आने दे तेरे पापा को
२०२० में एक महामारी ने दस्तक दी और सबकुछ बंद बंद सा हो गया, एक इस बंद बंद ने बहुत सी नयी चीजे खोल दी, जैसे परिवार क्या होता है, अपने क्या होते, अपनों के साथ समय कैसे गुजरता है, और इसके अलाबा जो सबसे अच्छा हुआ वो ये था की बच्चो और पिता के बीच की खाई खत्म हो गयी, जो पिता के १०-११ घंटे बहार रहने और फिर घर आकर परेशानी के कारण एक लम्बे समय से चली आ रही थी, क्युकी बच्चे कभी पिता से इतने घुले मिले नहीं तो उनको कभी पता नहीं चला की उनका पिता उनसे कितना प्रेम करता है और जो भी करता है उनके उज्जवल भविष्य के लिए ही करता है। साथ ही मम्मी का एक डायलॉग भी बंद हो गया, आने दे तेरे पापा को तब पता चलेगा।
क्यों थी बच्चो और पिता में दूरिया
दूरियों का कोई कारण नहीं था, बस समय न दे पाना ही था, एक पिता सुबह ६ बजे उठा, दैनिक कर्म किये, नाश्ता किया बेग उठाया और चल दिया ऑफिस पुरे दिन ऑफिस का काम, तनाव, समस्या और गालिया खीज सब झेल कर घर बापस आया सुकून की तलाश में, लेकिन कई बार ऐसा हुआ की बच्चो की माँ दिन भर बच्चो के कई काम रोक कर रखे होती थी की पापा के आते ही करवाते है, और पिता आये ठीक हुए बच्चे लग गए अपनी ज़िद में तो शायद एक या दो बार समझाया भी होगा, लेकिन बच्चे तो बच्चे सुबह से इंतज़ार कर रहे होते है पापा का तो उनको तो अपनी चीज चाहिए उनको क्या पता की पापा किस समस्या से जूझ रहे है और परिणति गुस्से के रूप में होती, ये बात हम १० साल से कम उम्र के बच्चो की कर रहे है, और इसके बाद बच्चे दुखी हो जाते है और धीरे धीरे उनको लगता है की पापा का मतलब एक तानाशाह जो ये चाहता है की जब वो घर में आये सब शांत हो जाये, उसे पानी चाय दे, उससे कोई डिमांड न करे, कोई समस्या न बताये, लेकिन अब बच्चे क्या जाने की वो बाप पुरे दिन कितनी समस्याओ से जूझ कर आया है।
दुसरो से संयमित होकर बोलना
बहुत बार ऐसा होता है की बाप बच्चो पर चिल्ला चुका होता है और तभी बाहर से कोई आता है तो बाप अपना संयम रख कर बड़े प्रेम से बात करता है और उसे विदा कर देता है, या किसी का फोन आया तो बड़े तरीके से बात करता है, अब बच्चो को ये भी लगता है की हमसे ही चिल्ला कर बात करते है, बाहर वालो से देखो कैसे चासनी में समोय हुए बोलते है, अब उनको क्या पता की एक पिता का अपने परिवार को अपना समझ कर निर्द्वन्द होकर बोलना ही उसके अकेलेपन का कारण बनने वाला है, कई बार हम बाहर वालो से बहुत संयमित व्यवहार करते है लेकिन अपनों से फट पड़ते है, ये शायद ज्यादा अपनापन होने के कारण होता है की जो तनाव, कुंठा, परेशानी एक पिता दुसरो से छुपा कर रखता है उसकी गांठ अपने के भड़ाक से खुल जाती है और अपनों को लगता है की कितनी गुस्सा करता है, खैर ये तो समझना और समझाना बहुत मुश्किल है की लोग बाहर वालो पर कम और अपने परिवार के लोगो पर ज्यादा गुस्सा कर लेते है, शायद परिवार के साथ अहित करेगा ऐसा भाव नहीं होता इसलिए संयम और धैर्य टूट जाता है अप्रिय बात पर।
क्या एक पिता वास्तव में अपने बच्चो को पीटना चाहता है ?
ये सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है, ज्यादातर मेने भी महशूस किया है की मेरे बच्चो का स्कूल सुबह का होता था तो मेरे ६ बजे उठने के बाद उनका भी उठना होता है, नाश्ता और स्कूल चले गए, फिर हम ८ या ९ बजे निकले, बच्चे आ जाते है २ बजे और हम आते है ७ बजे, वो भी थके हुए, १ घंटा हमे चाहिए खुद को रिफ्रेश करने को तो बज गए ८, अब ८ बजे अगर मौका मिल गया था टीवी देख ली जैसे समचार या फिर कोई धारावाहिक, इसके बाद भोजन बज गए ९, इसके बाद ज्यादातर होता है हमारे प्राइवेट सेक्टर में की कुछ न्य सीखो तो ३० से ४० मिनट उनके लिए निकाल लिए, फिर बच्चो या फिर यूँ कहो की परिवार के साथ थोड़ा समय गुजारा और सो गए क्युकी सुबह उठना भी है, अब इस पुरे क्रिया कलाप में एक पिता को क्या पता चलेगा की दिन भर उसके बच्चो ने की, हद से हद होमवर्क देख सकता है, स्कूल की डायरी देख सकता है, थोड़ा बहुत पूछ सकता है, फिर बच्चो को पीटने की बजह क्या है उसके पास, सोचिये पुरे दिन में बमुश्किल वो अपने बच्चो के साथ ३ घंटे गुजारता है तो उसे हरकतों के बारे में क्या पता ?
