भारत में CAA और NRC विरोध वास्तविक कारण
कुछ दिन पहले एक इंग्लिश मूवी देख रहा था, जिसमें एक डायलॉग था, ' हिटलर जब गर्भ में था उसकी माँ अबॉर्शन के लिए डॉक्टर के पास गयी थी, पर अंतिम क्षणों में उसने अपने विचार बदल दिए थे।' और जैसा सब जानते है, कालांतर में हिटलर के कारण दुनिया के अढ़ाई करोड़ सैनिक और इससे अधिक नागरिक मारे गए थे। यूरोप के सभी बड़े नगर ध्वस्त हो गए थे, और उस समय के सभी देशों की अर्थव्यवस्था इतनी जर्जर हो गयी कि उससे पूरी दुनिया को उबरने में बीस साल लगे थे।
समस्याओं को भूर्ण अवस्था में पहचानना सबसे बड़ी कला होती है। दुनिया के दो देश जापान और इजराइल इस तकनीक के मास्टर है। आज देश को जिस समस्या ने बंधक बनाकर रख दिया है, कभी यह समस्या भूर्णवस्था में रही होगी। पूर्व की केंद्र और राज्य सरकारों ने इस पर कभी ध्यान नहीं दिया, अपितु इन्हें पालपोसकर बड़ा करके देश पर थोपा। यदि तीस, चालीस साल पहले के अखबारों को खंगाला जाए तो सब प्रश्नों के उत्तर मिल सकते है। असम, बंगाल में लम्बे समय तक कांग्रेस और कम्युनिस्टों का शासन रहा है।
बंगलादेश से सीमा समझौता न होने के कारण सीमाएँ खुली हुई थी जिनसे हर रात हजार से अधिक बंगलादेशी भारत में घुस जाते थे। उन दिनों अखबारों में ऐसे समाचार छपते थे कि भ्रष्ट बी एस एफ वाले एक घसपैठिए को भारत में घुसाने का 100 रुपया लेते है, जिनके पास पैसे न हो वे दूसरे रास्तों से भारत में घुसते थे। भारत आकर उनके राशनकार्ड और वोटर आई कार्ड बनाने वालो के अलग सिंडिकेट थे। उस समय के नेताओं और कर्मचारियों ने खूब पैसा बनाया।
इसका परिणाम यह हुआ, कि आज अपुष्ट सूत्रों के अनुसार पिछले चालीेस सालों में तीन करोड़ से अधिक बंगलादेशी असम, बंगाल, बिहार, उड़ीसा के अलावा पूरे देश में फैल चुके है। इस संख्या ने असम, बंगाल की कई विधानसभा और लोक सभा सीटों को सीधे प्रभावित किया है। इन घुसपैठियों में 85 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम है। यह इतनी बड़ी संख्या है कि NRC और CAA लागू होने से यदि इन्हें वापास जाना पड़ा तो भारत के मुस्लिमों की जनसंख्या कुछ प्रतिशत कम हो जाएगा।
अवैध तरीकों से देश में घुसे इन घुसपैठियों में पाकिस्तान, अफगानिस्तान से आये घुसपैठिये भी है, पर उनकी संख्या इस विशाल संख्या के सामने नगण्य है। इन कट्टर मुस्लिम देशों के रिकार्ड को देखते हुए बी जे पी ने CAA के अंतर्गत भारत में पिछले 6 साल से रह रहे हिदुओं को भारत की नागरिकता देने की बात कही है, पर मुस्लिमों को नहीं। बस यही इस सारे बवाल की जड़ है। जागृत विपक्ष और भृमित मुस्लिमों को इस पॉइंट में दम दिख रहा है, जिसके भरोसे देशभर में हजारों उग्र प्रदर्शन और शाहीन बाग का मंच सजा हुआ है।
