ये भारत वो भारत नहीं है
भारत जैसे महान शब्द की रचना महाभारत के अनुशार महाराजा भरत के नाम पर हुयी, भारत की संकल्पना बाद में आचार्य चाणक्य ने की थी, निसंदेह समाज इस समय भी चार वर्णो ने बांटा गया होगा, सबके अपने अपने काम होंगे, परन्तु उस समय की भी कुछ घटनाये ये बताती है की राजा कोई भी सक्षम व्यक्ति बन सकता था, जैसे कर्ण और चन्द्रगुप्त बने, ये राजपरिवार के नहीं थे परन्तु ऊर्जावान और धैर्यवान थे, उसे समय ये वर्ण व्यवस्था ही वर्गीकरण था समाज को चलाने का, जो की आज भी है, IAS है PCS है, और भी कई वर्ग है, सैन्य शक्ति है, अब मेजर का काम आईपीएस नहीं करेगा क्युकी वो उसका अधिकार क्षेत्र नहीं है, भले ही दोनों की गणवेश पर अशोक स्तम्भ लगा हुआ हो, ऐसे ही जज का काम मुख्य सचिव नहीं कर सकता भले ही दोनों का पद समान हो और जज भले ही गलत निर्णय सूना दे और मुख्य सचिव के पास बिलकुल सही न्याय करने की क्षमता हो, सकारात्मक दृटिकोण ये है की जाज्का निर्णय मान्य है नकारात्मक ये है की न्याय पालिका अपने को सर्वोच्च मानती है और उसकी कोई सुनवाई नहीं है, कई बार तो न्यायाधीश ये भी है की इस निर्णय के विरूद्ध जाने पर दंडात्मक कार्यवाही होगी, आप कहसकते है की जज तो कोई भी बन सकता है जबकि उस समय नहीं बन सकते थे, तो फिर मेरा प्रश्न है की अगर ये सत्य होता तो अम्बेड़कर इतना पढ़ कैसे गए, रविदास जी के लिखे भजन सब क्यों गाते है, ये सिर्फ दलितवादीओ की नकारत्मक सोच का नतीजा है जो उसे समाज में सवर्ण वर्ग सहन नहीं होता है।
जब देश में मुग़ल आये तो वो जीत तो गए परन्तु संख्या में कम होने के कारण उन्होंने इतिहास में कुछ छेड़छाड़ करवाई, निःसन्देश इसमें कुछ धनलोलुप और सत्ता की निकटता चाहने वाले बुद्धिजीवी वर्ग के लोग रहे होंगे, उन्होंने समाज के वर्गीकरण को एक गहरी खायी बनाने का प्रयास किया, लेकिन आशातीत सफल नहीं हो पाए क्युकी संचार के साधन कम थे और यहाँ का सबकुछ यही पर रहा इसलिए गरीबी भुखमरी जैसी स्थिति नहीं आयी तो किसी भी वर्ग के व्यक्ति ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया, और न ही उकसाने बाले इतने संगठित थे , इसलिए मुग़ल काल के इतिहास में आपको सवर्ण और दलितों का आपसी युद्ध या संघर्ष कम ही मिलेगा, यहाँ तक की हिन्दू मुसलमानो के बीच भी शांति रही, क्युकी सब अपने अपने में मस्त थे, कुछ हालात ख़राब थे, मगर वो धरातल पर नहीं थे, राजाओ के बीच थे जिससे सामान्य नागरिक बिलकुल अलग था, क्युकी अगर सामान्य नागरिक भी हिंदुत्ववादी होता तो मुग़ल टिक ही नहीं सकते थे।
जब अंग्रेज आये तो उन्होंने यहाँ के समाज का १५० सालो से भी ज्यादा समय तक अध्ययन किया, यहाँ की यहाँ के लोगो की कमिया देखि, उनका आपसी विस्वास कितना है, वे कितने कान के कच्चे है, इन सबका अध्ययन किया और १७५७ के प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजो ने मिशनरियों के माध्यम से जनता में फुट डालना शुरू किया, लेकिन ये इतना आक्रामक नहीं था जितना १ ८ ५ ७ के बाद हुआ, और इसमें ईसाई मिशनरियों ने बहुत ही आक्रामक भूमिका निभाई, क्युकी १ ८ ५ ७ के युद्ध के कारणों का बहुत अध्ययन करने के बाद अंग्रेज समझ गए थी की धर्म के नाम पर चारो वर्ण एक हो जाते है।
