अतीत की कुछ यादें जो याद आ गयी

अगर देश दुनिया में  कोरोना के कारण lockdown नहीं होता तो शायद हम जैसे मनुष्यो को कभी भी आत्मचिंतन के लिए इतना समय नहीं मिलता, न ही हम ये सोच पाते की वास्तव में हम क्या पाने के लिए क्या क्या खोते जा रहे है, और जो पा रहे है वो किसी काम का भी या बस यूँ ही लगे पड़े है, और जो खो रहे है वो कितने काम का है या फिर वही सिर्फ काम का है। 


आज बच्चे पढ़ रहे है, तो हम देख रहे है की घंटो कंप्यूटर और मोबाइल पर पढ़ रहे है, उनको हाई स्पीड कंप्यूटर, स्मार्ट फ़ोन और इंटरनेट भी चाहिए तब वो पढ़ रहे या यूँ कहे की उनको और हमको दोनों को इस हाई टेक पढ़ाई के नाम पर मुर्ख बनाया जा रहा है, लेकिन फिर भी बच्चे खुश है और हम भी बहुत गर्व से कहते है की बच्चो की ऑनलाइन क्लास चल रही है इसलिए उनको डिस्टर्ब मत करो, ये कह कर हमने ना जाने कितने लोगो को घर आने से रोका है और न जाने कितनो ने हमे रोका। 

और जब हम अपना बचपन याद करते है पढ़ाई वाला तो याद आता है की हमने पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी की, और ये हमारी ही नहीं सभी मित्रो की स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें।

आज बच्चो सरस्वती माता, विद्या माता जैसी माताओ का कतई पता नहीं है, उनको अपनी माता में ही दोस्त दीखता है, और कक्षा पांच में तनाव का आलम ये है की बच्चे खुद बोलने लगे एक तो हम टेंसन में है और आपको गाने की पड़ी है, आज के बच्चे टेंसन में गेम खेलते या फिर माल जाने की बात करते, वंडर वर्ड, वाटर पार्क स्ट्रेस मैनेजमेंट के लिए बच्चो के स्कूल खुद रिकमंड करते है, ऐसा नहीं था की हमे इस उम्र में टेंसन नहीं था लेकिन सिर्फ पढ़ाई का था और उस पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था।

उस समय के हमारे पढ़ाई या क्लास  बढ़ने के अपने स्वस्वीकृत टोटके होते थे, जो शायद सबके होते थे लेकिन फिर भी हमे विस्वास होता था की काम हमारे वाला ही करेगा, जैसे "पुस्तक के बीच विद्या पौधे की पत्ती (ये तो अब गॉव में नहीं मिलती है, इसकी पत्तिआ छुई मुई जैसी होती है) और मोरपंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे ऐसा हमारा दृढ विश्वास था, और ये काम भी करता था ।

हमारी तत्कालीन समय में कुछ रचनात्मक कार्य भी होते थे जैसे कपड़े के थैले (जो अकसर पिता जी के पुराने पेण्ट से माता जी घर पर ही सिलती थे ) में किताब कॉपियां जमाने का विन्यास हमारा रचनात्मक कौशल था, और आज रचनात्मक खेलो की भरमार है, और एक एक खेल १०००-१००० रूपये का, जिसमे रंग बिरंगी गीली मिटटी के भांति भांति की चीजे बनाना, प्लास्टिक पजल, इत्यादि इत्यादि, बच्चो को सभी किताबे कपिया स्कूल ही देता है फुल्ली डेकोरेटेड और हमारे लिए हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव था।