जैसे शरीर में एक गम्भीर रोग लगने से दूसरे दबे रोग उभर आते है, और फिर उनका इलाज भी आवश्यक हो जाता है। इस प्रदर्शन का पटाक्षेप कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है। इस बार सरकार ने इस धरने की जड़ तक पहुँचने के लिए शत्रु को थकाकर मारने की नीति अपनाई है, जिसका परिणाम सामने आने लगा है। कल के समाचारों से साफ है कि शाहीन बाग और देशभर के हो रहे उग्र-प्रदर्शन PFI, कांग्रेस, आप, वामपंथियों और कुछ मीडिया द्वारा प्रायोजित है। ये प्रदर्शन देश के सामान्य मुस्लिमों की भावना से स्वतःस्फूर्त नहीं है। इन प्रदर्शनों के मर्म में धारा 370, तीन तलाक और राम मंदिर जैसी दुखती रग के अलावा विपक्ष की चालीस साल से मुस्लिम जनसंख्या को पोषित करने जैसी नीति की टीस छिपी है।
अब मोदी और बी जे पी विरोध करते-करते यें लोग देश द्रोहियों का साथ देने लगे है, सरजील प्रसंग से तो यही उजागर हो रहा है। देश की संप्रभुता के प्रति इतना दुस्साहस मूर्खता ही कहा जाएगा। जिस 'चिकिन नेक' को तोड़कर सरजील पूर्वी राज्यों को अलग करने की सोच रहा था, उसी मंशा के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने डोकलाम पर चीन जैसी विराट शक्ति को 73 दिन के स्टैंड ऑफ के बाद झुका दिया था। डोकलाम, 22 किलोमीटर चौड़े इस सिलिकुड़ी कॉरिडोर(चिकिन नेक)से अधिक दूर नहीं है। इतनी सुंदर नीति इस इमाम को कौन समझा रहा था यह तो सुरक्षा एजेंसियाँ उससे पकड़े जाने पर अवश्य पूछेंगी।
लेकिन मोदी विरोधी इतने पर रुके नहीं है। कल यूरोपियन यूनियन ने CAA के प्रति हो रहे विरोध के संदर्भ में मोदी सरकार को तलब किया है। कहने को तो यह पाकिस्तान की आपत्ति के कारण हुआ है पर इसके पीछे कई मोदी विरोधी विदेशी शक्तियाँ है। यह काम इतनी तेजी से किया जा रहा है कि 29 तारीख को यह EU की टेबल पर लाया जाएगा और अगले दिन उसका परिणाम भी आ सकता है। CAA मसले को यूरोपियन यूनियन द्वारा संज्ञान में लेने के समाचार से मोदी विरोधियों की बांछे खिल गयी है।
जब यह मामला देश से बाहर चला ही गया है तो इसके बारे में कुछ बातें और कर लेते है। जहाँ तक मेरी सोच है इससे मोदी विरोधी ताकतों को कुछ नही मिलने वाला। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार, भारत के प्रसिद्ध वकील, हरीश साल्वे पहले ही कह चुके है कि यह एक बहुमत में चुनी हुई सरकार का निर्णय है, इसे कोई चैलेंज नही कर सकता। यदि मानवाधिकारों की आड़ लेकर कोई चालाकी की गयी तो मोदी सरकार ने उसका उत्तर भी खोज रखा होगा।
यदि यरोपियन यूनियन में सफलता न मिलने से पाकिस्तान और मोदी विरोधी इस मसले को यू एन में ले जाते है तो वहाँ भी उन्हें मुँह की खानी पड़ेगी। चीन, इस मामले में भारत का दुश्मन होते हुए भी कह चुका है कि यह भारत का आंतरिक मामला है। चीन ने खुद ही 10 लाख उइगर मुसलमानों को डिटेंशन कैम्पों में बंद कर रखा है। ऊपर से रात में उनकी पत्नियों के पास उन्हें समझाने के लिए चीनी सोते है। इस कुकृत्य के अलावा पाकिस्तान के समाचारों के अनुसार ही पाकिस्तान की 3500 मुस्लिम लड़कियाँ चीन के नागरिक शादी के बहाने भगा ले जा चुके है। कुछ साल पहले DW जर्मन समाचार एजेंसी की एक डॉक्यूमेंट्री देखी थी, जिसमें दिखाया था कि मात्र 80 लाख जनसंख्या वाले ताजिकिस्तान में काम कर रहे चीनियों ने वहाँ की लड़कियों से 50हजार अवैध बच्चे पैदा कर दिए थे। उसके पड़ोसी किर्गिजस्तान का हाल भी वैसा ही है। उन देशों में चीनियों के प्रति गहरा आक्रोश है। सच तो यह है आज चीन मुस्लिमों पर सबसे अधिक अत्याचार कर रहा है। यह बात तुर्की और सभी अरब देश जानते है पर किसी के मुँह से 'ची' की आवाज नही निकलती।
