Significance of Mother's day in India Hindi

मेरे लिए मेरा भारत सदैव आर्यवृत ही रहा है, और वर्तमान में हिंदुस्तान, अगर मै अपने दृटिकोण से देखता हूँ तो हम किसी भी जाती या कुल में जन्मे हो लेकिन अगर भारत के अंदर है तो अपने से बड़े बुजुर्गो का सम्मान, माता पिता का चरण वंदन, गुरुजनो का अभिनंदन, और अपने मित्रो एवं प्रिय जनो का स्मरण हमारे लिए नित्य क्रिया की तरह ही है, ऐसे विलक्षण लक्षणों वाले देश में
[१] मित्रता दिवस
[२] प्रियतम दिवस
[३] शिक्षक दिवस
[४] मातृ दिवस
[५] पितृ दिवस

और भी न जाने कितने दिवस है, एक क्षण रुक कर विचार करना चाहिए की हमे इन दिवस की जरुरत क्यों पड़ी, क्या कारण है, इसके उत्तर को हो सकता है मै सही से न समझा सकू इसलिए जन्म दिवस का उदाहरण लेकर समझाता हूँ।

आजकल तो सभी लोग जन्म दिन का उत्सव मनाते है, लेकिन प्राचीन समय में सिर्फ कुलीन लोग या बहुत ही धनाढ्य लोग ही मनाते थे, उसका कारण ये था की ये लोग जीवन की आपाधापी, जिम्मेदारिओं, धनार्जन और अन्य कार्यो में इतने व्यस्त होते थे की ये लोग भूल जाते थे की हमे मरना भी है, है जी जब हम लोग सुखी जीवन जी रहे होते है तो मन में विचार आता है की यही सास्वत सत्य है, और इन सबका भोग हम सदैव करते रहेंगे, हम ऐसे ही जवान बने रहेंगे और हम कभी नहीं मरेंगे।

हम कभी नहीं मरेंगे ? ऐसा विचार मन में घर कर जाता था, लेकिन समय आने पर मरना तो पड़ेगा ही और उस समय याद आता था की पुरे जीवन सिर्फ कमाया ही, न दान किया, न पुण्य किया, न किसी को भोजन कराया, न कुछ भले काम किये, इसलिए शिक्षिक अथवा गुरुजन उनका जन्मदिन मनाकर उनको मृत्यु के प्रति आगाह करते थे, ये आगाह करने का सबसे हर्षपूर्ण तरीका था। 

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