अंग्रेजो और ईसाई मिशनरियों ने दलित, पिछड़े और आदिवासीओ को जागरूकता के नाम पर सवर्ण हिन्दू से लड़ा दिया, उस वर्ग से जो इनका सबसे बड़ा संरक्षक था, और आज भी नेता या सामाजिक कार्यकर्ता दलितों के अधिकार, दलितों के सम्मान, दलितों और पिछडो के लिए बाते करके खुद अमीर बन जाते है, विदेश घूमते है, परन्तु वास्तविक दलित और पिछड़ा अपनी वास्तविक स्थिति से आज भी १ इंच नहीं उठा है, वो वही है, और उनका साथ आज भी समाज का सवर्ण वर्ग ही दे रहा है। Motihari News | Nawada News | Darbhanga News | Buxer News | Bihar News | Saran News | Lakhisarai News | Jamui News
जब देश में मुग़ल आये तो वो जीत तो गए परन्तु संख्या में कम होने के कारण उन्होंने इतिहास में कुछ छेड़छाड़ करवाई, निःसन्देश इसमें कुछ धनलोलुप और सत्ता की निकटता चाहने वाले बुद्धिजीवी वर्ग के लोग रहे होंगे, उन्होंने समाज के वर्गीकरण को एक गहरी खायी बनाने का प्रयास किया, लेकिन आशातीत सफल नहीं हो पाए क्युकी संचार के साधन कम थे और यहाँ का सबकुछ यही पर रहा इसलिए गरीबी भुखमरी जैसी स्थिति नहीं आयी तो किसी भी वर्ग के व्यक्ति ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया, और न ही उकसाने बाले इतने संगठित थे , इसलिए मुग़ल काल के इतिहास में आपको सवर्ण और दलितों का आपसी युद्ध या संघर्ष कम ही मिलेगा, यहाँ तक की हिन्दू मुसलमानो के बीच भी शांति रही, क्युकी सब अपने अपने में मस्त थे, कुछ हालात ख़राब थे, मगर वो धरातल पर नहीं थे, राजाओ के बीच थे जिससे सामान्य नागरिक बिलकुल अलग था, क्युकी अगर सामान्य नागरिक भी हिंदुत्ववादी होता तो मुग़ल टिक ही नहीं सकते थे।
जब अंग्रेज आये तो उन्होंने यहाँ के समाज का १५० सालो से भी ज्यादा समय तक अध्ययन किया, यहाँ की यहाँ के लोगो की कमिया देखि, उनका आपसी विस्वास कितना है, वे कितने कान के कच्चे है, इन सबका अध्ययन किया और १७५७ के प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजो ने मिशनरियों के माध्यम से जनता में फुट डालना शुरू किया, लेकिन ये इतना आक्रामक नहीं था जितना १ ८ ५ ७ के बाद हुआ, और इसमें ईसाई मिशनरियों ने बहुत ही आक्रामक भूमिका निभाई, क्युकी १ ८ ५ ७ के युद्ध के कारणों का बहुत अध्ययन करने के बाद अंग्रेज समझ गए थी की धर्म के नाम पर चारो वर्ण एक हो जाते है।
अंग्रेजो और ईसाई मिशनरियों ने दलित, पिछड़े और आदिवासीओ को जागरूकता के नाम पर सवर्ण हिन्दू से लड़ा दिया, उस वर्ग से जो इनका सबसे बड़ा संरक्षक था, और आज भी नेता या सामाजिक कार्यकर्ता दलितों के अधिकार, दलितों के सम्मान, दलितों और पिछडो के लिए बाते करके खुद अमीर बन जाते है, विदेश घूमते है, परन्तु वास्तविक दलित और पिछड़ा अपनी वास्तविक स्थिति से आज भी १ इंच नहीं उठा है, वो वही है, और उनका साथ आज भी समाज का सवर्ण वर्ग ही दे रहा है। Motihari News | Nawada News | Darbhanga News | Buxer News | Bihar News | Saran News | Lakhisarai News | Jamui News
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