जहाँ तक रशिया की बात है, वह चेचेन्या को रूस से अलग करने का मुस्लिम दंश झेल चुका है। सितम्बर, 2004 बेसलान का किस्सा तो याद होगा, जब दक्षिणी रूस के बेसलान कस्बे के एक स्कूल के 1100 बच्चों और स्टाफ को मुस्लिम आतंकवादियों ने बंधक बना लिया था। इस आकस्मिक संकट पर रूस ने बहुत कठोर निर्णय लिया था। उसने उनकी एक भी मांग नही मानी, और अपने कमांडो भेजकर सभी आतंकियों को मार दिया था। इस ऑपरेशन में 331 लोग मारे गए थे जिसमें 134 बच्चे भी थे। कहते है कि इसके बाद रूस की सरकार ने आतंकवादियों के सभी रिश्तेदारों को मार दिया था। इससे आतंकवादियों की सोच पर गहरा असर पड़ा। उसके बाद दुनिया के किसी कोने से आतंकवादियों द्वारा किसी रूसी के अपहरण की खबर नही आई।
जहाँ तक अमेरिका की बात है उसके लिए यह मसला कोई महत्व नहीं रखता। इस समय उसका लक्ष्य चीन को रोकना है, अतः इस छोटी-सी बात के लिए वह भारत को नाराज नही करेगा। वैसे भी फरवरी में ट्रम्प साहब भारत यात्रा पर आने वाले है। वैसे कल तालिबान ने गजनी में अमेरिका का एक विमान मार गिराया है, जिसमें अमेरिकी खुफिया विभाग के कुछ अफसर सवार थे। यदि यह सच में तालिबान ने गिराया है तो उसे इस हिमाकत करने वाले तक पहुँचने के लिए अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत पड़ेगी। तब पाकिस्तान इस मसले पर सौदेबाजी कर सकता है। हो सकता है निकट भविष्य में अमेरिका की ओर से भारत सरकार को कोई सुझाव जैसा बयान सुनने को मिल जाए।
प्रधान मंत्री मोदी इस समय विपक्ष, वामपंथियों, जिहादी मानसिकता वाले मुस्लिमों, भारत तोड़ो गैंग, चीन, पाकिस्तान की आँखों की किरकिरी बने हुए है। इन सबका हित तभी सध रहा था जब भारत रुग्ण और दुर्बल था, और यें सभी उसे इसी अवस्था में रखना चाह रहे थे। 2014 में मोदी सरकार ने जब पदभार सम्भाला देश की आंतरिक स्थिति भयावह थी। मंत्रालयों में लॉ एंड आर्डर का हाल बहुत बुरा था। कॉरपोरेट द्वारा मंत्रालयों से फ़ाइलें गायब करा दी जाती थी। कोयला घोटाले में फाइलों का गायब होना तो सभी को याद होगा। सबसे बुरा हाल सेना का था। तीस साल से बहुत कम आधुनिक हथियार सेना के लिए खरीदे गए थे। खरीद के लिए कमीशन की सेटिंग में ही सालों जाते थे। उस समय यदि कोई युद्ध हो जाता तो सेना के पास एक सप्ताह तक लड़ने का गोला-बारूद नही था। आज ऐसी स्थिति नही है।
