Official Blog of Ambrish Shrivastava: आरएसएस का भारत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

Monday, April 16, 2018

आरएसएस का भारत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

एक प्रश्न पूछा कि किसी ऐतिहासिक दस्तावेज का नाम बताऊँ प्रमाणस्वरूप, कि आरएसएस ने आजादी की लड़ाई में भाग लिया था...किसी के प्रश्न के जवाब में देना है. मैंने पूछा, आप इसका प्रमाण ढूंढ ही क्यों रहे हैं? आप मुझे इसी बात का प्रमाण ला दीजिये कि कांग्रेस ने आजादी की लड़ाई में भाग लिया था...

आजादी की लड़ाई में क्या हुआ था? किस बात को आप आजादी की लड़ाई कहते हैं?
नेहरू के पाले हुए इतिहासकारों ने हमारा इतिहास लिखा ही कुछ इस तरह है कि कांग्रेस ने जो भी किया उसी को आजादी को लड़ाई मान लिया गया. गांधीजी ने बकरी का दूध दुहा वह भी आजादी की लड़ाई थी. और नेहरू ने पद भी छोड़ी तो अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए छोड़ी.

प्रगतिशीलता के नाम पर कैसे उल्लू सीधा किया जा रहा है

कांग्रेस ने आजादी की लड़ाई कैसे लड़ी? पहली बार कांग्रेस ने इरादा किया कि अंग्रेजों से आज़ादी माँगनी है, तो वह साल था 1930. उसके पहले तो काँग्रेस ने आज़ादी मांगी ही नहीं. उन्होंने सत्ता में हिस्सेदारी ही माँगी थी. तो कांग्रेस की लड़ाई आज़ादी की लड़ाई कैसे हो गई? 1930 के पहले तक के आंदोलनों को आज़ादी की लड़ाई कैसे माँग लें? बल्कि 1920 के असहयोग आंदोलन में जैसे ही यह खतरा खड़ा होने लगा कि अंग्रेज़ी शासन कहीं खत्म ना हो जाये, गांधीजी ने आनन फानन में इस आंदोलन को बन्द किया.

1930 में आज़ादी का लक्ष्य घोषित करने के बाद भी कांग्रेस ने ऐसा कौन सा काम किया जिससे अंग्रेजों को देश छोड़ने की कोई मजबूरी आई हो? बल्कि जिस किसी ने भी अंग्रेजों से लड़ाई की, कांग्रेस ने उसकी पीठ में छुरा ही घोंपा. चाहे चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह हों, या सुभाषचंद्र बोस.

ये भारत वो भारत नहीं है

1942 में एक बार कांग्रेस ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नाम भर लिया था...8 अगस्त को इस आंदोलन की घोषणा हुई, 9 अगस्त की सुबह सुबह गाँधी, नेहरू और सारे कांग्रेसी नेता जेल में थे और बाकी विश्वयुद्ध तक जेल में ही रहे. तो उन्होंने ऐसा क्या कर लिया कि अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया? कांग्रेस ने अपने पूरे इतिहास में ऐसा कौन सा आंदोलन किया जिसका कोई भी परिणाम निकला हो? उसे हम आज़ादी की लड़ाई कैसे मान लें?

जातिगत आरक्षण नक्सलवाद से भी भयानक है

हमारी सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि जैसे ही कोई हमपर कोई आरोप लगाता है, हम सफाई देने लगते हैं. कोई प्रमाण माँगता है, हम उसे देने के लिए प्रमाण ढूंढने लगते हैं. भाई, हम आपको कोई भी प्रमाण क्यों दें? अगर गाँधीजी के चरखा चलाने से आज़ादी मिलती है तो संघ के लाठी चलाने से कैसे नहीं मिलती? जिस समय देश पराधीन हो उस समय बच्चों में, युवाओं में जन्मभूमि के प्रति श्रद्धा और राष्ट्रीयता का भाव भरना आज़ादी की लड़ाई में कैसे ना गिना जाए? इसपर सवाल उठाया किसने, और उसका जवाब और प्रमाण हम क्यों दें? इसका आप कोई भी उत्तर देंगे, उससे सिर्फ इस प्रश्न की प्रामाणिकता ही स्थापित होगी, और कुछ नहीं.

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