A conversation between mind and heart
कभी कभी हमें लगता है की हमारे अपने भी हमें नहीं समझते है, तो सबसे पहले हमे ये भी तो समझना होगा की वास्तव में हमारे अपने है कौन ? अगर आपको इसका उत्तरा मिल जाये की हमारे अपने कौन है तो आपकी ९० प्रतिशत समझने और समझने की समस्या खत्म हो जाएगी।
जैसे हो सकता है आप जिनके भी साथ हो उनको अपना समझते हो और जो आपके साथ है वो न समझते हो तो क्या आप गलत हो ? नहीं क्युकी सभी का अपना स्वभाव होता है जैसे जल का स्वभाव होता है, तेल का स्वभाव होता तेजाब का स्वभाव होता है ऐसे ही हर मनुष्य का अपना स्वभाव होता है।
अब मान लो आप अपने स्वभाव के कारण लोगो से धोखा खा जाते है, बाकि लोग आपकी सहायता से आगे निकल जाते है और आप सबकी सहायता करके भी अकेले और पिछड़े रह जाते हो, तो इसके लिए कौन दोषी है? आप जो सहायता करते रहे सबको अपना समझते रहे या वो जो आपसे सहायता लेकर आगे बढ़ गए ?
यहाँ पर कोई भी दोषी नहीं है, आप इसलिए नहीं क्युकी आप सही थे, वो इसलिए नहीं क्युकी उन्नति सबको करनी होती है, उसको दोष देना सही भी नहीं है, क्युकी अगर वो सामर्थ्यवान होते तो आपकी सहायता क्यों लेते, और आप समर्थवान थे इसलिए सहायता की, उनको भी यही उम्मीद होगी की जब आप उनकी सहायता कर सकते हो तो अपना मार्ग खुद प्रसस्त कर लोगे।
अब उनको अपने पिछड़ेपन का दोषी बताने के बजाये जो समय ईश्वर उसका सदुपयोग करके करके आगे बड़ो, क्युकी उनके दोषी मान समय आपको ज्यादा नहीं मिलेगा, आत्मिक शांति मिल सकती है, लेकिन समाधान नहीं, वल्कि उनको उनका दोष बताने में भी बहुत समय नष्ट हो जायेगा, अब जो बचा समय है उसमे उठ करो, यही फर्क होता है हृदय की सोच दिमाग की सोच में।
जैसे हो सकता है आप जिनके भी साथ हो उनको अपना समझते हो और जो आपके साथ है वो न समझते हो तो क्या आप गलत हो ? नहीं क्युकी सभी का अपना स्वभाव होता है जैसे जल का स्वभाव होता है, तेल का स्वभाव होता तेजाब का स्वभाव होता है ऐसे ही हर मनुष्य का अपना स्वभाव होता है।
अब मान लो आप अपने स्वभाव के कारण लोगो से धोखा खा जाते है, बाकि लोग आपकी सहायता से आगे निकल जाते है और आप सबकी सहायता करके भी अकेले और पिछड़े रह जाते हो, तो इसके लिए कौन दोषी है? आप जो सहायता करते रहे सबको अपना समझते रहे या वो जो आपसे सहायता लेकर आगे बढ़ गए ?
यहाँ पर कोई भी दोषी नहीं है, आप इसलिए नहीं क्युकी आप सही थे, वो इसलिए नहीं क्युकी उन्नति सबको करनी होती है, उसको दोष देना सही भी नहीं है, क्युकी अगर वो सामर्थ्यवान होते तो आपकी सहायता क्यों लेते, और आप समर्थवान थे इसलिए सहायता की, उनको भी यही उम्मीद होगी की जब आप उनकी सहायता कर सकते हो तो अपना मार्ग खुद प्रसस्त कर लोगे।
अब उनको अपने पिछड़ेपन का दोषी बताने के बजाये जो समय ईश्वर उसका सदुपयोग करके करके आगे बड़ो, क्युकी उनके दोषी मान समय आपको ज्यादा नहीं मिलेगा, आत्मिक शांति मिल सकती है, लेकिन समाधान नहीं, वल्कि उनको उनका दोष बताने में भी बहुत समय नष्ट हो जायेगा, अब जो बचा समय है उसमे उठ करो, यही फर्क होता है हृदय की सोच दिमाग की सोच में।
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