मोदी सरकार ने जल, थल, वायु सेना का आधुनिकीकरण करने के लिए 250 बिलियन डॉलर के हथियारों और सुरक्षा उपकरणों की खरीदने का मन बना रखा है। जिसमें अधिकतर हथियार 'मेक इन इंडिया' के झंडे तले बन रहे है और कुछ बनने है। कार्य में तेजी लाने के लिए सरकार ने इस बार देशी-विदेशी कम्पनियों को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के साथ आमंत्रित किया है। इसका प्रभाव यह हुआ कुछ सालों में ही आधुनिक हथियार और सुरक्षा उपकरण सेना के जखीरे में पहुँचने लगे है। सरकार का लक्ष्य 2025 तक सेना को आधुनिक हथियारों से सुसज्जित करने का है। बुजुर्गों ने कहा है यदि ठोकर में ताकत हो तो आपके हाथ जोड़ने में भी असर आ जाता है। यूँ तो सारा दिन भिखारी भी हाथ जोड़ता फिरता है पर उसे कोई नही पूछता। कुछ लोग NDA सरकार को आर्थिक मोर्चे पर को घसीट रहे है और बेरोजगारी को मुद्दा बना रहे है। देखा जाए तो किसी भी देश की सरकार सबको रोजगार नही दे सकती।
अधिकतर नागरिक अपनी जीविका स्वयं उत्पन्न करते है। यह मुद्दा हमेशा विपक्ष का रहा है। जब बी जे पी सत्ता में नही थी तो इसके नेता भी देश में बेरोजगारी का बहुत शोर मचाते थे। सच तो यह है, जब तक देश की जनसंख्या कम नही होगी और लोग स्वरोजगार की ओर आकर्षित नहीं होंगे तब तक यह समस्या बनी रहेगी।
फिलहाल तो सरकार का ध्यान देश के विकास के रास्ते में जमे बड़े-बड़े पत्थर उखाड़ने में लगा है। धारा 370 उसमें एक थी। एक एक्सपर्ट के अनुसार, धारा 370 हटने से भारत सरकार को हर साल 15 बिलियन डॉलर की बचत होने वाली है। यदि कोई आतंकवादी सेना की चौकी पर हैंडग्रेनेड फेंककर भाग जाए तो उसकी खोज के लिए सेना को मोबलाइज करने में करोड़ो रूपये खर्च आ जाता है। इससे आतंक के आकाओं को बहुत मजा आता था। क्या किसी ने हिसाब लगाया है कि सरजील को पकड़ने के लिए दिल्ली और यू पी पुलिस की 16 टीमें छापे मारती घूम रही है, सरकार का कितना खर्च आ रहा होगा? यह बोझ सरकारी खजाने पर ही आएगा।
जनसंख्या नियंत्रण का बिल भी ऐसा ही है जिसकी आने वाले सत्र में लोकसभा और राज्य सभा में आने की संभावना है। यदि यह पास हो गया तो उसका प्रभाव अगले पन्द्रह, बीस वर्ष बाद दिखाई देने लगेगा। उससे बेरोजगारी की समस्या पर तो अंकुश लगेगा ही देशवासियों का शिक्षा और स्वास्थ्य का स्तर भी सुधरेगा। इसी सत्र में समान नागरिक संहिता कानून के आने की भी संभावना है। सरकार बहुत सारे दशकों से चल रही समस्याओं का पहले ही समाधान कर चुकी है। जिनमें बंगला देश सीमा विवाद भी था। कल ही लगभग चालीस साल से चल रही बोडो समस्या का समाधान सरकार ने किया है। पहली बार उत्तर पूर्व के राज्यों की समस्याओं पर केंद्र सरकार ने ध्यान दिया है। उत्तर-पूर्व में चीन के बॉर्डर पर बन रही सामरिक सड़के, ब्रह्मपुत्र नदी के पुल बन जाने से उस अलग-थलग पड़े इलाके जे लोगो के मन में केंद्र सरकार के प्रति विश्वास बढ़ा है।
प्रधानमन्त्री मोदी के विरोधी जानते है, यदि मोदी इसी गति से चलता रहा तो एक दशक में भारत की सारी समस्याएँ निर्मूल कर देगा, और उन्हें भी। इसी लिए सरकार के काम में अवरोध पैदा करने के लिए वे रोज कोई नया इमोशनल नैरेटिव तैयार करके जनता का बेवकूफ बनाते जा रहे है। शाहीनबाग, उसी प्रसंग का हिस्सा है। विपक्षी दलों, वामपंथियो और कुछ पत्रकारों के चक्कर में पड़कर भारतीय मुसलमान अपना बहुत नुकसान कर चुके है। यदि विपक्ष की सोच है कि वह मोदी सरकार को ऐसे प्रदर्शनों से अस्थिर कर सकती है तो अभी उसकी सम्भावना दूर-दूर तक दिखायी नही दे रही है।
