आर्यावर्त भारत इंडिया हिंदुस्तान

भारत में एक ऐसे लोगों का वर्ग है जो वास्तव में मेहनत करके आगे बढ़ने वालो को उनके कर्म और जाती का ताना देते रहते है, लेकिन इस वर्ग में सभी लोग ऊँची जाती के है यह कहना गलत है, लेकिन ये वर्ग सबसे ज्यादा संगठित है ये सही है, और इसी वर्ग के लोग आज उसको चाय वाला कहकर उसका उपहास करते है जिसका हम जैसे ऊँची जाती के लोग राष्ट्र का गौरव मानकर सम्मान करते है, जातिवाद और वर्ण वाद कहा नहीं है, आज एक व्यक्ति जैसे ही अच्छे पद पर पहुँचता है अपनी ही जाती के उनलोगो सम्बन्ध तोड़ देता है जिनके नाम पर उसने सभी वर्गों सा सहानुभूति बटोरी थी, और यहाँ कर की शादी भी अपने उन जाती के लोग में नहीं करता है जिनके साथ कभी उसका रोज का उठना बैठना था.

इनमे अहम नाम है अम्बेडकर जी का जो एक तरफ तो दलितों के मसीहा थे दूसरी तरफ स्वयं शादी ब्राह्मण की बेटी से की (सोचिये उस समय एक ब्राह्मण ने अपनी बेटी उनके हाथ में दे दी थी जिस समय के ऊँची जाती के लोगो पर आरोप लगते है की ब्राह्मण लोग दलितों के छाया का भी स्पर्श होने पर मारते थे, क्या ये सच हो सकता है )
दूसरा नाम हम राम विलास पासवान और उनके बेटों का लेना चाहेंगे जिन्होंने स्वयं शादी ब्राह्मण से की और बेटों का विवाह भी ब्राह्मण कन्या से करवाया।
अब अगला नंबर आता है देश के पूर्व राष्ट्रपति नारायणन और लोक सभा के अध्यक्ष श्री बल योगी जी का, मेरा विस्वास है की इनके विवाह भी सजातीय नहीं हुए होंगे।

अब सबसे ज्वलंत नाम आते है जिनके आईएएस बनते ही सोशल मीडिया पर उनके जाती भाई और बहनो ने मनुवादीओ का टाइटल देकर सभी ऊँची जाती के लोगो को बुरा बुरा कहना शुरू कर दिया था, ये है टीना डाबी और उन्होंने भी किसी सजातीय पुरुष को जीवन साथी नहीं बनाया वल्कि अपने से २ साल सीनियर आईएएस अधिकारी जो की धर्म से मुस्लिम थे, अब सोचिये की जैसे ही लोग सफल होते है उनका एक अलग वर्ग बन जाता है।

संविधानिक समानता और सामाजिक समानता 
अब सविधान बात करते है अगर भारत का संविधान कहता है की सब समान है तो फिर जाती के नाम पर आरक्षण क्यों ? मान लिया की ये वर्ग कमजोर था इसलिए १० साल के लिया था, तो उस कमजोरी का आधार क्या था, और क्या आधार था की ये कमजोरी बाकि के वर्गों में नहीं है, आज देश को स्वतंत्र हुए ७० सालों से ज्यादा हो गए है लेकिन एक भी मामला नहीं आया जिसमे किसी  ने कहा हो की अब में पिछड़ा या दलित नहीं सामान्य हो गया हूँ, वल्कि आज कई ऐसी जातिया आरक्षण मांग रही है जो आजादी के समय अगड़ी मानी जाती थी, इसका मतलब ये हुआ आरक्षण के सकारत्मक की जगह नकारात्मक परिणाम सामने आ रहे है, न जाने कितने आईएएस, आईपीएस और अन्य सरकारी कर्मचारी अपने साथी सवर्णो पर आरोप लगाते है की इन्होने हमे जातिसूचक शब्द कहे और जब ईमानदारी से जाँच होती है सामने आता है की काम न करने पर फटकार की खुन्नस निकालने के कारण ऐसा किया.

कई बार कुछ लोग ये भी शिकायत करते है की ऊँची जाती के लोग हमे पास नहीं बिठाते, हमारे साथ सही से बात नहीं करते है, तो ये तो आपसी रिश्ते और व्यवहार पर निर्भर करता है, कई लोग अपने रिश्ते में लोगो को भी अपने पास बैठाना नहीं चाहते है, और ये समस्या तो सबमे है, दलित वर्ग के अंदर भी कई वर्ग है जो एकदूसरे के साथ रोटी बेटी का संबंध नहीं रखते तो इसके लिए सिर्फ सवर्णो  को दोष क्यों ?

और सबसे बड़ी बात इसका क्या मात्रक है की जिनको सामान्य में वर्ग में पटक दिया गया है वो सभी साक्षर, संपन्न और शक्तिमान है, या वो सामाजिक रूप से उपेक्षित नहीं है, जिस आधार पर आरक्षण की वकालत करते है वो तो सबमे है,

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