Official Blog of Ambrish Shrivastava: दलित अत्याचार की कहानी की सच्चाई

Wednesday, September 21, 2022

दलित अत्याचार की कहानी की सच्चाई

वर्तमान समय में जब हम कक्षा ५ पास करते है तो हम स्वतंत्र होते है नवोदय में जाने को, सैनिक स्कूल में जाने को स्वतंत्र है लेकिन स्वतंत्रता के साथ साथ आपके अंदर इनके द्वारा आयोजित परीक्षा पास करने की लगन और मेहनत भी होनी चाहिए, अब आप क्लास ८ में आगये तो फिर से इनके द्वार एकबार फिर खुलते है और फिर वही बात की इनकी प्रवेश परीक्षा आप पास कर पाते है या नहीं ये आपके ऊपर निर्भर है। 



अब आप क्लास १० में आगये अब आपके सामने NDA, पॉलिटेक्निक जैसे द्वार खुल गए, लेकिन मामला फिर भी वही है की क्या आप प्रवेश परीक्षा पास कर लेते है, इन सबके बराबरी में वो लोग भी है जो एक ही स्कूल में चुपचाप बिना किसी अतिरिक्त मेहनत के पढ़ते आ रहे है और पास हो रहे है, अब वो चाहे सरकारी स्कूल में हो या फिर प्राइवेट में, उनकी एक अलग केटेगरी साथ के साथ बन रही है। 

अब आप आगये १२थ में, तो आपके लिए इंजीनियरिंग के द्वार खुले जिसमे IIT भी है और अन्य कॉलेज भी है यूनिवर्सिटी भी है, और कुछ सरकारी नौकरिया भी है, लेकिन मामला वही है की आप खुद कितनी मेहनत करने को तैयार है, क्युकी फॉर्म सभी भर सकते है लेकिन पास कौन करेगा ? जो बाकिओ से ज्यादा मेहनत करेगा जिसके लिए आपको शायद शारीरक सुख छोड़ना पड़े। 

अब आपने स्नांतक कर लिया आपके लिए CDS, अखिल भारतीय सेवा, राज्य सेवा, क्लर्क, कानिस्टेबल, शिक्षक जैसे कई पदों के लिए परीक्षाएं है, जिनमे आप जा सकते है, ये सब मेने एक ओवरव्यू दिया है आपको समझाने में की आप शुरू से अंत तक स्वतंत्र है अपनी मेहनत करने की लग्न और क्षमता के आधार पर। 

अब हुआ ये की बचपन में एक ही स्कूल में पढ़ने वाले लोगो में कुछ आईएएस बन गए, कुछ IIT से इंजीनियर बने, कुछ MBBS डॉक्टर बने, कुछ प्राइवेट कॉलेज से इंजीनियर बने, कुछ BMAS बने, कुछ PCS बने, कुछ इंस्पेकटर बने, कुछ कानिस्टेबल बने, कुछ शिक्षक बने, कुछ सेना में अधिकारी बने, कुछ सैनिक बने यानि की जो भी बना अपनी लगन, मेहनत और क्षमता के उपयोग के आधार पर बना। 

अब जो क्लर्क है उसको सबसे ज्यादा काम करना पड़ता है, जो सैनिक है उसको भी बहुत से काम करने पडटे है, जो लोकल कॉलेज से इंजीनियर बने है उनको भी ज्यादा काम करना पड़ता है, जो भी जो बना उसे उसी हिसाब से काम करना पड़ता है, सेलेरी मिलती है और सम्मान मिलता है, और हर विभाग या मंत्रालय में जाने की अनुमति नहीं है । 

अब जो आईएएस बने, IIT से इंजीनियर बने, PCS बने, या MMBS डॉक्टर बन कर सर्जन बने उनके पास काम भले ही कम को लेकिन जिम्मेदारी बहुत है जो दिखती नहीं, उनकी सेलरी ज्यादा है जो दिखती है, उनका सम्मान ज्यादा है जो दीखता है, उनको किसी भी विभाग या मंत्रालय में जाने की छूट है जो दिखती है। 

