Why India is still a developing country in hindi
विकसित देश और विकासशील देश को मापने का सबसे बड़ा पैमाना होता है उसके नागरिको का जीवन स्तर, उनकी आय यानि की प्रति व्यक्ति आय, युवा पीढ़ी जो की कामकाजी है उसका मानसिक स्तर की वह कैसे आगे बढ़ने की सोचता है, लेकिन आज़ादी के ७० से ज्यादा सालो के बाद भी भारत एक विकासील देश है क्यों? जबकि यहाँ पर दुनिआ का सबसे ज्यादा संसाधन है, मानव शक्ति है फिर भी हमारा देश विकसित नहीं है , क्यों?
हो सकता है आपके पास इसके कई उत्तर हो परन्तु मेरे पास एक ही कारण है और दोनों ही मनोवैज्ञानिक अन्वेषण पर आधारित है।
हम जीवन में कब सफल होते है ? उत्तर है जब हम सफल होने के लिए मेहनत करते है, और साथ ही हम पूर्ण रूप से आश्वस्त हो की सिर्फ मेहनत करने से सफलता मिलती है, लेकिन हम में लोगो ने देखा की उनके साथ पढ़ने वाले लोग जो उनसे कम मेहनत करते थे सरकारी नौकरियों में लग गए जब उन्होंने अपना ये अनुभव अन्य लोगो को बताया तो उनका भी विस्वास मेहनत से हट कर उस दूसरे कारण पर गया जिसके कारण वो कम पढ़ने वाले लोग उनसे पहले सफल हो गए और वो था जाती के आधार पर आरक्षण।
है जी, हां जी, क्युकी इस एक चीज ने पिछले कई सालो में अन्य जातियों के युवाओ को हिंसक प्रदर्शन करके खुद को पिछड़ा शाबित करके आरक्षण लेने के लिए प्रेरित किया है और कई जातिओ को मिला भी है, यानि की देश के युवा मेहनत के बजाय इस अन्य तरीके को सफलता का रहस्य मान रहे है जिसका आधार है खुद को पिछड़ा शोषित और असभ्य साबित करना, आज भी और कल भी समाज सम्मान सरकारी कर्मचारी को ही मिलेगा क्युकी वही समाज के अन्य प्राणिओ के लिए निति निर्धारक है।
मतलब इस आरक्षण में ३ आरक्षण है पहला आपको कम अंक आने पर भी सफल मन जायेगा, दूसरा आपको आयु में एक बड़ी छूट मिलेगी और तीसरी आपको अन्य लोगो की तरह फीस नहीं देनी होगी ऊपर से आने जाने का किराया भी मिलेगा, ये तीन तरह की छूट उन लोगो को चुभेगी जिनको अंक कम आने के बाद सफल नहीं माना गया, आयु सीमा निकलने के बाद अवसर खत्म हो गए या फॉर्म तो भर दिया जैसे तैसे लेकिन वहाँ जाकर पेपर देने का किराया नहीं है, क्युकी हर व्यक्ति जो ऊँची जाती का है उसके पास कुबेर का खजाना नहीं है, वह भी गरीब हो सकता है, उसके पास भी पढ़ाई जैसे संसाधनों का आभाव हो सकता है, लेकिन वोट की राजीनीति ये मान नहीं रही है, इस कारण एक तरफ तो अयोग्य लोग सरकार में घुस रहे है और योग्य लोग कोई अन्य विकल्प खोज कर अपनी जीविका चला रहे है साथ ही कही न कही सरकार से खुन्नस भी खाये हुये है और समय समय पर अपना गुस्सा भी दिखाते होंगे जिससे सरकार को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक या संसाधनों की क्षति जरूर होती होगी।
सार ये है, एक वर्ग को कम मेहनत करके सफलता प्राप्त करते देख दूसरे वर्ग के मेहनती लोग भी कम मेहनत में सफलता पाने की सोचते है, जिसकारण मेहनती लोग सरकार में नहीं जा रहे है, हां आरक्षण में आयु की छूट और नंबरों की छूट हटा दी जाए तो इसके परिणाम अच्छे आने की उम्मीद है, क्युकी सबको समान मेहनत करनी होगी और तब सब एक जैसे ही विद्वान लोग सरकार में होंगे