किसने बनाया बाप को खलनायक ?
अब सवाल उठता है की बाप को बच्चो की नजर में खलनायक किसने बना दिया ? जैसा की हमने ऊपर ही कहा है की पिता ऑफिस से थक कर आया, उसे पानी चाय मिलना चाहिए, लेकिन बजाय उसके अगर शिकायतों का पुलिंदा मिल जाए तो शायद खीज बढ़ जाएगी, और बच्चो को एक रेप्टा भी पड़ जाय, वास्तव में ये रेप्टा इतना दर्द नहीं देता जितना दर्द देता है बच्चो को इसके पीछे की भूमिका, बच्चे घर आकर होमवर्क करेंगे फिर करेंगे शैतानी, या किसी चीज की डिमांड जिसे चाहे तो माँ भी देख कर सेटल कर सकती है, लेकिन कई बार वो भी घर के काम में इतनी व्यस्त होती है की उस समय थोड़ा शांति मिल जाय तो डराने के लिए कह देती है आने दो पापा को तुम सबकी शिकायत करुँगी तब पता चलेगा या फिर पापा को आने दो तब दिलवा देंगे।
लेकिन वास्तव में कई बार ऐसा होता है की बापू घर तो आये लेकिन दिल दिमाग फेफड़े गुर्दे धड़कन सब ऑफिस के किसी प्रोजेक्ट में अटका है तो सोचते है की घर जाकर काम करुगा और कल ऑफिस में अपनी इज्जत बचा लूंगा, और घर आये तो धर्मपत्नी शुरू हो गयी शिकायतों में, अब बापू को भी जल्दी की छुटकारा मिले और काम करे जिससे कल बेज्जती न हो तो पूरी बात सुने बिना है रेप्टा घर दिया बच्चे को, जो शायद पत्नी की उम्मीद से भी परे था, अब बच्चा जाय तो कहाँ ? आ गया मम्मी के पास और मम्मी क्या करे, बच्चे को शांत करने के लिए किसकी साइड ले ये डिसाइड करना भी कठिन है।
फिर भी कुछ रटे रटाये डायलॉग हमे भी याद है, तेरे पापा है ही ऐसे ऑफिस का गुस्सा घर पर निकालते है, अरे समझा देते मारने की क्या जरूरत थी, जाने तो पापा को ये तो गुस्सा ही कर पाते है कल हम चलेंगे बाजार ले आयेगे और बच्चे को लगा की बाप तो है तानाशाह और मम्मी है ममता की मूरत और बन गया बापू खलनायक, और एक समय के बाद बाप मान भी लेता है " जी हां मई हूँ खलनायक".
महामारी ने बदला बाप का स्वरूप
अब बात करते है कुछ सकारत्मक, कोरोना के आने से बाप को घर से काम करने की आजादी मिली, जो २ से ३ घंटे सफर में लगते थे वो बचे, आने जाने से जो थकान होती थी वो बची, प्रोजेक्ट और खर्चे दोनों कम होने से काम का बोझ भी कम हुआ, पुरे दिन घर पर रहने से बीच बीच में बच्चो से बाते भी करता रहा, अब बच्चे बोर न हो तो कुछ चीजे यूट्यूब पर देख कर बना कर बच्चो को खिलाई, और ऐसे बच्चो और बाप के बीच की दूरिया कम होती चली गयी, घर से कमाई होने से समय बचने लगा जिसे उसने बच्चो के साथ जिया दिल खोल कर जिया।
कुछ पिता लोगो ने घर के काम में पत्नी का हाथ भी बटाया जैसे बर्तन धो दिए, पौछा लगा दिया, बच्चो को नहला दिया, उनका होमवर्क करवा दिया, इन सबने बच्चो के मन से पिता एक खलनायक और तानाशाह होता है की छवि को धूमिल कर दिया या यु कहे एक नए पिता से बच्चो को मिलाया, और ये सच है जितना समय माँ अपने बच्चो को दे पाती है उतना एक पिता कभी नहीं दे पाया, इसीलिए एक व्यक्ति जब तक पिता नहीं बनता उसे लगता है की माँ ही ममता की मूर्त है बाप तो ऐवयीं है, खैर अब समय है एक पिता को बच्चो के नजदीक जाने का जिससे बच्चो को पता चले की पिता भी उनसे उतना ही प्रेम करता है जीतना माँ करती है।
Comments