भारत के बाहर माता के शक्ति पीठ

बहुत से दो धर्मो के लोगो की एकता पर बहुत बल देते है, वर्तमान में ये मंदिर उन देशो में स्थित है जहाँ कभी हमारे धर्म के लोग रहते थे, लेकिन आज हमारे धर्म का नाम बिलकुल खत्म हो गया है बस माता के मंदिर के रूप में निशानी रह गयी है, उसे भी मिटाने की बहुत कोश्शि की गयी होगी लेकिन जैसा की हम भगवान की शक्ति से संरक्षित है वैसे ही ये मंदिर भी, अभी भी समय है अपने धर्म की रक्षा करिये नहीं तो अवशेष ही बचेंगे वो भी सिर्फ वो वाले जो मिटाये न जा सके।

अफगानिस्तान में हैं माता आसमाई देवी

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में आसा पहाड़ी पर मां शक्ति का मंदिर स्थित है। यह मंदिर आसमाई माता के नाम से जाना जाता है। आसमाई रूप से अपने भक्तों की हर मुराद को पूरा करती हैं इसलिए इनको आसमाई कहा जाता है। मां के नाम पर पहाड़ी का नाम आसा पहाड़ी रखा गया। आसमाई मां के मंदिर में कई हिंदू देवी-देवताओं की मूर्ति हैं।

मंदिर के पास मौजूद है चमत्कारिक शिला

मंदिर के पास में ही एक बड़ी शिला मौजूद है, जिसे पंजसीर का जोगी के नाम से जाना जाता है। इस शिला को लेकर एक कथा भी है। कथा के अनुसरा, 152 साल पहले एक जोगी इस पहाड़ी पर तपस्या कर रहा था लेकिन उसको स्थानीय लोगों ने बहुत परेशान किया। इससे वह शिला के रूप में परिवर्तित हो गया और मां के चरणों में स्थापित हो गया। तब इस शिला को उनके नाम से ही पुकारा जाता है। अफगानिस्तान के मौजूदा हालात के बारे में तो सभी जानते हैं। वहां तालिबान और आतंकियों की वजह से नागरिक भी सुरक्षित नही हैं। तालिबान द्वारा बुद्ध की ऐतिहासिक प्रतिमा को तोड़ने की खबर पूरे विश्व में चर्चा का विषय बन गई थी। ऐसे में दुर्गा मां मंदिर का होना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। वहां आसमाई देवी आसा माई के नाम से भी जानी जाती हैं।


 

माता के नाम पर पड़ा बाग्लादेश के इस शहर का नाम

अफगानिस्तान के बाद बांग्लादेश में भी मां भगवती का मंदिर शक्तिपीठ के रूप में मौजूद है। बांग्लादेश में एक नहीं बल्कि पांच शक्तिपीठ मौजूद हैं। बांग्लादेश की राजधानी ढाका में माता ढाकेश्वरी देवी का मंदिर स्थित है, जिनके नाम पर इस शहर का नाम ढाका रखा गया। पीएम मोदी ने अपनी यात्रा के दौरान इस मंदिर के दर्शन किए थे। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, माता सती के यहां आभूषण गिरे थे। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में सेन वंश के राजा बल्लाल सेन ने करवाया था।


 

बाग्लादेश मौजूद हैं ये शक्तिपीठ

बांग्लादेश में सुंगध नदी के तट पर उग्रतारा देवी की शक्तिपीठ है, यहां माता सति की नासिका गिरी थी। यहां देवी सुनंदा के साथ भैरव त्रयम्बक हैं। इसके साथ ही करतोयाघाट शक्तिपीठ भी यहां मौजूद है, यहां माता सति का वाम तल्प गिरा था। यहां देवी अर्पणा रूप में मौजूद हैं और शिव वामन भैरव के रूप में विराजमान हैं।


 

बांग्लादेश में यहां गिरी थी माता सती की हथेली

बांग्लादेश के चट्टल गांव में चट्टल भावनी शक्तिपीठ मौजूद है, यहां माता सति का दाहिना बाहु यानी भुजा गिरा था। यहां मां भवानी के साथ भैरव चंद्रशेखर मौजूद हैं। अंत में यशोर शक्तिपीठ भी यहां मौजूद है। माता सति का यहां बायीं हथेली गिरी थी। यहां माता शक्ति यशोरेश्वरी के साथ भैरव चंद्र मौजूद हैं।


 

इस देश में ज्योत रूप में मौजूद हैं मां

अजरबैजान नाम के मुस्लिम देश में भी मां दुर्गा शक्ति रूप में विराजमान हैं। अजरबैजान में 98 फीसदी से ज्यादा आबादी मुस्लिमों की है। यहां मां भगवती का बहुत प्राचीन मंदिर मौजूद है, जिसे टेम्पल ऑफ फायर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर अजरबैजान के सुराखानी नामक जगह पर स्थित है। इस मंदिर में एक ज्वाला जलती रहती है और पास में मां का त्रिशुल भी मौजूद है। मां इस मंदिर में ज्योत रूप में विराजमान हैं। मां के मंदिर की दिवार पर गुरुमुखी लिपी शब्दों का इस्तेमाल किया गया है।


 

हिंदू व्यापारियों ने बनवाया था यह मंदिर

माना जाता है कि सौ साल पहले भारत के एक हिंदू व्यापारी ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। कुछ इतिहास के जानकारों का मानना है कि मंदिर का निर्माण बुद्धदेव ने करवाया था, जो कुरुक्षेत्र के गांव में निवास करते हैं। मंदिर में संवत् 1783 में इसका उल्लेख किया गया है। वहीं कुछ अन्य जानकारी के अनुसार, उत्तमचंद और शोभराज ने मंदिर निर्माण में महान भूमिक निभाई थी। 


जब हिंदू व्यापारी इस रास्ते गुजरते थे, तब वह यहां माथा जरूर टेकते थे। यहां पहले भारतीय पुजारी पूजा करते थे लेकिन 1860 में तुगलकी फरमान के बाद यहां से भारतीय पुजारी चले गए। तब से यह मंदिर विरान पड़ा है, इस मंदिर में अब कोई भी नहीं आता।

पाकिस्तान में भी है शक्तिपीठ

पाकिस्तान में भी मां दुर्गा का शक्तिपीठ मौजूद है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, यहां पर देवी सती का ब्रह्मरंध्र (मस्तिष्क) गिरा था। यह मंदिर हिंगलाज देवी के रूप में प्रसिद्ध है, यहां भगवान शिव भैरव भीमलोचन के रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर को हिंगुला देवी और नानी का मंदिर या नानी का हज के रूप में जाना जाता है। भारत में जो महत्व वैष्णो देवी का है, पाकिस्तान में वही महत्व हिंगलाज माता का है। 


माना जाता है कि हिंगलाज माता के दर्शन मात्र से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। भगवान राम ने भी यहां रावण के वध के बाद ब्रह्महत्या के पाप मुक्ति के लिए यज्ञ किया था और मां से प्रार्थना की थी।

Special Thanks to https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/dharam-karam/religion-and-spiritualism/know-about-maa-durga-devi-temples-in-muslim-countries-in-shardiya-navratri-86783/9/

Comments

Unknown said…
अनमोल जानकारी के लिए हृदयतल से आभार मान्यवर🙏