अब जो वर्ग हमने ऊपर बताया था वो इनसे द्वेष करता है, घृणा करता है, कहता है काम हम करे और राज करे, हमारी सेलरी भी कम है, सम्मान भी कम है, हम आते है तो कोई सम्मान नहीं देता और इनके आने पर सब खड़े हो जाते है, ये भेदभाव है, हम भी सरकारी कर्मचारी है हमे भी उतना ही सम्मान और पगार मिलनी चाहिए जितनी इनकी है।  

अब आप बताओ की क्या इनकी ये मांगे सही है ? अगर आप सिर्फ लास्ट की सीन देखेंगे तो हो सकता है आपको इनकी मांगे सही लगेगी लेकिन अगर आप इनकी मेहनत, लगन, परिश्रम का सही से आँकलन करके मूल्यांकन करेंगे तो आप पाएंगे की इन्होने खुद से चुनाव किया था जब चुनने का समय था, शुरू में मेहनत करने का समय था तब आपने कम मेहनत वाली राह चुनी तो अब क्यों रो रहे हो। 

यही समस्या हमारे समाज की है, अगर आप सृस्टि के आरम्भ में जाए तो किसी भी दर्शन के अनुसार सबसे पहले स्त्री और पुरुष भगवान ने बनाये थे और उस समय कोई छोटा या बड़ा आधिकारिक रूप  से नहीं था, लोगो  जंगलो शुरू किया, पत्तो से वस्त्र बनाये, पशुपालन किया, खेती की फिर  धीरे धीरे काम का बंटवारा हुआ होगा और उस समय काम चुनने की स्वतंत्रता जरूर रही होगी, जिसने जो चुना उसी पर चलता चला गया क्युकी वो उसमे सिध्दहस्त था, फिर परम्परागत रूप से उसने अपने बच्चो को सिखाया। 

और उस समय इतनी कड़ाई भी नहीं होगी की आप अपना काम न बदल सको, आपके अंदर क्षमता है तो बदल सकते होंगे, क्युकी उस समय कोई लिखित प्रमाण पत्र नहीं बनते थे, हां ये हो सकता है काम बदलने पर कुछ लोग सलाह देते होंगे कुछ ताना मारते होंगे, तो ये वही करते होंगे जिनके साथ आपने किया होगा, जो डोगे वही बापस मिलेगा। 

कालांतर में जैसे जैसे समय आगे बढ़ा लोगो को काम की अहमियत समझ होगी की ये काम बहुत जरुरी है ये कम जरुरी उसी के अनुसार सम्मान मिलने लगा होगा बस यही आगे चलता रहा और जब अंग्रेज आये तो इन सबको बढ़ा चढ़ा कर समाज में विद्वेष की भावना का बीज बोया जो स्वतत्रता के बाद आरक्षण के रूप में परिणित हुआ फिर कुछ एक्ट बने जिनका आज दुरूपयोग हो रहा है। 

साथ ही इस वर्ग विशेष के दिमाग में ये भर दिया गया है की तुम्हारे साथ अत्याचार हुआ है, और तुम्हारे आगे बढ़ने का कारण तुम्हारी कम मेहनत  हरामखोरी नहीं थी वल्कि सवर्ण वर्ग अत्याचार था, अब समाज दो से ज्यादा समाजो का बोझ धो रहा है जो धीरे धीरे वर्ग संघर्ष में परिणित होगा.     

आज ये वर्ग इतना शक्तिशाली है की संविधान में वर्णित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा पर रोक लगा सकता है और लगवा भी सकता है, इसके सामने संविधान के आर्टिकल २०, २१ २२ का कोई महत्त्व नहीं है, अगर कोई फिल्म बनाने की कोशिश करे जिसमे आरक्षण या दलित एक्ट का दूसरा पहलू दिखाने की कोशिश की जाए तो पूरा देश जलाने पर उतारू हो जायेगे, मजबूरन सरकार और कोर्ट उन फिल्मो और धारावाहिको पर रोक लगा देते है।  

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