क्या हम भगवान के बिना रह सकते है
आप बताईये की आप जीवित क्यों है, कुछ लोग कहेगे की सांसे चल रही है इसलिए जीवित है, पर साँस चलाने के लिए क्या वैज्ञानिक लोग एक पम्प नही लगा सकते है, फिर आप कहेगे की दिमाग मर जाता है तो आ गए कनेक्शन पर, इसके बाद विचार, भावनाये, प्रेम, अपनापन आगे बढ़ने की प्रेरणा, जीवन में लड़ने का उत्साह, गिर कर उठने का साहस क्या ये सब सम्भव है की वैज्ञानिक लोग कृतिम रूप से बना ले, और मान लो बना भी लिया तो उसको ऊर्जा कहाँ से मिलेगी।
जो ऊर्जा का श्रोत उसका है उससे उसे मिलेगी और जो मनुष्य का है उस श्रोत से मनुष्य को मिलेगी, मनुष्य की ऊर्जा का श्रोत ईश्वर ही है, आज हमारा श्री बलिष्ठ है, बुध्दि तेज है, हाथो पैरो में ऊर्जा है, सब उसका ही दिया हुआ, बस ईश्वर ने हमे कुछ स्वतंत्रता दी है, जैसे किसी दुखी व्यक्ति से कैसे व्यवहार करे, सुख और उन्नति होने पर हम कसे व्यवहार करे, वास्तव में यही व्यवहार हमारे अगले जन्म की रूप रेखा तैयार करता है, की अगले जन्म में हम कैसे होंगे।
आज हम गरीबो को देखते है, अक्षम लोगो को देखते है, हृदय में दया का भाव आता है,हम उसकी सहायता भी करते है, उनको हिम्मत भी देते है, अगर आप और हम ये सब करते है तो विस्वास करियेगा आपका जीवन अत्यंत प्रभावशाली होगा, कुछ बुध्दिवादी लोग कहसकते है की अगलाजन्म किसने देखा है, में कहता हूँ की जो आपको दीं दुखी दिख रहे है वो क्यों है, इस जन्म में क्या किया उन्होंने, और न ही हर गरीब घर में पैदा होने बल गरीब होकर मरता है और न ही अमीर घर में पैदा होकर अमीर ही मरेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है, मतलब कुछ तो है जो इन प्राकृत आँखों से हम नहीं देख पाते है।
आप को विस्वास हो या न हो परंतु हम में से कोई भी ईश्वर की शक्ति के बिना १ कदम भी नहीं चल सकता, और ईश्वर से प्रेम करने बाले जितने है उतने ही उनसे घृणा करने बाले भी होंगे, क्योंकि संसार की रचना ईश्वर ने अपने मनोरंजन के लिए की है, जब उसका मनोरंजन हो जाता है, सम्पूर्ण सृष्टि को स्वयं में समाहित कर लेता है, आज समुद्र का पानी अगर १ फुट ऊपर आ जाये तो क्या हो, लगातार १० दिन बारिश हो जाये तो क्या, हम सभी लोग सभी प्रकार का वैर भुला कर एक साथ खड़े होकर अपने मन में उसी शक्ति का स्मरण करेगे जो हमको बचा सकती है, लेकिन जैसे ही सब शांत होगा कुछ लोग वैज्ञानिक बन जायेगे।
परंतु जैसे जैसे अधर्मी लोग बढ़ते है वैसे ही वैसे धर्म की रक्षा करने बाले हाथ भी बढ़ते है, ईश्वर ने स्वर्ग की रचना की तो नरक की भी की, देवताओ के लिए अमरावती बनायीं तो दैत्यों के लिए भी पाताल लोक बनाया, है सब सन्तुलन में, अब प्रश्न ये है की ईश्वर को प्रसन्न करके आप क्या चाहते हो।
जो संपत्ति शिव रावनहि दीन्ह दिए दस माथ। सोई सम्पदा विभीषणही सकुच दीन्ह रघुनाथ ।।
मतलब अगर आप सही मार्ग पर चल रहे हो तो भगवान भी आपको देने से पहले सकुचा जाते है की कही मना न कर दे, ये थोड़ा जटिल है, जैसे माता अपने बच्चे को खाना खिला ले तो निश्चिन्त हो जाती है पर अगर बच्चा खाना न खाये तो चिंता लगी रहती है, माँ सोचती है कुछ खा ले, यही रिश्ता भक्त और भगवान का है,अगर भक्त भगवान से कुछ माग लेता है या दिया हुआ ले लेता है तो भगवान को शांति मिल जाती है, लेकिन अगर न ले तो ज्यादा चिंता होती है। जय श्री राम
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