भारत देश किस तरफ जा रहा है

आज का भारत एक अजीव से संक्रमण काल  रहा है, जिसमे हम, आप, मीडिया और हमारा प्रशासन ये निर्णय नहीं ले पा रहा है की किस को अभिव्यक्ति की आज़ादी मान कर संरक्छन दिया जाये और किस बात को देशद्रोह या लोक तंत्र के लिए खतरा घोसित किया जाये, आईयेगा जरा सा मेरे साथ साथ इस लोकतंत्र की यात्रा का एंड लीजियेगा।

भारत तेरे टुकड़े होंगे, कश्मीर मांगे आज़ादी और अफजल हम शर्मिंदा है ये सुनते ही देश द्रोह से परिपूर्ण लगते है क्योंकि भारत के संबिधान के अनुसार कश्मीर अखण्ड भारत का अभिन्न अंग है उसके भारत से आजाद होने का प्रश्न ही नहीं उठता तो फिर आज़ादी किससे, इस्लामिक आतंकवाद से ? अब आते है अफजल पर उसको

मृत्यु की सजा देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सुनाई थी, तो उसके दण्ड को गलत ठहराना देश की न्याय व्यवस्था का अपमान करना है, लेकिन वामपंथी लोगो को कुछ ज्यादा ही आज़ादी मिली है या यु कही अंतरष्ट्रीय मीडिया में इनकी अच्छी पकड़ है इसलिए ऐसे मुद्दे पर इनको अंतराष्ट्रीय मीडिया काकवरेज मिल जाता है और इनका आत्मविश्वास अंतराष्ट्रीय स्तर का हो जाता है, जिसके अभिमान में ये यहाँ की कानून और न्याय व्यवस्था की धज्जिया उदा देते है।

अब देखते है भारत माता की जय, वनडे मातरम और जय श्री राम के नारे आज देश में लोक तंत्र के लिए खतरा है, इसका प्रयोग करने वालो की अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है, उसको देश का संबिधान अभिव्यक्ति  स्वतंत्रता नहीं देता, क्योंकि इस वर्ग के लोगो को अंतराष्ट्रीय मीडिया में कोई नहीं जनता है और जिनको अंतराष्ट्रीय मीडिया जनता है वो इसने खिलफ है इसलिए मज़बूरी में देश का मीडिया और प्रशासन इनके खिलफ होकर इनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी की हवा निकाल देते है.


अब आते है बीफ खाने और बचाने के मामले पर, एक वर्ग अगर गाये का मांस खाता है तो ये उसका मौलिक अधिकार है समाज का कोई व्यक्ति उसे  बताये की उसे क्या खाना है,, पर अगर किसी ने गाय  रक्षा की बात की तो लोग सड़क के किनारे स्टाल लगा कर बीफ पार्टी मना कर अपने मौलिक अधिकारों का प्रदर्शन करते  है और देश में बिना किसी दोष के सिर्फ अपना अहंकार पूर्ति की भेंट हजारो गाये अपनी जिंदगी खो देती है, और अगर कोई कोई इसका विरोध करे तो ये इतनी अकड़ के साथ कहते है की सामने वाला जो की गाये को बचाने की बात करता है इनको ठोक देता है और फिर शुरू गोरक्षक दल ने मारपीट की, अंतराष्टीय मीडिया के दवाब में आकर देश का मीडिया भी गोरक्षकों को ही दोषी ठहरा देता है जबकि नैतिकता की दृस्टि से देखो तो दोषी वो हुआ जो जिव हत्या सिर्फ अपने स्वाद के लिए कर रहा है।

आज कुत्ते पर जुल्म मत करो, बेल पर जुल्म मत करो, पतंग मत उड़ाओ उससे पक्षी मरते है हिरन का शिकार मत करो, गेंडा हाथी  या हाथी को मत मारो ये प्रकृति के विरिद्ध है सबको जीने का अधिकार है को सब बड़े सम्मान और संवेदना से देखते है, परन्तु अगर गाये को बचाने की बात कर दी तो सिर्फ ये बात कर क्यों दी इसके कारण ही हजारो गाये  भेंट चढ़ जाएगी, उस पर तर्क ये की खुला क्यों घूम रही थी गाये, इतनी ही चिंता है तो बांध कर रखो, कल को ऐसी मानसिकता के लोग किसी भी लड़की का बलात्कार या किसी भी लड़के को मार लेकर बोल सकते है की घूम क्यों रहा था।

एक लोकतान्त्रिक देश में अबको आज़ादी है, उनको भी जो गाये को पूजते है, उनको भी जो जय श्री राम के नारे लगाते है, सबको आज़ादी से जीने दो नहीं तो ये घुटन किसी दिन किसी भी आज़ादी से जीने नहीं देगी।

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