समस्याओं को भूर्ण अवस्था में पहचानना सबसे बड़ी कला होती है। दुनिया के दो देश जापान और इजराइल इस तकनीक के मास्टर है। आज देश को जिस समस्या ने बंधक बनाकर रख दिया है, कभी यह समस्या भूर्णवस्था में रही होगी। पूर्व की केंद्र और राज्य सरकारों ने इस पर कभी ध्यान नहीं दिया, अपितु इन्हें पालपोसकर बड़ा करके देश पर थोपा। यदि तीस, चालीस साल पहले के अखबारों को खंगाला जाए तो सब प्रश्नों के उत्तर मिल सकते है। असम, बंगाल में लम्बे समय तक कांग्रेस और कम्युनिस्टों का शासन रहा है।
बंगलादेश से सीमा समझौता न होने के कारण सीमाएँ खुली हुई थी जिनसे हर रात हजार से अधिक बंगलादेशी भारत में घुस जाते थे। उन दिनों अखबारों में ऐसे समाचार छपते थे कि भ्रष्ट बी एस एफ वाले एक घसपैठिए को भारत में घुसाने का 100 रुपया लेते है, जिनके पास पैसे न हो वे दूसरे रास्तों से भारत में घुसते थे। भारत आकर उनके राशनकार्ड और वोटर आई कार्ड बनाने वालो के अलग सिंडिकेट थे। उस समय के नेताओं और कर्मचारियों ने खूब पैसा बनाया।
इसका परिणाम यह हुआ, कि आज अपुष्ट सूत्रों के अनुसार पिछले चालीेस सालों में तीन करोड़ से अधिक बंगलादेशी असम, बंगाल, बिहार, उड़ीसा के अलावा पूरे देश में फैल चुके है। इस संख्या ने असम, बंगाल की कई विधानसभा और लोक सभा सीटों को सीधे प्रभावित किया है। इन घुसपैठियों में 85 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम है। यह इतनी बड़ी संख्या है कि NRC और CAA लागू होने से यदि इन्हें वापास जाना पड़ा तो भारत के मुस्लिमों की जनसंख्या कुछ प्रतिशत कम हो जाएगा।
अवैध तरीकों से देश में घुसे इन घुसपैठियों में पाकिस्तान, अफगानिस्तान से आये घुसपैठिये भी है, पर उनकी संख्या इस विशाल संख्या के सामने नगण्य है। इन कट्टर मुस्लिम देशों के रिकार्ड को देखते हुए बी जे पी ने CAA के अंतर्गत भारत में पिछले 6 साल से रह रहे हिदुओं को भारत की नागरिकता देने की बात कही है, पर मुस्लिमों को नहीं। बस यही इस सारे बवाल की जड़ है। जागृत विपक्ष और भृमित मुस्लिमों को इस पॉइंट में दम दिख रहा है, जिसके भरोसे देशभर में हजारों उग्र प्रदर्शन और शाहीन बाग का मंच सजा हुआ है।
जैसे शरीर में एक गम्भीर रोग लगने से दूसरे दबे रोग उभर आते है, और फिर उनका इलाज भी आवश्यक हो जाता है। इस प्रदर्शन का पटाक्षेप कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है। इस बार सरकार ने इस धरने की जड़ तक पहुँचने के लिए शत्रु को थकाकर मारने की नीति अपनाई है, जिसका परिणाम सामने आने लगा है। कल के समाचारों से साफ है कि शाहीन बाग और देशभर के हो रहे उग्र-प्रदर्शन PFI, कांग्रेस, आप, वामपंथियों और कुछ मीडिया द्वारा प्रायोजित है। ये प्रदर्शन देश के सामान्य मुस्लिमों की भावना से स्वतःस्फूर्त नहीं है। इन प्रदर्शनों के मर्म में धारा 370, तीन तलाक और राम मंदिर जैसी दुखती रग के अलावा विपक्ष की चालीस साल से मुस्लिम जनसंख्या को पोषित करने जैसी नीति की टीस छिपी है।
