Official Blog of Ambrish Shrivastava: फूट डालो और शासन करो

Thursday, April 13, 2017

फूट डालो और शासन करो

१८५७ की क्रांति एक ऐसी क्रांति थी, जिसमे देश के हर वर्ग ने अपने स्तर पर भाग लिया, वो चाहे किसी भी धर्म का हो किसी भी आयु का हो या फिर क्षेत्र का हो, मगर इस क्रांति में भी देश के कुछ भाग एकदम शांत बने रहे, वो था पंजाब, दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर के राज्य, जब ये क्रांति पूरी तरह से सफल नहीं हो पायी तो अंग्रेजो ने इस पर विचार किया की आखिर ये क्रांति हुयी क्यों, और अगर हुयी तो फिर इसमें सब लोग शामिल कैसे हो गए।

अंग्रेजो को ज्ञान देने में कुछ इस माटी में जन्मे देशद्रोही भी थे, जिन्होंने बताया की देश में समाज का बंटवारा जातियों के आधार पर है और प्रारम्भ में जातियों का सृजन कर्मो के आधार पर था। भारत के राजनेताओ द्वारा भारत का विभाजन

तब अंगेजो ने पाया की जो बात इस क्रांति में थी वो [१] किसी जाती विशेष के उकसाने पर उच्च वर्ग का भड़कना [२] फिर उसी उच्च वर्ग के आवाहन पर निम्न वर्ग का उसका साथ देना क्युकी दोनों ही हिन्दू है और धमर की रक्षा के लिए सब साथ आ जाओ, तो अगर किसी तरह से इनके बीच के एकता को तोड़ दिया जाये तो अंगेज कभी भी परास्त नहीं हो सकते, क्युकी उच्च वर्ग संख्या में काफी कम है। भारत देश किस तरफ जा रहा है

इसलिए उन्होंने मैकाले की सुझाई हुयी शिक्षा पड़ती लाने के विचार किया, जिसमे एक तरफ तो ऐसी फ़ौज तैयार की जाये जो देश की जनता को समझती हो और उनको अंग्रेजी हुकूमत के प्रति बफादार बनाये रखे, दूसरी तरफ राज आश्रित इतिहासकारो की एक फ़ौज भी तैयार कर दी जिनका काम था एक ऐसा इतिहास लिखना जो उच्च वर्ग के हर छोटे से छोटे भेदभाव बड़ी ही सफाई और बारीकी से नींम वर्ग विरोधी बनाये रखे, मतलब की एक ऐसी दीवार बनाये जिसको पार करना उच्च वर्ग के लिए मुश्किल हो या शर्मशार करने बाला हो और निम्न वर्ग उसको पार करना ही न चाहे, कुल मिलाकर दोनों के एक अलग दुनिआ बना दी।

इसमें सबसे जयादा उन्होंने बुध्द का सहारा लिया, क्युकी निम्न वर्ग को कर्मकांड करने का समय नहीं था, इसलिए वो करते नहीं थे, समाज कर्मो के अनवर बनता था सबके काम अलग थे, पर अंगेजो ने ऐसा इतिहास लिखवाया जिसमे यही प्रश्न सबके दिमाग में उठे की वो कर सकते है तो हम क्यों नहीं और जब हम करते है तो वो क्यों नहीं, कुल  मिलाकर समाज की एक व्यवस्था को भंग करके एक नहीं व्यवस्था बनायीं गयी। भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

आज भी वैसे ही इतिहासकारो को राजकीय संरक्षण प्राप्त है जो समाज में विभेदनकरी इतिहास लिख कर सामाजिक समरसता में जहर घोल रहे है और कहते है की उच्च वर्ग आज भी सामंतवादी मानसिकता का है, पर वो ये नहीं मानते है की निम्न वर्ग भी सामंतवादी मानसिकता और स्थिति को प्राप्त करना चाहता है, तो जो वास्तु सबके लिए वांछनीय है उसको पहले एक वर्ग छोड़े फिर पकड़ने के लिए मेहनत करे, ये तो गलत है, अरे जो पकडे है उनके पास रहने दो और आप भी मेहनत करो और प्राप्त करो, पर समाज को एक झूठा इतिहास दिखार बांटो मत। 

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