भारत में सरकारी सहायता प्राप्त संगठित अपराधी


देश तो १९४७ में आज़ाद हो गया था, और ये आज़ादी देश के प्रत्येक नागरिक के लिए है, वो किसी भी जाती धर्म या लिंग का हो। परंतु देश में २ प्रकार के नागरिक ज्यादा संगठित है और अपने अधिकारों और मांगो के लिए सबसे ज्यादा जल्दी लामबद्ध हो जाते है।

इन दोनों वर्गों का वास्तव में देश की प्रगति में जनसँख्या के लिहाज से कोई योगदान नहीं है, उलटे इनका जीवन करदाताओ के द्वारा दिए गए कर को ही सरकार अपने नाम से सब्सिडी या अन्य नामो से देकर इनको जीवित रखे हुए है, क्योंकि ये एक बहुत बड़ा वोट बैंक है जो की हर राजनीतिक दल को चाहिए, और इसलिए इन वर्गों के लोगो को पंगु, अपने आश्रित या अपांग बना कर इनको जीवित रखे हुए है।

देश ११वी शताब्दी से मुस्लिम शासको के हमले देख रहा है, और पहले मुस्लिम शासको और फिर अंग्रेजो ने भारत के सम्पूर्ण भुभग पर राज किया, आज जब कोई हिन्दू संगठन और समर्पित हिन्दू कहता है की मुस्लिमो के ऊपर सरकार इतनी मेहरबान क्यों है जबकि उनके ही पूर्वजो ने हमे लूटा था और जुल्म किये थे।

तब देश का एक बुद्धिजीव वर्ग कहता है की हमे आपस में प्रेम से रहना चाहिए, मुस्लिम भी अब देश के नागरिक है, उनके पूर्वजो ने जो किया सो किया, अब तो लोक तंत्र है, अब समाज और देश को तोड़ने की बात न कर के संबिधान के अनुसार सबके साथ चलना चाइये।

कुलमिलाकर जब बात हिन्दू मुस्लिम की होती है तो चाहे हो नेता लोग हो, देश की न्याय पालिका हो या फिर बुद्धिवादियों का संगठन हो, सबका एक ही स्वर होता है, बीती ताहि विसार दे और द्वेष मुक्त होकर रहो, ये बात सुनकर ठीक लगता है पर उतनी ठीक है नहीं।


अब आते है उस वर्ग की तरफ जिसे तमाम सालो के शोषण का शिकार माना जाता है और उसके पिछड़ेपन के लिए देश के सवर्ण वर्ग जिसे आजकल कानून की भाषा में सामान्य वर्ग कहा जाता है उसके पूर्वजो को मन जाता है, और हमारे पूर्वजो ने जुल्म किये थे इसलिए उसकी भरपाई हमारे टेक्स से उनको मुफ्त के बजीफे, स्कूल की फीस इत्यादि दी जाती है, और वर्षो से शोषित रहे है यही कहकर आरक्छन दिया जाता है, आयु में छूट दी जाती है।

मेरी वेदना ये है की अगर मुस्लिम समुदाय के पूर्वजो के जुल्म को भुलाने की बात करके साथ में हिल मिल कर रहने की बात की जाती है, तो दलित या पिछड़े वर्ग को क्यों याद दिलाया जाता है की सवर्णो के पूर्वजो ने तुम्हारे पूर्वजो पर जुल्म किये थे और यही तुम्हारे पिछड़ेपन और दावे कुचले होने का कारण है, मेरे मतानुसार उनको भी समरसता का पाठ पढ़ाया जाये, उनको भी कहा जाये जो हुआ सो हुआ, अब हिल मिलकर रहो, मुफ्त खोरी छोड़ कर मेहनत के बल पर आगे बढ़ो।

अगर इस पथ पर नहीं चले तो आने वाले समय में वर्ग संघर्ष तय है।


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