अब मोदी और बी जे पी विरोध करते-करते यें लोग देश द्रोहियों का साथ देने लगे है, सरजील प्रसंग से तो यही उजागर हो रहा है। देश की संप्रभुता के प्रति इतना दुस्साहस मूर्खता ही कहा जाएगा। जिस 'चिकिन नेक' को तोड़कर सरजील पूर्वी राज्यों को अलग करने की सोच रहा था, उसी मंशा के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने डोकलाम पर चीन जैसी विराट शक्ति को 73 दिन के स्टैंड ऑफ के बाद झुका दिया था। डोकलाम, 22 किलोमीटर चौड़े इस सिलिकुड़ी कॉरिडोर(चिकिन नेक)से अधिक दूर नहीं है। इतनी सुंदर नीति इस इमाम को कौन समझा रहा था यह तो सुरक्षा एजेंसियाँ उससे पकड़े जाने पर अवश्य पूछेंगी।
लेकिन मोदी विरोधी इतने पर रुके नहीं है। कल यूरोपियन यूनियन ने CAA के प्रति हो रहे विरोध के संदर्भ में मोदी सरकार को तलब किया है। कहने को तो यह पाकिस्तान की आपत्ति के कारण हुआ है पर इसके पीछे कई मोदी विरोधी विदेशी शक्तियाँ है। यह काम इतनी तेजी से किया जा रहा है कि 29 तारीख को यह EU की टेबल पर लाया जाएगा और अगले दिन उसका परिणाम भी आ सकता है। CAA मसले को यूरोपियन यूनियन द्वारा संज्ञान में लेने के समाचार से मोदी विरोधियों की बांछे खिल गयी है।
जब यह मामला देश से बाहर चला ही गया है तो इसके बारे में कुछ बातें और कर लेते है। जहाँ तक मेरी सोच है इससे मोदी विरोधी ताकतों को कुछ नही मिलने वाला। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार, भारत के प्रसिद्ध वकील, हरीश साल्वे पहले ही कह चुके है कि यह एक बहुमत में चुनी हुई सरकार का निर्णय है, इसे कोई चैलेंज नही कर सकता। यदि मानवाधिकारों की आड़ लेकर कोई चालाकी की गयी तो मोदी सरकार ने उसका उत्तर भी खोज रखा होगा।
यदि यरोपियन यूनियन में सफलता न मिलने से पाकिस्तान और मोदी विरोधी इस मसले को यू एन में ले जाते है तो वहाँ भी उन्हें मुँह की खानी पड़ेगी। चीन, इस मामले में भारत का दुश्मन होते हुए भी कह चुका है कि यह भारत का आंतरिक मामला है। चीन ने खुद ही 10 लाख उइगर मुसलमानों को डिटेंशन कैम्पों में बंद कर रखा है। ऊपर से रात में उनकी पत्नियों के पास उन्हें समझाने के लिए चीनी सोते है। इस कुकृत्य के अलावा पाकिस्तान के समाचारों के अनुसार ही पाकिस्तान की 3500 मुस्लिम लड़कियाँ चीन के नागरिक शादी के बहाने भगा ले जा चुके है। कुछ साल पहले DW जर्मन समाचार एजेंसी की एक डॉक्यूमेंट्री देखी थी, जिसमें दिखाया था कि मात्र 80 लाख जनसंख्या वाले ताजिकिस्तान में काम कर रहे चीनियों ने वहाँ की लड़कियों से 50हजार अवैध बच्चे पैदा कर दिए थे। उसके पड़ोसी किर्गिजस्तान का हाल भी वैसा ही है। उन देशों में चीनियों के प्रति गहरा आक्रोश है। सच तो यह है आज चीन मुस्लिमों पर सबसे अधिक अत्याचार कर रहा है। यह बात तुर्की और सभी अरब देश जानते है पर किसी के मुँह से 'ची' की आवाज नही निकलती।
