Official Blog of Ambrish Shrivastava: Caste untouchability : Legislation of a rumor based narrative

Monday, September 20, 2021

Caste untouchability : Legislation of a rumor based narrative

#जातिगत_छुआछूत : एक अफवाह आधारित नैरेटिव का विधानिकरण है जिसको 1936 के बाद गढ़ा गया है।

क्या इस बात के प्रमाण हैं?
जी हां हैं।
दरअसल एक ही चीज को कई दृष्टियों से देखा जा सकता है। जो जैसी दृष्टि वाला होगा वैसी ही चीज उसे दिखायी देगा। अमिताभ बच्चन की एक फ़िल्म है जिसमें वह हाँथ में 6 लिखकर अपने बेटे से पूंछता है कि क्या लिखा है। वह कहता है 9। अमिताभ कहता है कि मुझे तो 6 दिख रहा है।

1850 के बाद 1857 का संग्राम हुवा था - भारत की लूट तथा भारतीय उद्योगों व्यापार और शिल्प को नष्ट किये जाने के कारण। जिससे करोड़ो लोग बेरोजगार हुए और भुखमरी तथा संक्रामक महामारियों के शिकार होकर मौत के मुंह में समाने लगे। 1857 की लड़ाई में दो प्रतीक थे - कमल और रोटी। यह प्रतीक हिन्दू और मुसलमान दोनों को स्वीकार्य थे। कमल भारत का प्रतीक था, और रोटी प्रतीक थी अंग्रेजो के लूट के कारण बेरोजगारी भुखमरी और मृत्यु का। वरना रोटी का क्या अर्थ था?

वैसे तो मैं लगभग सात साल से कहता आ रहा हूँ कि तथाकथित छुआछूत 1850 के बाद की उत्पत्ति है।

#Covid19 के कारण लोग इसे अधिक अच्छे से समझ सकते हैं।

संक्रामक बीमारियों से बचने के लिए हिन्दू समाज ने शौच ( सैनिटेशन) और परहेज ( फिजिकल डिस्टनसिंग) अपनाना शुरू किया। इसे अंग्रेजो ने Untouchability बोलना शुरू किया। साथ में इसे हिन्दू धर्म का अमानवीय स्वरूप बताकर व्याख्या करना शुरू किया। आज आप विश्वास कर सकते हैं कि प्रोपगंडा साहित्य किस तरह पढ़े लिखे लोगों का माइंड सेट करता हैं।

Untouchability की हिंदीबाजी है - छुआछूत। यदि यह संस्कृत हिन्दू धर्म का अंग होता तो किसी न किसी ग्रन्थ में छुआछूत का वर्णन होता। शौच का वर्णन अवश्य हर ग्रन्थ में है। 6 और 9 समझने के भेद को सम्भवतः आप समझ सकें अब।

दूसरा प्रश्न उठता है कि चलो माना कि छुआछूत का जन्म भुखमरी महामारी और संक्रामक रोगों के कारण हुवा। तो यह जातिगत कैसे हो गयी?

बहुत अच्छा प्रश्न है।

इसका उत्तर आसान है। यह जातिगत कभी भी नहीं थी। इसका प्रमाण है डॉ अम्बेडकर द्वारा 1932 में प्रस्तुत की गयी लोथियन समिति की रिपोर्ट। इस रिपोर्ट में 1911 की सेंट्रल प्रोविंस के जनगणना अधिकारी Mr ब्लंट का जिक्र है जिसमें तीन कास्ट्स की जनगणना का डेटा है जिनमें Touchable भी हैं और Untouchable भी। अब इन दो शब्दों को हिन्दू ग्रंथो में खोजना और भी कठिन है - सछूत और अछूत। 1911 की जनगणना में अछूत का क्राइटेरिया है - "Pollution by Touch" - छूने के कारण दूषित होना। आखिर और क्या चल रहा है कोविड काल मे? यही तो बचाने की बात पूरी दुनिया के शासक, डॉक्टर और WHO कर रहे हैं न ।

डॉ आंबेडकर 1932 में कहते हैं कि ब्लंट को असली बात समझ में नहीं आयी। दरसअल उसे हिन्दू धर्म का ज्ञान नहीं था। फिर अपना तर्क देते हैं कि कास्ट और अछूतपन हिन्दू धर्म की आधारशिला है। वे यह नहीं बताते कि किस ग्रन्थ में उन्होंने ऐसा पढा था। कोई आवश्यकता नहीं थी। फिर अम्बेडकर कहते हैं कि सछूत को भी अछूत माना जाना चाहिये। अब यह उनके मन की कपोल कल्पना थी या अंग्रेजो के कहने पर उन्होंने ऐसा लिखा, यह जांच का विषय है। अंधों को क्या चाहिए दो आंखें। अंग्रेजो को यह बात पसंद आ गयी।

फिलहाल तब तक अछूतपन जाति आधारित नहीं था, यह बात प्रमाणित हो गयी।

1936 में रानी विक्टोरिया का एक शासनादेश आया कि निम्नलिखित 429 कास्ट्स शेड्यूल के अंतर्गत आती हैं। न इससे कम न इससे अधिक। शेड्यूल का अर्थ क्या था? क्यों यह 429 जातियां शेड्यूल की जा रही हैं। कुछ भी नहीं लिखा गया उस शासनादेश में।

लेकिन ब्रिटिश और भारतीय विद्वानों ने इसको एक्सप्लेन किया कि यह लिस्ट अछूत जातियों की है। तभी से अछूतपन जातिगत हो गयी।

मेरी अनेक पोस्टों में लोगों ने इस विषय पर प्रश्न उठाये थे। आशा है कि उनको अपने प्रश्नों का उत्तर मिल गया होगा। और भी जिज्ञासायें हों तो खुलकर लिखें। इस विषय का मैं अकेला एक्सपर्ट हूँ स्वतंत्र भारत के इतिहास में।

अम्बेडकर जी द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट से सछूत और अछूत जातियों का उद्धरण निम्नलिखित है।

Main post - https://www.facebook.com/Hiteshbhai.Bhanushali/posts/4339712756093940

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