Official Blog of Ambrish Shrivastava: खिलाफत आंदोलन असली सच

Tuesday, August 25, 2020

खिलाफत आंदोलन असली सच

प्रथम विश्व युद्ध में उस्मानिया सल्तनत को हार का मुंह देखना पड़ा था। तुर्की को छोड़कर उस्मानिया साम्राज्य का हिस्सा रहे सभी क्षेत्रों को मित्र देशों ने आपस में बांट लिया। इससे पहले तुर्की का कुछ तय हो पाता तुर्की के सैन्य कमांडर मुस्तफा कमाल पाशा ने जनता और सेना के साथ मिलकर बगावत कर दी। उन्होंने आज के तुर्की का एकीकरण करके उसे नेशन स्टेट बनाया। वो आधुनिक तुर्की के राष्ट्रपिता भी बने। उन्होंने सदियों के बाद कट्टरवादी उस्मानिया खलिफा राज से निकले तुर्की में अनेक सुधारवादी आंदोलन चलाए। आजतक मुसलमान उनसे नफरत करते हैं क्योंकि उन्हें भारत तो सेक्युलर चाहिये लेकिन तुर्की नहीं।

ये 1920 था जब तुर्की से खलीफा का राज खत्म होने और तुर्की के सेक्युलर लोकतंत्र बनने के विरोध में भारत के मुसलमानों ने खिलाफत आंदोलन शुरू किया। गांधी जी इस समय असहयोग आंदोलन शुरू कर रहे थे तो मुसलमानों को साथ लाने के लिये उन्होंने खिलाफत आंदोलन का समर्थन कर दिया। चौरा चौरी कांड में 22 पुलिसवालों की हत्या के बाद असहयोग आंदोलन तो खत्म हो गया लेकिन खिलाफत की बड़ी भारी कीमत हिन्दुओं ने चुकाई। तुर्की और अंग्रेजों पर तो भारतीय मुसलमानों का ज़ोर चला नहीं तो उन्होंने केरल के मालाबार में भीषण रक्तपात किया। सरकारी आकंड़ों को हिसाब से इन दंगों में 10 हज़ार हिन्दुओं की हत्या की गई। हज़ारो महिलाओं के साथ रेप हुआ और हज़ारों हिन्दुओं ने जान बचाने के लिये धर्मांतरण कबूल कर लिया।

कांग्रेस इस हिन्दू नरसंहार को हिन्दू मुस्लिम एकता बताती रही। गांधीजी तो और आगे चले गये उन्होंने अफगानिस्तान के सुल्तान को भारत पर आक्रमण के लिये आमंत्रित कर दिया। (https://www.facebook.com/swa.savarkar/photos/a.649292688431844/3067801896580899/) हिन्दुओं के पक्ष में एकलौती मुखर आवाज़ उस समय एनी बेसेंट थी जिन्होंने हिन्दू नरसंहार के लिये कांग्रेस को जमकर फटकार लगाई। इस कांड के बाद दुखी मन से डॉ हेडगेवार ने कांग्रेस छोड़ दी और अपने जीवन का एक ही लक्ष्य बना लिया हिन्दुओं का संगठन खड़ा करना जिसके परिणाम में संघ बना हालांकि वो बाद में भी कांग्रेस के नेतृत्व वाली आजादी की लड़ाई से जुड़े रहे।


50 साल की सजा पाये सावरकर ने जेल में रहते हुए तुर्की के लिये भारत में हिन्दुओं का नरसंहार करते भारतीय मुसलमानों को देखकर अपनी प्रसिद्ध किताब हिन्दुत्व लिखी जिसमें उन्होंने पृितभूमि और मातृभूमि वाला कॉन्सेप्ट दिया।

क्योंकि खिलाफत आंदोलन चाहे तुर्की के लिये ही सही अंग्रेजों के खिलाफ था इसलिये कांग्रेस सरकारों ने इसे इतिहास में मोपला विद्रोह लिखवाया और क्योंकि इस कथित विद्रोह को कांग्रेस का समर्थन था इसलिये ये हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक बन गया। इस आंदोलन से जुड़े सारे बड़े मुस्लिम नेता आगे चलकर पाकिस्तान बनाने में काम आये।

रह गये सावरकर जो इस सेक्युलरिज्म में फंसे नहीं उन्होंने जेल में मोपला नाम का नॉवल लिखा जिसमें उन्होंने बताया कि खिलाफत आंदोलन में आखिर हुआ क्या था और ये सच लिखने के लिये आज तक कांग्रेस और मुसलमानों से गाली खाते हैं।

इस हिन्दू नरसंहार को इस साल 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं। कोई और समाज होता तो चिंतन करता, अपने मारे गये लोगों को याद करता, यहुदियों की तरह इन लोगों की याद में कोई मेमोरियल, कोई म्यूजियम कुछ बनवाता लेकिन हर पन्ने पर नरसंहार और मंदिर टूटने और अपनी खोपड़ियों की मिनारें देखने के आदी हिन्दू इस नरसंहार को ऐसे भूले जैसे ये कभी हुआ ही नहीं।

कभी केरल में तुर्की के लिये भारतीय मुसलमानों ने हिन्दुओं का नरसंहार किया था आज केरल से मुसलमान अफगानिस्तान जाकर आतंक फैला रहे हैं। तुर्की में 100 साल के बाद फिर खिलाफत राज जाग रहा है जिसके लिये फिर भारतीय मुसलमानों का दिल भी धड़क रहा है।

तय हिन्दुओं को करना है 100 साल में वो कितना समझे हैं, कितना चले हैं...

शत शत नमन उस नरसंहार में मारे गये सभी हिन्दुओं को, काश आपकी याद में हिन्दुओं ने एक स्मारक ही बनाई होती लेकिन उससे धर्मनिरपेक्षता खतरे में आ जाती। 

ये सभी जानकारिया बहुत सी इतिहास की किताबो को खंगालने के बाद लिखा है (https://www.facebook.com/permalink.php?id=230121640861896&story_fbid=774660793074642), अपने विचार कमेंट  है। 

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