जहाँ तक रशिया की बात है, वह चेचेन्या को रूस से अलग करने का मुस्लिम दंश झेल चुका है। सितम्बर, 2004 बेसलान का किस्सा तो याद होगा, जब दक्षिणी रूस के बेसलान कस्बे के एक स्कूल के 1100 बच्चों और स्टाफ को मुस्लिम आतंकवादियों ने बंधक बना लिया था। इस आकस्मिक संकट पर रूस ने बहुत कठोर निर्णय लिया था। उसने उनकी एक भी मांग नही मानी, और अपने कमांडो भेजकर सभी आतंकियों को मार दिया था। इस ऑपरेशन में 331 लोग मारे गए थे जिसमें 134 बच्चे भी थे। कहते है कि इसके बाद रूस की सरकार ने आतंकवादियों के सभी रिश्तेदारों को मार दिया था। इससे आतंकवादियों की सोच पर गहरा असर पड़ा। उसके बाद दुनिया के किसी कोने से आतंकवादियों द्वारा किसी रूसी के अपहरण की खबर नही आई।
जहाँ तक अमेरिका की बात है उसके लिए यह मसला कोई महत्व नहीं रखता। इस समय उसका लक्ष्य चीन को रोकना है, अतः इस छोटी-सी बात के लिए वह भारत को नाराज नही करेगा। वैसे भी फरवरी में ट्रम्प साहब भारत यात्रा पर आने वाले है। वैसे कल तालिबान ने गजनी में अमेरिका का एक विमान मार गिराया है, जिसमें अमेरिकी खुफिया विभाग के कुछ अफसर सवार थे। यदि यह सच में तालिबान ने गिराया है तो उसे इस हिमाकत करने वाले तक पहुँचने के लिए अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत पड़ेगी। तब पाकिस्तान इस मसले पर सौदेबाजी कर सकता है। हो सकता है निकट भविष्य में अमेरिका की ओर से भारत सरकार को कोई सुझाव जैसा बयान सुनने को मिल जाए।
प्रधान मंत्री मोदी इस समय विपक्ष, वामपंथियों, जिहादी मानसिकता वाले मुस्लिमों, भारत तोड़ो गैंग, चीन, पाकिस्तान की आँखों की किरकिरी बने हुए है। इन सबका हित तभी सध रहा था जब भारत रुग्ण और दुर्बल था, और यें सभी उसे इसी अवस्था में रखना चाह रहे थे। 2014 में मोदी सरकार ने जब पदभार सम्भाला देश की आंतरिक स्थिति भयावह थी। मंत्रालयों में लॉ एंड आर्डर का हाल बहुत बुरा था। कॉरपोरेट द्वारा मंत्रालयों से फ़ाइलें गायब करा दी जाती थी। कोयला घोटाले में फाइलों का गायब होना तो सभी को याद होगा। सबसे बुरा हाल सेना का था। तीस साल से बहुत कम आधुनिक हथियार सेना के लिए खरीदे गए थे। खरीद के लिए कमीशन की सेटिंग में ही सालों जाते थे। उस समय यदि कोई युद्ध हो जाता तो सेना के पास एक सप्ताह तक लड़ने का गोला-बारूद नही था। आज ऐसी स्थिति नही है।
मोदी सरकार ने जल, थल, वायु सेना का आधुनिकीकरण करने के लिए 250 बिलियन डॉलर के हथियारों और सुरक्षा उपकरणों की खरीदने का मन बना रखा है। जिसमें अधिकतर हथियार 'मेक इन इंडिया' के झंडे तले बन रहे है और कुछ बनने है। कार्य में तेजी लाने के लिए सरकार ने इस बार देशी-विदेशी कम्पनियों को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के साथ आमंत्रित किया है। इसका प्रभाव यह हुआ कुछ सालों में ही आधुनिक हथियार और सुरक्षा उपकरण सेना के जखीरे में पहुँचने लगे है। सरकार का लक्ष्य 2025 तक सेना को आधुनिक हथियारों से सुसज्जित करने का है। बुजुर्गों ने कहा है यदि ठोकर में ताकत हो तो आपके हाथ जोड़ने में भी असर आ जाता है। यूँ तो सारा दिन भिखारी भी हाथ जोड़ता फिरता है पर उसे कोई नही पूछता। कुछ लोग NDA सरकार को आर्थिक मोर्चे पर को घसीट रहे है और बेरोजगारी को मुद्दा बना रहे है। देखा जाए तो किसी भी देश की सरकार सबको रोजगार नही दे सकती।
