नक्सलवाद की परिभासा और इतिहास

भारत देश अंग्रेजो से तो आज़ाद १९४७ में हो गया था, परन्तु फिर भी कुछ भाग देश के ऐसे भी थे जो जमींदारों के कर्जो से दबे हुए थे, इन गरीब लोगोको सरकार की तरफ से कुछ जमीने अनुदान स्वरुप दी गयी थी, अचानक से बिना किसी श्रम के मिली समपत्ति ने इन गरीब लोगो की बुझी हुयी जिंदगी में अचानक से उजाला कर दिया, और वो समझ ही नहीं पाए की इसका करें क्या, कुछ ने खेती करके मेहनत करना स्वीकार किया जबकि कुछ लोगो ने अपनी जमीन को किसी और व्यक्ति के साथ मिलकर साझेदारी में काम किया, कुछ को जमींदारों की तरह जीने का चस्का लगा जिसमे सभी प्रकार के शौक थे, हुक्का, मुजरा इत्यादि, तो इन लोगो की जमीने जल्दी ही बिक गयी और अपना रोब बरक़रार रखने के लिए अपने भाई बंधुओ पर जुल्म करने लगे, उनकी फसले लूटने लगे, उनसे ही कर लेने लगे.

नक्सलवादी कौन है

मतलब ये जो नए जमींदार बने ये भी वही काम करने लगे जिसके कारण ये लोग खुद के गरीब होने का कारण मानते थे, इनके जुल्म से दुखी होकर काफी लोगो ने अपना घर और जमीन छोड़ कर परिवार के साथ पलायन कर दिया, अब इनके पास जमीन तो थी पर काम करने वाला कोई नहीं था, इसलिए इनलोगो ने आस पास के ग्रामो के उन लोगो को भड़काना शुरू कर दिया जिनकी जमीने बिक गयी थी, और बहाना ये बनाया की सरकार से हमारे साथ धोका किया है, हमें उतने संसाधन नहीं दिए जितने हमे चाहिए थे, जमींदारों और पूंजीपतियों पर सरकार मेहरबान है और हमे सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा दे दिया, क्या होता है इससे हमारे बच्चे अंग्रेजी स्कूल में क्यों नहीं पढ़ते, हम इलाज करने विदेश क्यों नहीं जा सकते, हम क्या इंसान नहीं है, ऐसे विचारो को इतनी एकाग्रता और बुद्धिवादिता के साथ कहा गया की इनकी एक फ़ौज बन गयी जो काम करना नहीं चाहती थी और सुख सुविधाएं जमींदारों वाले चाहिए थे।

नक्सलवाद का इतिहास

भारत में नक्सली हिंसा की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से हुई जिससे इस आंदोलन को इसका नाम मिला. हालांकि इस विद्रोह को तो पुलिस ने कुचल दिया लेकिन उसके बाद के दशकों में मध्य और पूर्वी भारत के कई हिस्सों में नक्सली गुटों का प्रभाव बढ़ा है. इनमें झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं.

नक्सलवादी विचारधारा

नक्सलियों का कहना है कि वो उन आदिवासियों और गरीबों के लिए लड़ रहे हैं जिन्हें सरकार ने दशकों से अनदेखा किया है. माओवादियों का दावा है कि वो जमीन के अधिकार और संसाधनों के वितरण के संघर्ष में स्थानीय सरोकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं. नक्सलवादी या माओवादी एक ऐसी समाज की स्थापना की बात करते है जिसमे सबके पास बराबर संसाधन हो, न किसी के पास कम न किसी के पास जयादा इसे ही दूसरे शब्दों के कहते है अंततः 'एक कम्युनिस्ट समाज' की स्थापना करना चाहते हैं, परन्तु ये इनकी मूर्खता है, अगर आप संसार की पूरी संपत्ति संसार के सभी व्यक्तियों में बराबर भी बाँट देंगे तो भी आप देखोगे की १ साल में कुछ लोग अमीर हो गए, कुछ लोग वही है और कुछ लोग फिर से गरीब हो गए, ये बेबकुफ़ लोग बोलेगे वो अमीर गरीबो का खून चूस कर बना है, लेकिन ये नहीं सोच सकेंगे की उस व्यक्ति ने अपनी सम्पत्ति का सही इस्तेमाल किया, सही जगह निवेश किया, समाज की जरूरत की चीजे बनायीं जिससे उसने अपनी संपत्ति और बढ़ा ली, मगर इनका लॉजिक ये रहेगा की क्यों बढ़ा ली, वैसा ही रहता

नक्सलवाद की समस्या

वर्ष 2009 में कोलकाता से महज़ 250 किलोमीटर दूर लालगढ़ ज़िले पर नक्सलियों ने कब्ज़ा कर लिया था जो कई महीनों तक चला. माओवादियों ने लालगढ़ को भारत का पहला “स्वतंत्र इलाका” घोषित किया लेकिन आखिरकार सुरक्षा बल इस विद्रोह को दबाने में कामयाब रहे. नक्सली हिंसा की एक और बड़ी घटना में साल 2010 में नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में सुरक्षाबलों पर घात लगा कर हमला किया जिसमें 76 सुरक्षाकर्मी मारे गए. इससे पहले 2007 में छत्तीसगढ़ में ही पुलिस के एक नाके पर नक्सली हमले में 55 पुलिसकर्मी मारे गए थे. साल 2011 में जहां नक्सली वारदातों में 611 लोग मारे गए थे, वहीं 2012 में 409 लोग मारे गए थे जिनमे 113 सुरक्षा बल के जवान और 296 आम नागरिक शामिल हैं. अगर साल 2010 पर नज़र डालें तो हताहत होने वालों की संख्या 1005 थी.

नक्सलवाद एक आतंकवाद है

ऐसा नहीं है की नक्सलवादी या माओवादी आदिवासी या गरीबो के वास्तव में हमदर्द है, ये बिलकुल संवेदनहीन और क्रूर है, अभीतक इन्होने न जाने कितने आदिवासीओ और गरीबो पर पुलिस का मुखबिर होने का आरोप लगा कर बेदर्दी से मार दिया है, तो फिर ये कैसी लड़ाई है किसकी लड़ाई है जिसमे तुम अपनों को ही मार देते हो,

बिहार के नक्सल प्रभावित जिलों के समाचार 

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