आज स्कूल में PTM होता है, जिसका सम्पूर्ण नाम पेनेट्स टीचर मीट है, और इसमें मास्टर क्या प्रिंसिपल क्या दोनों ही इतनी मोटी फीस लेने के बाद सम्पूर्ण आत्मविश्वास किन्तु निर्लज्जता से कहते है, आपका बच्चा सही परफॉर्म नहीं कर रहा है, आप घर पर ध्यान दीजियेगा, हमारे पास तो ६ घण्टे के लिए आता है, बच्चा तो आपका है आपको ही इसके करियर की चिंता करनी है और भी न जाने क्या क्या और हम सब मिटटी के माधव बनकर सुनते है और चले आते है, और हमारे समय में माता पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी, न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझा थी। सालों साल बीत जाते पर माता पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे, और हमे नहीं याद है किसी स्कूल में हमारे मातापिता को नियमित बुलाकर ऐसे बोला गया होगा। 

आज बच्चो के खेलने की बहुत सुविधाएं है, बैटरी से चलने वाली बाइक, कार, पांडा सब है, जिसपर उनको कतई कोई दिक्कत नहीं होती है चलाने में और मजाल है अपनी बाइक, कार या पांडा पर किसी और को बिठा ले या किसी दोस्त को दे दे, और हमारे समय में, सबसे पहले छुपते छुपाते सायकल को कैंची सीखते थे (इसकी तो कल्पना करना भी शायद बच्चो के लिए मुश्किल होगा) और दोस्ती का आलम ये था की एक दोस्त को साईकिल के डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा हमने कितने रास्ते नापें हैं। 

आज हम अपने बच्चो को जरा सा मार दे तो अजीव सा वातावरण उत्पन्न कर देते है, और स्कूल वाले तो अब इस कला परम्परा को खो ही चुके, वही बच्चो को मार पीट चाइल्ड एब्यूज का पाठ पढ़कर हाई मेनर्ड बना रहे है, और एक हम लोग थे जिनका स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते कभी ईगो परेशान नहीं करता था, दरअसल हम जानते ही नही थे कि ईगो होता क्या है ?

तत्कालीन समय में पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज सामान्य प्रक्रिया थी, "पीटने वाला और पिटने वाला दोनो खुश थे",  पिटने वाला इसलिए कि कम पिटे, पीटने वाला इसलिए खुश कि हाथ साफ़ हुवा, उस पर पिता जी मित्र कुछ ऐसे नमूने थे जो नियमित ज्ञान देते थे, आप अपने बेटे को रोज कूटो, आपको भले ही न पता हो उसने क्या गलती है लेकिन उसे जरूर पता होगा की उसने क्या गलती की और वो पिटाई की हिसाब से खुद एडजस्ट कर लेगा, और आज ऐसी सलाह कोई नहीं देता। 

आज के बच्चो में एक बहुत बढ़िया बात है, वो आपको याद दिलाते रहते है की वो आपसे कितना प्रेमा करते है, कभी You  are the best papa of world कह कर, कभी i love you papa, कभी  I miss you papa कह कर, कुल मिलकर ये शब्द आपको उनके लिए और ज्यादा मेहनत करने को प्रेरित करते रहते है और शिस्ट और शालीन बने रहने की प्रेरणा देते है और एक हम अपने माता पिता को कभी नहीं बता पाए कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं,क्योंकि हमें "आई लव यू" कहना नहीं आता था।

पर सच में इस अवसर खोजी दुनिआ और औपचायकताओ से भरे हुए रिश्ते हम लोग ही तो लेकर आये है, हमे तो निश्छल रिश्ते मिले थे उसमें फायदा नुकशान तो हमने देखा, हमे तो मिटटी के घर मिले थे जिसमे बिना दीवार सब एक साथ रहते थे पक्के घर और दीवारे तो हमने बनायीं थी, हमे तो चचा, ताऊ, बुआ, मामा मौसी सब रिश्ते मिले थे, एकल परिवार तो हमने किया कुछ पैसे बचाने के लिए, अब !

अब पछताने से क्या होगा, जो बोया है वही दिख रहा है, अब न तो इसे बदल सकते है और न ही बच सकते है, भुगतो और ऐसे कहानिया लिखकर मन को बहलाओ 

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