जातिगत आरक्षण नक्सलवाद से भी भयानक है


जातिगत आरक्षण नक्सलवाद से भी भयानक है क्युकी ये धीरे धीरे अलगाववाद की तरफा बढ़ रहा है, आज फेसबुक, मीडिया और जहा तहा आरक्षण की वकालत वो लोग कर रहे जो एक बार आरक्षण का फायदा ले चुके है और बार बार वही लेना चाहते है और शक्ल दिखाते है उन गरीब दलितों की या पिछडो की जिनको देखकर किसी भी मानव का हृदय परिवर्तित और द्रवित हो जाए।

जो लोग आरक्षण की सबसे ज्यादा वकालत करते है, वास्तव में अब समय आ गया है की वो लोग स्वेक्षा से आरक्षण छोड़ दे जिससे की उतने ही अनुपात में उनलोगो को फायदा मिल जाए जो अभी भी सबसे निचले पायदान पर है, परन्तु ये लोग इतने कुटिल हो गए है की बजाये खुद छोड़ने के अपनी आबादी के अनुपात में आरक्षण की मांग करने लगे, जो की पूरी तरह से एक मूर्खतापूर्ण बात है, क्युकी अगर आबादी के हिसाब से ही देना होता तो फिर प्रतियोगी परीक्षाएं क्यों करबाई जाती।

अब इनके तर्क ये है की आरक्षण इसलिए दिया गया था की समाज में समानता आये, परन्तु इन ७० सालो में तो आयी ही नहीं, वल्कि अब ज्यादा असमानताएं यही, दलित सवर्णो से द्वेष करता है तो बदले में स्वर्ण भी दलितों से द्वेष करता है, जब दलितों कोई मेहनत से आगे बढ़ता है तो दलितों के तेवर देखो, ऐसा लगता है आज ही सभी सवर्णो को लज्जित करके भूमि में दवा देंगे, और अगर उनको ये बोल दो की जब आपके लोग इतने विद्वान हो गए है की सामान्य से ज्यादा नंबर ला सकते है तो छोड़िये आरक्षण इससे हमारा भी आत्मविश्वास कम हो रहा है, तो तुरंत ही ५००० का रोना शुरू और इतना गजब रट है की आ भी भूल जाओगे की ११ वि शताब्दी से देश मुगलो और फिर अंग्रेजो के अधीन रहा है, आपको भी लगेगा की जैसे पूरा राजपाठ मनुस्मृति के हिसाब से चलता था, और दलितों को साँस लेने के लिए भी आज्ञा की आवश्यकता थी।

वास्तव में आरक्षण एक तिनके का सहारा था, जो उस समय के विद्वान लोगो ने सोचा होगा, की अगर १ परिवार का एक सदस्य सरकारी नौकरी में जायेगा तो खुद ही ईमानदारी से आरक्षण भी छोड़ देगा और अपने परिवार की जिम्मेदारी खुद उठाएंगे और राष्ट निर्माण में भागीदार बनेगे, और विद्वान लोग ये भूल गए की स्वार्थ और लालच किसी को भी आ सकता है फिर वो दलित और पिछड़ा ही क्यों न हो, गाँधी जी ने हरिजन कह दिया इसका मतलब ये नहीं है की ये वैष्णव जन  और नरसिंघ मेहता के वैष्णवजन एक ही है, जहा गाँधी के हरिजन नंबर १ के स्वार्थी और लालची है वही नरसिंघ मेहता के हरिजन १ नंबर के निश्वार्थ और त्यागी है।

बस यही पर हमारे संबिधान निर्माण में आरक्षण को हां करने वाले विद्वानजन धोका खा गए, और कोई तैयारी नहीं की ये सोच कर की ये लोग तो सीधे और सरल स्वाभाव के है, लालच और स्वार्थ तो इनमे होगा ही नहीं, बेहतर होता जिसका एकबार जातिप्रमाणपत्र बनता उसका सरकारी नौकरी लगते है जमा करा लिया जाता और उसकी खबर स्थानीय तहसीलदार को दे दी जाती की इनकी सरकारी नौकरी लग गयी है अब इनके आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा और न ही इनके परिवार के किसी भी सदस्य को, और नैतिकता के आधार पर अपने परिवार की जिम्मेदारी इनपर ही है, और चाहते तो सेवा सदस्य्ता के समय एक शपथ पत्र भी ले सकते थे।


आज दलित और पिछड़े खुद  को पूरी आबादी का ८५% बनाते लगे है, जिसमे मुसलामन भी शामिल है, ये उन्ही के वंशज है जिन्होंने यहाँ पर खूब लुतंपाट और कत्लेआम किया है, और सब जानते है की ये ११वी शताब्दी मी आये है, उसके पहले तो आर्य भी है परन्तु ये लोग स्वार्थ में इतने अंधे है की अपने लोग नहीं दिख रहे वल्कि एक लुटेरी कौम के लोग अपने हितेषी लग रहे है, नक्सलवाद भी ऐसे ही शुरू हुआ था, पहले उनकी बात सही थी, परन्तु उनको देशविरोधी ताकतों ने धन और गन दे दिया तो आज वो देश के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन गयी है, और अगर भारत की सरकार ने वोट बैंक के चक्कर में जातिगत आरक्षण के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं बनायीं तो एक  और नक्सलवाद के लिए तैयार रहे, जिसका नुकशान सरकार को नहीं वल्कि आम जनता को ही झेलना पड़ता है। Bihar News | Patna News | Nawada News | Buxar News

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