अधिकतर नागरिक अपनी जीविका स्वयं उत्पन्न करते है। यह मुद्दा हमेशा विपक्ष का रहा है। जब बी जे पी सत्ता में नही थी तो इसके नेता भी देश में बेरोजगारी का बहुत शोर मचाते थे। सच तो यह है, जब तक देश की जनसंख्या कम नही होगी और लोग स्वरोजगार की ओर आकर्षित नहीं होंगे तब तक यह समस्या बनी रहेगी।
फिलहाल तो सरकार का ध्यान देश के विकास के रास्ते में जमे बड़े-बड़े पत्थर उखाड़ने में लगा है। धारा 370 उसमें एक थी। एक एक्सपर्ट के अनुसार, धारा 370 हटने से भारत सरकार को हर साल 15 बिलियन डॉलर की बचत होने वाली है। यदि कोई आतंकवादी सेना की चौकी पर हैंडग्रेनेड फेंककर भाग जाए तो उसकी खोज के लिए सेना को मोबलाइज करने में करोड़ो रूपये खर्च आ जाता है। इससे आतंक के आकाओं को बहुत मजा आता था। क्या किसी ने हिसाब लगाया है कि सरजील को पकड़ने के लिए दिल्ली और यू पी पुलिस की 16 टीमें छापे मारती घूम रही है, सरकार का कितना खर्च आ रहा होगा? यह बोझ सरकारी खजाने पर ही आएगा।
जनसंख्या नियंत्रण का बिल भी ऐसा ही है जिसकी आने वाले सत्र में लोकसभा और राज्य सभा में आने की संभावना है। यदि यह पास हो गया तो उसका प्रभाव अगले पन्द्रह, बीस वर्ष बाद दिखाई देने लगेगा। उससे बेरोजगारी की समस्या पर तो अंकुश लगेगा ही देशवासियों का शिक्षा और स्वास्थ्य का स्तर भी सुधरेगा। इसी सत्र में समान नागरिक संहिता कानून के आने की भी संभावना है। सरकार बहुत सारे दशकों से चल रही समस्याओं का पहले ही समाधान कर चुकी है। जिनमें बंगला देश सीमा विवाद भी था। कल ही लगभग चालीस साल से चल रही बोडो समस्या का समाधान सरकार ने किया है। पहली बार उत्तर पूर्व के राज्यों की समस्याओं पर केंद्र सरकार ने ध्यान दिया है। उत्तर-पूर्व में चीन के बॉर्डर पर बन रही सामरिक सड़के, ब्रह्मपुत्र नदी के पुल बन जाने से उस अलग-थलग पड़े इलाके जे लोगो के मन में केंद्र सरकार के प्रति विश्वास बढ़ा है।
प्रधानमन्त्री मोदी के विरोधी जानते है, यदि मोदी इसी गति से चलता रहा तो एक दशक में भारत की सारी समस्याएँ निर्मूल कर देगा, और उन्हें भी। इसी लिए सरकार के काम में अवरोध पैदा करने के लिए वे रोज कोई नया इमोशनल नैरेटिव तैयार करके जनता का बेवकूफ बनाते जा रहे है। शाहीनबाग, उसी प्रसंग का हिस्सा है। विपक्षी दलों, वामपंथियो और कुछ पत्रकारों के चक्कर में पड़कर भारतीय मुसलमान अपना बहुत नुकसान कर चुके है। यदि विपक्ष की सोच है कि वह मोदी सरकार को ऐसे प्रदर्शनों से अस्थिर कर सकती है तो अभी उसकी सम्भावना दूर-दूर तक दिखायी नही दे रही है।
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