हो सकता है आपके पास इसके कई उत्तर हो परन्तु मेरे पास एक ही कारण है और दोनों ही मनोवैज्ञानिक अन्वेषण पर आधारित है।
हम जीवन में कब सफल होते है ? उत्तर है जब हम सफल होने के लिए मेहनत करते है, और साथ ही हम पूर्ण रूप से आश्वस्त हो की सिर्फ मेहनत करने से सफलता मिलती है, लेकिन हम में लोगो ने देखा की उनके साथ पढ़ने वाले लोग जो उनसे कम मेहनत करते थे सरकारी नौकरियों में लग गए जब उन्होंने अपना ये अनुभव अन्य लोगो को बताया तो उनका भी विस्वास मेहनत से हट कर उस दूसरे कारण पर गया जिसके कारण वो कम पढ़ने वाले लोग उनसे पहले सफल हो गए और वो था जाती के आधार पर आरक्षण।
प्रगतिशीलता के नाम पर कैसे उल्लू सीधा किया जा रहा है
है जी, हां जी, क्युकी इस एक चीज ने पिछले कई सालो में अन्य जातियों के युवाओ को हिंसक प्रदर्शन करके खुद को पिछड़ा शाबित करके आरक्षण लेने के लिए प्रेरित किया है और कई जातिओ को मिला भी है, यानि की देश के युवा मेहनत के बजाय इस अन्य तरीके को सफलता का रहस्य मान रहे है जिसका आधार है खुद को पिछड़ा शोषित और असभ्य साबित करना, आज भी और कल भी समाज सम्मान सरकारी कर्मचारी को ही मिलेगा क्युकी वही समाज के अन्य प्राणिओ के लिए निति निर्धारक है।
मतलब इस आरक्षण में ३ आरक्षण है पहला आपको कम अंक आने पर भी सफल मन जायेगा, दूसरा आपको आयु में एक बड़ी छूट मिलेगी और तीसरी आपको अन्य लोगो की तरह फीस नहीं देनी होगी ऊपर से आने जाने का किराया भी मिलेगा, ये तीन तरह की छूट उन लोगो को चुभेगी जिनको अंक कम आने के बाद सफल नहीं माना गया, आयु सीमा निकलने के बाद अवसर खत्म हो गए या फॉर्म तो भर दिया जैसे तैसे लेकिन वहाँ जाकर पेपर देने का किराया नहीं है, क्युकी हर व्यक्ति जो ऊँची जाती का है उसके पास कुबेर का खजाना नहीं है, वह भी गरीब हो सकता है, उसके पास भी पढ़ाई जैसे संसाधनों का आभाव हो सकता है, लेकिन वोट की राजीनीति ये मान नहीं रही है, इस कारण एक तरफ तो अयोग्य लोग सरकार में घुस रहे है और योग्य लोग कोई अन्य विकल्प खोज कर अपनी जीविका चला रहे है साथ ही कही न कही सरकार से खुन्नस भी खाये हुये है और समय समय पर अपना गुस्सा भी दिखाते होंगे जिससे सरकार को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक या संसाधनों की क्षति जरूर होती होगी।
क्या आरक्छन भेदभाव मिटा सकता है
सार ये है, एक वर्ग को कम मेहनत करके सफलता प्राप्त करते देख दूसरे वर्ग के मेहनती लोग भी कम मेहनत में सफलता पाने की सोचते है, जिसकारण मेहनती लोग सरकार में नहीं जा रहे है, हां आरक्षण में आयु की छूट और नंबरों की छूट हटा दी जाए तो इसके परिणाम अच्छे आने की उम्मीद है, क्युकी सबको समान मेहनत करनी होगी और तब सब एक जैसे ही विद्वान लोग सरकार में होंगे
Comments
ye jati hi thi jisne poore bharat ko 1000 salo se gulam banaye rakha
aur rahi baat general category ki to goverment ki kaye reports ye kyu bolti hai kii sabse jyada naukri aur ucche designation keval genral walo ko hi naseeb kyu hote hai
OBC,SC,ST wala bhi to apne pet par lat markar din rat mehnat karta hai
Sukanya Samriddhi Yojana in SBI