भगवान श्री राम और भगवान श्री कृष्ण की कार्यशैली में अंतर
हम बहुत से हिन्दू जीवन शैली जीने वालो को अभी तक अपने धर्म का सही नाम नहीं पता है, कभी हिन्दू धर्म बना दिया जाता है, कभी वैदिक कभी सनातन और कभी वैष्णव, शैव या अन्य, लेकिन वास्तव में हमारा धर्म तो सनातन धर्म ही है जिसमे वेद और पुराण दोनों ही महत्वपूर्ण है, भगवान शिव, विष्णु, इनके अवतार और अन्य देवी देवता भी, वास्तव में किसी भी देवी, देवता या भगवान के बिना हमारा धर्म अपने विस्तृत स्वभाव से अलग हट जाता है, हमे वेदो में वर्णित सभी देवता चाहिए जो अपने अपने विभागों को देखते है, जैसे जल का देवता, वायु का देवता, अग्नि का देवता, प्रकाश का देवता इत्यादि इत्यादि।
वेदो में देवो का वर्णन है, जबकि पुराणों में उस पूर्ण परमेश्वर की लीलाओ का वर्णन है जिसने इन देवताओ को बनाया है, इन्ही दो पूर्ण परमेश्वर के अवतार में हमारे सर्व पूज्य प्रभु है, श्री राम और भगवान श्री कृष्ण, दोनों का एक ही उद्देश्य था साधुओ और भक्तो को उद्धार करना तथा दुष्टो का विनाश करना, लेकिन फिर भी दोनों क्रिया कलापो में अंतर है, और यही अंतर् हम सबको आनंदित करता है, तो हम शुरू करते है वेदों से जिसका अर्थ होता है जानना।
वेद चार है, लेकिन फिर भी सामवेद भगवद स्तुति के लिए सर्वथा उचित है, सामवेद में दो तरह के श्लोक है। अरण्य के श्लोक और ग्राम के श्लोक। अरण्य जहां नियम नहीं होते, ग्राम जहाँ नियम होते हैं। अरण्य जहाँ पशु रहते हैं, ग्राम जहाँ मानव रहते हैं। राम यज्ञ से पैदा हुए थे, आकाश पुत्र थे। उनकी पत्नी सीता भूमि से पैदा हुई थी, भूमिजा थी, वन्य कन्या थी। राम सारी उम्र अरण्य के पशुओं और ग्राम के मानवों को मैनेज करने में लगे रहे, पशुओं को इंसान बनाते रहे। राम ग्राम वासी भी थे और वनवासी भी। वन में शिव रहते है जो दिगंबर हैं। शिव देह पर भभूत लगाए बैठे है, दिगम्बर हैं। देह पर भभूत लगाने का अर्थ है देह को ही त्याग देना। राम शिव भक्त भी है इसलिए राम के फैसलो में, भाव में दिगम्बर परम्परा दिखती है। माँ के कहने पर राज्य त्याग दिया, आभूषण त्याग दिए, मुकुट त्याग दिया। धोबी के कहने पर रानी सीता त्याग दी। जीवन पर्यन्त नियमों का पालन करते रहे, नियम सही हो या गलत उन्हें पालन करना ही था।
इसके विपरीत कृष्ण कभी किसी बंधन में नहीं रहे। उनके ऊपर परिवार का सबसे बड़ा बेटा होने का भार नहीं था। वो सबसे छोटे थे इसलिए स्वतंत्र थे और चंचल भी। मर्यादा का भार नहीं था उनपर। उन्होंने अरण्य और ग्राम में बैलेंस साधने की कोशिश कभी नहीं की। उन्होंने वन को ही मधुवन बना लिया। वो राजा नहीं थे,न ही राजा बन सकते थे इसलिए गलत नियम मानने को बाध्य नहीं थे कृष्ण। उन्होंने नियमों को नहीं माना। राम rवचन के पक्के थे, उन्होने अयोध्या वासियों को वचन दिया था कि चौदह वर्ष बाद लौट आऊँगा। समय से पहुँचने के लिए उन्होंने पुष्पक विमान का उपयोग किया। कृष्ण ने गोपियों को वचन दिया था, मथुरा से लौट कर जरुर आऊँगा, वो कभी नहीं लौटे। राम ने गलत सही हर नियम माना, कृष्ण ने गलत नियम तोड़े। राम के राज्य में एक मामूली व्यक्ति रानी पर अभिव्यक्ति की आज़ादी के नियम के तहत गॉसिप कर सकता था मगर कृष्ण को शिशुपाल भी सौ से ज्यादा गाली नहीं दे सकते थे। राम मदद तभी करते है जब आप खुद लड़ो। वो पीछे से मदद करेंगे। सुग्रीव को दो बार बाली से पिटना पड़ा तब राम ने वाण चलाया। कृष्ण स्वयं सारथी बन के आगे बैठते हैं और समय आने पर चक्र लेकर दौड़ पड़ते है ।
मूल भावना इस लेख की ये है, की भगवान स्वयं पृथ्वी पर आकर मनुस्यो को जीवन जीने का मार्ग बताते है, उनके साथ जीवन का आनंद लेते है, और अपने और जीवधारी के बीच की दुरी को कम करते है या खत्म करते है।
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