सबका दुश्मन एक


एक समय था जब मैं  भारतीय प्रशासनिक सेवा के तैयारी कर रहा था, तब का पढ़ा हुआ संविधान और १९५१ के बाद जितने भी बजट और पंचवर्षीय योजनाए बनी सबका अध्धयन कभी कभी याद आ जाता है, भारत सरकार ने कुछ वर्गों का चयन किया था जो की एक बहुत बड़ा अँधा वोट बैंक है [१] अल्पसंख्यक वर्ग - इस वर्ग का नाम ऐसा रखा है जिसमे जैन, सिख पारसी और बोद्ध  जैसे धार्मिक लोगो को आना चाहिए पर इस के अंतर्गत सबसे ज्यादा फायदा सिर्फ मुसलमानो को दिया गया, एक ऐसा फायदा जो किसी को भी अपने फायदे के लिए वोट दे सकता है, सभी सरकारों ने जानबूझ कर इस मुस्लिम समुदाय को जानबूझ कर ऐसा बनाया की ये कभी जागरूक हो ही नहीं सके, और आज भी मुल्ले मोलवियों के फतवे और आदेशो पर चल कर देश में कोहराम मचा सकते है, इस वर्ग को भी सबसे ज्यादा भय हिन्दू उच्च जातीय पुरुषो से है, क्योंकि ऊँची जाती के लोग इनके साथ उठते नहीं है खाते  पीते  नहीं है, यानि का किसी भी तरह का रिश्ता नही रखते ऐसा भ्र्म है, और ये सही भी है, ज्यादातर मुस्लिम लोग धर्मांध होते है और ऊँची जाती के लोग स्वतंत्र विचारो के इसलिए इनसे तालमेल नही खाते, फिर भी अब्दुल कलाम  जैसे लोग हिन्दुओ में ज्यादा लोक प्रिय है।

दूसरे नम्बर पर आते है दलित वर्ग, इसमें SC, ST और OBC तीनो को लेलेते है, क्योंकि अपने फायदे के लिए नेता लोगो ने इनको एक ही घुट्टी पिलाई है की तुम लोगो का पिछड़ापन, आर्थिक परेशानी और अशिक्षा का कारण है हिन्दुओ का उच्च जातीय वर्ग, यही दुश्मन है तुम्हारा, और ये वर्ग फिर से इस्तेमाल हो जाता है, अपने पडोसी ऊँची जाती के दोस्त से लड़ जाता है, और जिनसे सीख कर आगे बढ़ना चाहिए उनसे ही लड़ता है।


तीसरे नम्बर पर नेताओ ने महिलाओ को लेकर खड़ा कर दिया, अभीतक ऊँची जाती के लोगो के घर सुरक्षित थे, वो भी वोट बैंक के लिए तोड़ दिए, महिलाओ में जागरूकता जो भी आयी है वो ऊँची जाती की महिलाओ में ही अपने अधिकारों को लेकर आयी है, दलित, पिछड़े, आदिवासी और मुस्लिम महिलाये आज भी अपने पति और घर को ही सर्वोपरि मान कर जीवन जीती है।

मूल ये है की बड़े वोटबैंक का एक ही दुश्मन है और वो है उच्च जातीय हिन्दू पुरुष, और मजेदार बात ये है की समाज का हरवर्ग यहाँ तक की सरकार  भी हिन्दू उच्च जातीय पुरुषो से ही नैतिकता, त्याग, बलिदान, कर्तव्यपरायणता की उम्मीद रखता है, इसी वर्ग से उम्मीद है की ये अपने साथ साथ बाकि वर्गों का भी उत्थान करे, सरकार को उम्मीद है की बाकि वर्गों के लोग जिस लक्ष्य को ४५ साल में प्राप्त कर सकते है वही लक्ष्य ये वर्ग मात्र ३० साल में प्राप्त कर सकता है, बाकि वर्गों के लिए मानक अगर ३०% है तो इस वर्ग के लिए मानक ७०% है अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए, पर क्यों है ये सब क्या गलती है इस वर्ग की, क्यों इतने तिरस्कार के बाद भी ये वर्ग सबके सामने खड़ा है, शायद ईश्वर ने कुछ विशेष दिया है जो इस वर्ग को हारने नहीं देता, वास्तव में इस हिन्दू सवर्ण पुरुष को ईश्वर का ही सहारा है।

अब प्रश्न ये उठता है की सरकार  द्वारा इतनी योजनाए चलाये जाने का बाद भी महिलाये, दलित, पिछड़े और मुस्लिम लोग आज भी दयनीय स्थिति में क्यों है,  दर असल सरकार ने इनको पराधीन बना दिया सत्ता का,ये अपने कल्याण और उद्धार के लिए या तो सरकार  का मुह देखते है या उच्च जातीय हिन्दू पुरुषो का।

और अगर इन वर्गों के कुछ लोग शिक्षित हो जाते है, अच्छी नौकरी में लग जाते है तो खाली  समय में उच्च जातीय हिन्दू पुरुषो को गालिया देकर, उनके खिलाफ लिखकर अपना समय और ऊर्जा नष्ट करते है, जबकि अगर ये लोग उस ऊर्जा को अपने जैसे अन्य लोगो के कल्याण में लगाए तो उनके वर्ग के बाकी लोगो का भी भला हो सकता  है, तरह सामाजिक दूरिया कम  जाएगी  सबका विकास भी हो जायेगा। 

Comments