जी की पुस्तक है, जिसका नाम ही उन्होंने लिखा था 'इंडिया डिवाइडेड' और ये उन्होंने एक दिन में सोच कर नही लिखा वल्कि पूरी स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान हुए जनमानस में परिवर्तन पर विचार करके लिखा है।

भारत देश में प्राचीन काल में वर्ण व्यवस्था थी, वो भी कर्म आधारित, और उसमे जिसे जो कर्म भाता था वो उसे ग्रहण कर लेता था, किसी को कोई आपत्ति नही थी, और न ही उपनाम का चलन था, जैसे विश्वामित्र पहले क्षत्रिय थे किन्तु तपस्या करके वो भी ब्रह्मर्षि बन गए, ऐसे ही कई उदाहरण है, परंतु जब देश में अंग्रेज आये तो उन्होंने हमारी वर्ण व्यवस्था का अध्ययन किया और शायद ये १८५७ के बाद ज्यादा किया, क्योंकि १८५७ की मेरठ क्रांति का आगाज ही ऊँची जाती के लोगो के विरोध के कारण हुआ, इसके बाद अंग्रेजो ने सेना में ऊँची जाती के लोगो को लेना बन्द कर दिया और निम्न जातीय लोगो की भर्ती की जाने लगी [इस समय तक वर्ण व्यवस्था पूरी तरह से जातिगत व्यवस्था में बदल गयी थी, किसी वर्ग विशेष ने अपने निजी फायदे के लिए पुरानी परंपरा से छेड़छाड़ की थी]। 


जैसे ही व्यक्ति सेना में भर्ती होता था उनको एक सेशन दिया जाता था जिसमे उनके अंदर ऊँची जातीया जैसे ब्राह्मण, ठाकुर बनिया और कायस्थों के प्रति घृणा का बीज बोया जाता था, उसका कारण ये था की अंग्रेज जानते थे की अगर १८५७ दुबारा हुआ तब भी उसमे ब्राह्मण, ठाकुर, और कायस्थों का ही हाथ रहेगा, उस समय ये सैनिक अपना पूरा दम  लगा देंगे इन क्रांतिकारियों का दमन करने में, यही कारण था की जब भी कोई अंग्रेज लाठी चार्ज का हुक्म देता था सैनिक लोग दमखम लगा कर लाठिया भांजते थे, बिना किसी दया धर्म के, क्योंकि उनकी नजर में क्रन्तिकारी उनके देशवाशी न होकर उनको उनके भी शोषक  थे। 

ये तो थी अंग्रेजो के समय की अपने फायदे के लिए फुट डालो और राजकारो का काम, आज भी हमारे राजनेता इस देश की जनता को जाती और धर्म के नाम पर बाँट देते है, या यु कहे की अपने फायदे के लिए देश को ही बाँट रहे है, क्योंकि भारत क्या है ? भारत है यहाँ के नागरिको का समूह, अगर यहाँ के नागरिक एक नहीं है तो भारत विखंडित हो जायेगा। 

बिहार चुनाव [बिहार समाचार] में लालू और नितीश ने भारत विखंडन का ऐसा काम किया की पूरा का पूरा मतदाता भृमित हो गया और उनको ही फिर से वोट दे आया जिनसे उसे कुछ नहीं मिला, न रोजगार और न ही शिक्षा, यही हालात बिहार के उन जिलो के विधायको के कामो में भी है, अगर पटना [पटना समाचार] की बात करे तो यहाँ भी जातीयता के नाम पर अधिकारियो के तबादले और जनता का काम होता है, भागलपुर [भागलपुर समाचार] में भी किसी सरकारी ठेके को उठाने में जातीयता ही आधार बनती है। 

अब देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में चुनाव है, नेता लोग घूम घूम कर दलितों, पिछडो, मुसलमानो, महिलाओ, बेरोजगारों और दिहाड़ी मजदूरो को लुभाने के लिए हजारो तरह के मुफ्तखोरी वाले वादे कर रहे है, और चाहते है की जनता मुजफ्फरनगर, मेरठ, आजमगढ़ बुलन्दशहर जैसे जिलो में हुयी साम्प्रदायिक और अन्य अपराध भूल कर फिर से उनको ही वोट दे। 

 मूल बात ये है की जिन राजनेताओ को एकता और अखण्डता का पाठ पढ़ाना चाहिए पहले वो अपने वोट के फायदे के लिए पूरी लग्न से बाँट देते है और फिर दिखावे के लिए भाईचारे और एकता की बाते करते है जिसे कोई नहीं मानता  है। 

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